जालौन। बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा 15 अक्तूबर यानी शुक्र वार को है। इस दिन रावण दहन होना तय है। प्रभु श्रीराम के तीर से रावण धू-धूकर जलता है और बुराई का अंत होता है। पर क्या सचमुच रावण का अंत होता है। बुराई का प्रतीक रावण का दहन होने के बाद भी बुराइयां जाती नहीं हैं। लोगों के मन से अहंकार का नाश नहीं होता है। रावण को प्रकांड विद्वान माना जाता है। पर मरण से पहले रावण के मनोस्थिति क्या होगी। इस विषय में हमारी बात हुई बीते लगभग 20 वर्षों से रावण का किरदार निभा रहे श्याम शरण कुशवाहा से।
तहसील क्षेत्र के ग्राम उरगांव निवासी श्याम शरण कुशवाहा गांव में ही स्थित श्रीबजरंग इंटर कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर कार्यरत हैं। परिवार में दो बड़े भाई है। बड़े मनमोहन कृषि कार्य देखते हैं। जबकि मझले भाई मंगलशरण नागा साधु हैं। श्याम पत्नी मुन्नी देवी एवं पुत्र बृजबिहारी व बाबूराम के साथ रहते हैं। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं है पर जीवन आसानी से चल रहा है। इंटर कॉलेज में कार्यरत होने के चलते सामाजिक छवि भी अच्छी है। वह बताते हैं कि गांव में रामलीला का आयोजन होता था। रंगमंच पर रंगकर्मियों की प्रस्तुति को देखते हुए उनके मन में रामलीला में किसी पात्र की भूमिका निभाने का विचार आया। रामायण का अध्ययन किया था। लिहाजा जब अभिनय का विचार आया तो सबसे पहला पात्र जो दिमाग में था वह रावण ही था। भगवान शंकर के उपासक श्याम शरण कुशवाहा कहते हैं कि रावण का पात्र हालांकि खल पात्र है। इसके बावजूद रावण के जीवन से प्रेरणा ली जा सकती है।
---
एक ने भी छोड़ी तो अभिनय सार्थक
श्याम चरण के मुताबिक मृत्यु समय में प्रभु श्रीराम ने रावण से ज्ञान प्राप्त करने के लिए लक्ष्मण को उसकी मृत्यु शैय्या के पास भेजा था। रावण के जीवन से सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक हर चीज हानिकारक होती है। फिर वह चाहे सुख संपदा ही क्यों न हो। यदि उनके निभाए लंकेश के अभिनय से प्रेरणा लेकर कोई एक भी व्यक्ति बुराई के रास्ते को छोड़कर भलाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा लेता है तो उनका अभिनय सार्थक होगा।
----------
सद्गति के लिए युद्ध करता रहा लंकेश
राम से युद्ध के दौरान मन के विचारों के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि रावण को पता था कि प्रभु श्रीराम के हाथों ही उसका अंत होगा। प्रभु श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। यदि वह उनसे युद्ध न करता तो उसे सद्गति न मिलती। रावण मरण और रावण के पुतले के दहन को लेकर बताते हैं कि रावण बुराई का प्रतीक है। रावण दहन के समय लोगों को विश्वास होता है कि बुराई का अंत हो रहा है, अहंकार का नाश हो रहा है। लोगों को लगता है कि अत्याचार का अंत हो रहा है। कुछ पल के लिए ही सही लोगों को संतुष्टि मिलती है। यदि लोगों की आत्मिक संतुष्टि का कारण वे हैं तो उन्हें ठीक ही प्रतीत होता है। बस यही रहता है कि लोग रावण की बुराइयों से नहीं बल्कि उसके जीवन से सबक सीखें।
जालौन। बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा 15 अक्तूबर यानी शुक्र वार को है। इस दिन रावण दहन होना तय है। प्रभु श्रीराम के तीर से रावण धू-धूकर जलता है और बुराई का अंत होता है। पर क्या सचमुच रावण का अंत होता है। बुराई का प्रतीक रावण का दहन होने के बाद भी बुराइयां जाती नहीं हैं। लोगों के मन से अहंकार का नाश नहीं होता है। रावण को प्रकांड विद्वान माना जाता है। पर मरण से पहले रावण के मनोस्थिति क्या होगी। इस विषय में हमारी बात हुई बीते लगभग 20 वर्षों से रावण का किरदार निभा रहे श्याम शरण कुशवाहा से।
तहसील क्षेत्र के ग्राम उरगांव निवासी श्याम शरण कुशवाहा गांव में ही स्थित श्रीबजरंग इंटर कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर कार्यरत हैं। परिवार में दो बड़े भाई है। बड़े मनमोहन कृषि कार्य देखते हैं। जबकि मझले भाई मंगलशरण नागा साधु हैं। श्याम पत्नी मुन्नी देवी एवं पुत्र बृजबिहारी व बाबूराम के साथ रहते हैं। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी तो नहीं है पर जीवन आसानी से चल रहा है। इंटर कॉलेज में कार्यरत होने के चलते सामाजिक छवि भी अच्छी है। वह बताते हैं कि गांव में रामलीला का आयोजन होता था। रंगमंच पर रंगकर्मियों की प्रस्तुति को देखते हुए उनके मन में रामलीला में किसी पात्र की भूमिका निभाने का विचार आया। रामायण का अध्ययन किया था। लिहाजा जब अभिनय का विचार आया तो सबसे पहला पात्र जो दिमाग में था वह रावण ही था। भगवान शंकर के उपासक श्याम शरण कुशवाहा कहते हैं कि रावण का पात्र हालांकि खल पात्र है। इसके बावजूद रावण के जीवन से प्रेरणा ली जा सकती है।
---
एक ने भी छोड़ी तो अभिनय सार्थक
श्याम चरण के मुताबिक मृत्यु समय में प्रभु श्रीराम ने रावण से ज्ञान प्राप्त करने के लिए लक्ष्मण को उसकी मृत्यु शैय्या के पास भेजा था। रावण के जीवन से सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक हर चीज हानिकारक होती है। फिर वह चाहे सुख संपदा ही क्यों न हो। यदि उनके निभाए लंकेश के अभिनय से प्रेरणा लेकर कोई एक भी व्यक्ति बुराई के रास्ते को छोड़कर भलाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा लेता है तो उनका अभिनय सार्थक होगा।
----------
सद्गति के लिए युद्ध करता रहा लंकेश
राम से युद्ध के दौरान मन के विचारों के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि रावण को पता था कि प्रभु श्रीराम के हाथों ही उसका अंत होगा। प्रभु श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। यदि वह उनसे युद्ध न करता तो उसे सद्गति न मिलती। रावण मरण और रावण के पुतले के दहन को लेकर बताते हैं कि रावण बुराई का प्रतीक है। रावण दहन के समय लोगों को विश्वास होता है कि बुराई का अंत हो रहा है, अहंकार का नाश हो रहा है। लोगों को लगता है कि अत्याचार का अंत हो रहा है। कुछ पल के लिए ही सही लोगों को संतुष्टि मिलती है। यदि लोगों की आत्मिक संतुष्टि का कारण वे हैं तो उन्हें ठीक ही प्रतीत होता है। बस यही रहता है कि लोग रावण की बुराइयों से नहीं बल्कि उसके जीवन से सबक सीखें।