मेरठ के सरधना कस्बे का ऐतिहासिक रोमन कैथलिक चर्च पिछले दो सौ साल से अपनी भव्यता और कला के बेजोड़ नमूूने को संजोए हुए है। इसे बेगम समरू द्वारा बनवाया गया था। यह चर्च सौहार्द, आस्था और इतिहास का बेजोड़ नमूना है। चर्च को ईसाई धर्म के लोग कृपाओं की माता मरियम का तीर्थस्थान मानते हैं। मान्यता है कि माता मरियम श्रद्धालुओं पर कृपा बरसाती हैं। मां मरियम के दर्शन के लिए यहां देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। इस चर्च के कारण ही सरधना का नाम अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकता है।
सरधना के ऐतिहासिक चर्च के निर्माण के 200 साल पूरे होने पर अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया। जिसमें सैकड़ों की संख्या में दूरदराज से आए श्रद्धालुओं ने विशेष प्रार्थना में हिस्सा लिया। इस मौके पर मिस्सा बलिदान भी किया गया। जिसमें कई प्रांतों के धर्माध्यक्ष, फादर्स, सिस्टर आदि भी शामिल हुए। दोपहर बाद समारोह का समापन हो गया। आगे विस्तार से जानें इस चर्च का पूरा इतिहास।
श्रद्धालुओं की हर मन्नत पूरी करती हैं माता मरियम
सरधना में अब से 200 वर्ष पूर्व बेगम समरू ने ऐतिहासिक चर्च का निर्माण कराया था। दूरदूराज से यहां श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर आते हैं। चर्च में कृपाओं की माता की चमत्कारी तस्वीर लगी हुई है, जिसकी काफी मान्यता है। चर्च निर्माण के 200 वर्ष पूरे होने की खुशी में अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया। शुभारंभ मुख्य अतिथि बिशप फ्रांसिस कालिस्ट (पुदुचेरी) ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। सुबह 10 बजे ध्वजारोहण कर उसकी आशीष की गई। इसके बाद चर्च परिसर में विशेष प्रार्थना का आयोजन किया गया। प्रार्थना बिशप फ्रांसिस कालिस्ट ने कराई। मिस्सा बलिदान किया गया।
बेगम समरू ने कराया था चर्च का निर्माण
बेगम समरू द्वारा बनवाए गए इस चर्च को पोप जॉन 23वें ने 1961 में माइनर बसिलिका का दर्जा दिया था। बताना जरूरी होगा कि ऐतिहासिक और भव्य गिरिजाघरों को ही यह दर्जा प्राप्त होता है। बड़ी बात यह है कि इस चर्च को बनाने में करीब 11 साल लगे। चर्च के निर्माण का कार्य वर्ष 1809 में शुरू हुआ था। इस ऐतिहासिक चर्च के खास दरवाजे पर इमारत के बनने का वर्ष 1822 दशार्या गया है। इस चर्च के निर्माण में कई सौ लोग समेत कलाकार भी लगे थे। यहां हर वर्ष नवंबर माह के दूसरे शनिवार-रविवार को मेले का आयोजन होता है। 25 दिसंबर को लोग मां मरियम के दर्शन करने आते हैं।
फरजाना की कहानी से जुड़ा है चर्च
मेरठ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर सरधना में ऐतिहासिक चर्च सौहार्द, आस्था और कलात्मक इतिहास का भव्य नमूना है। बागपत के कोताना गांव में लतीफ खां के परिवार में जन्मी फरजाना अपने सौतेले भाइयों के जुल्म से परेशान होकर मां के साथ दिल्ली चली गई थीं। उन्होंने नृत्य को अपना पेशा बनाया। उनकी मुलाकात सरधना रियासत के हुक्मरान वाल्टर रेनार्ड समरू से हुई। रेनार्ड समरू और फरजाना में प्रेम प्रसंग शुरू होने के बाद दोनों एक-दूसरे के हो गए। फरजाना नर्तकी से बेगम समरू बन गई।
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फरजाना से बेगम समरू बन अपना लिया था ईसाई धर्म
वाल्टर रेनार्ड समरू की मृत्यु के बाद बेगम समरू ने शासन किया और कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया। इसी दौरान उन्होंने इस चर्च का निर्माण कराया था। चर्च में जिस स्थान पर प्रार्थना होती है, उसे अल्तार कहा जाता है। अल्तार के निर्माण के लिए सफेद संगमरमर जयपुर से लाया गया था। इसमें फूलों की पच्चीकारी खूबसूरत है। इसमें कौरनेलियन, जास्पर और मैलकाइट जैसे कई कीमती पत्थर जड़े हैं।