अकेलापन सालता है, कमरे में बैठे हुए अपनों की यादों से आंखें नम हो जाती हैं और गीत बनने लगता है। यादों से उभरी टीस खत्म तो नहीं होती लेकिन गीतों-कविताओं से यह कुछ कम हो जाती है। ये शब्द हैं रामलाल वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों के। दर्द को कम करने के लिए गीत-कविताओं का सृजन कर अपनों को याद करते हैं। किसी बुजुर्ग ने 24 तो दूसरे ने पचास से अधिक कविताएं लिखी हैं। शाम को आश्रम में गोष्ठी होती है। दर्द के बीच हास्य की कविताएं मुस्कान भी बो देती हैं।
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