केवल नाम के मुसलमान हैं वसीम रिजवी : उलमा
देवबंद (सहारनपुर)। शियाओं के सर्वोच्च धर्मगुरु अयातुल्ला अल सैयद अली अल हुसैनी अल सिस्तानी के फतवे को अस्वीकार करने की वजह से शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को इस्लाम से खारिज कर दिया गया है। वसीम रिजवी को इस्लाम से खारिज किए जाने का देवबंदी उलमा ने भी समर्थन किया है। उलमा का कहना है कि रिजवी जिस तरह इस्लाम और मुसलमान विरोधी बयान देते हैं उससे लगता है कि वे केवल नाम के ही मुसलमान हैं।
शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को इस्लाम से खारिज किए जाने के मुद्दे पर शुक्रवार को दारुल उलूम फारुकिया के मोहतमिम मौलाना नूरुलहुदा कासमी ने कहा कि वसीम रिजवी पिछले लंबे समय से साजिश के तहत इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम करने वाली बयानबाजी करते रहे हैं। जिसकी वजह से यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि वह केवल नाम के ही मुसलमान है। बाकी उनके सभी बयान गैर मुस्लिमों वाले हैं। उन्होंने कहा कि वसीम रिजवी इस्लाम मुखालिफ दुश्मनी करने वालों के हाथों बिके हुए हैं। जिसके चलते वह हिंदू मुसलमानों को लड़ाकर उनके बीच दूरियां बनाने का काम कर रहे हैं। उनके तमाम बयान मुल्क को तोड़ने और यहां रहने वाले हिंदू-मुस्लिमों के बीच नफरत की दीवार खड़ी करने वाले हैं। मौलाना नूरुलहुदा ने कहा कि शिया धर्मगुरु ने किस बुनियाद पर वसीम रिजवी को इस्लाम से खारिज किया यह वही लोग जान सकते हैं। मौलाना सगीर कासमी का कहना है कि वसीम रिजवी के खिलाफ यह कार्रवाई पहले ही हो जानी चाहिए थी। क्योंकि रिजवी लगातार इस्लाम और मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने वाला कार्य कर रहे हैं।
इस वजह से हुआ था रिजवी के खिलाफ फतवा जारी
देवबंद। शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज भूमि देने का प्रस्ताव दिया हुआ है। रिजवी का दावा है कि बाबरी मस्जिद शिया शासक द्वारा बनवाई गई थी और यह वक्फ की संपत्ति है, जिसे वह राम मंदिर के लिए दान देना चाहते हैं। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा है और शिया वक्फ बोर्ड देश और समाज के विकास को लेकर संजीदा है। हिंदुओं को उनका हक मिलना चाहिए और मुस्लिमों को दूसरों के हक छिनने से दूर रहना चाहिए। शिया वक्फ बोर्ड अपने फैसले से पीछे नहीं हटेगा, चाहे फिर दुनिया के सभी मुसलमान हमारे विरोध में क्यों न खड़े हो जाएं। जिसके बाद कानपुर के शिक्षाविद डॉ मजहर अब्बास ने ईमेल के जरिए सिस्तानी से फतवा मांगा था। इसके जवाब में सिस्तानी ने कहा था कि कोई भी मुसलमान वक्फ की संपत्ति को मंदिर या अन्य किसी भी प्रकार के धार्मिक स्थल के निर्माण के लिए नहीं दे सकता। फतवे को अस्वीकार करते हुए रिजवी ने कहा था कि शिया वक्फ बोर्ड पर बाबरी केस के मुद्दई का समर्थन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर से दबाव डाला जा रहा है। सिस्तानी का फतवा इसी कड़ी का एक हिस्सा है। शिया वक्फ बोर्ड भारतीय संविधान में दर्ज कानून के तहत ही काम करेगा, न कि किसी आतंकी या फतवा के दबाव में। हम सिस्तानी द्वारा जारी फतवा को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि यह उन्हें गुमराह करके लिया गया है।