हिमाचल के बिलासपुर जिले के डियारा सेक्टर में युवकों पर जानलेवा हमले के बाद शुरू हुआ विवाद और गहराता जा रहा है। देर रात दो बजे तक हंगामे के बाद शनिवार को भी माहौल तनावपूर्ण रहा। आरोपी को शाम आठ बजे जमानत मिलने की खबर सुनते ही लोगों का गुस्सा भड़क उठा। मौके पर पहुंची पुलिस से भी लोगों की धक्कामुक्की हो गई। आरोपी युवक के घर के बाहर जुटी भीड़ ने पुलिस प्रशासन और कांग्रेस विधायक बंबर ठाकुर के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
माहौल बिगड़ता देख पुलिस ने पहले हल्का बल प्रयोग किया। सैकड़ों की तादाद में जुटे लोग आरोपियों को कमरे से बाहर निकालने की मांग कर रहे थे। माहौल इतना खराब हो गया कि पुलिस ने लोगों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं। इस पर लोग भी भड़क गए और उन्होंने पुलिस पर पथराव कर दिया। इससे कई महिलाओं और लोगों भी चोटें आईं। गुस्साई भीड़ ने मारपीट के आरोपी युवकों की गाड़ी के शीशे तोड़ दिए और इसे सड़क पर पलट दिया। मौके पर खड़ी आरोपियों की गाड़ियों की तलाशी ली गई तो इसमें खुखरी और तलवारों सहित तेजधार हथियार बरामद किए गए।
तनावपूर्ण माहौल पर नियंत्रण करने के लिए थाना प्रभारी भूपेंद्र सिंह ने पुलिस बल के साथ मोर्चा संभाला। उन्होंने भीड़ को भरोसा दिलाया कि शनिवार सुबह आरोपी को यहां से बाहर भेज दिया जाएगा। लोगों को यह मंजूर नहीं था। करीब तीन घंटे बाद एसडीएम डॉ. हरीश गज्जू और डीएसपी सोमदत्त पहुंचे। उन्होंने भी समझाने की कोशिश की, लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं थे। इसके बाद दोनों अधिकारी चले गए। इसके बाद थाना प्रभारी और चौकी इंचार्ज ने आरोपियों को बाहर निकालने की योजना बनाई।
इसके तहत लोगों को अलग-अलग दिशा में भेजा गया। पुलिस की क्यूआरटी (क्यूक रिस्पांस टीम) की दो गाड़ियां आरोपी के घर के बाहर लगाई गईं। पुलिस ने मौका देखते ही करीब साढ़े 12 बजे आरोपियों को गाड़ियों में भरना शुरू किया। भारी मशक्कत के बाद करीब 17 लोगों को गाड़ियों में ले जाया गया। इनमें विधायक का बेटा भी शामिल था। भड़के लोगों ने पुलिस के वाहनों पर भी पथराव कर दिया। इस पर पुलिस ने लोगों पर एक बार फिर से लाठियां भांजना शुरू कर दीं। जवाब ने लोगों ने भी पत्थर बरसाने शुरू कर दिए।
शहर के डियारा में शुक्रवार देर रात तक गुंडागर्दी का नाच चलता रहा और सरकारी अमला मूकदर्शक बना रहा। हैरानी की बात तो यह है कि इतना बड़ा हंगामा होने के बावजूद किसी बड़े अफसर ने मौके पर पहुंचने की जहमत तक नहीं उठाई। करीब तीन घंटे बाद अफसर मौके पर पहुंचे तो उनकी बात और भी हैरान करने वाली थी। वे कह रहे थे कि क्या करें मजबूरी है, सरकार से बाहर नहीं जा सकते। इससे यह बात तो साफ थी कि वे अधिकारी भी केवल विधायक के बेटे को संरक्षण देने ही पहुंचे थे। अब सवाल यह उठता है कि शुक्रवार देर रात तक हुए हंगामे में प्रशासनिक अमला आखिर किसे बचाने में लगा रहा।