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जिस आवाज को नकारा, बाद में वही बन गई लोकगायकी की पहचान

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, धर्मशाला Updated Mon, 10 Dec 2018 12:12 PM IST
Himachali folk singer Karnail Rana singing journey

धर्मशाला कॉलेज में युवा महोत्सव में जिस आवाज को नकार दिया गया था, वही आवाज बाद में हिमाचली लोक गायकी की पहचान बन गई। उसके बाद लोक गायक करनैल राणा अब तक 250 से अधिक एलबम में अपनी आवाज दे चुके हैं।



वहीं, उन्होंने डेढ़ हजार से अधिक गीत गाए हैं। करनैल राणा के मुताबिक धर्मशाला कॉलेज में युवा महोत्सव में उन्होंने आंखें बंद कर डाडे दिए बेड़िए गीत गाया था। गाना खत्म होने के बाद देखा तो सभागार खाली हो गया था। सभी चले गए थे।


ऐसे में उन्हें बहुत बुरा लगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के रहने वाले उनके एक दोस्त ने गाने की तारीफ की तो थोड़ा हौसला आया। शुरुआती दौर में लोग फब्तियां कसते थे और बहुत बुराई करते थे कि यह कैसे गाता है, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

उन्होंने बताया कि जब वे चौथी कक्षा में थे तो बाल सभा में गाना गया था। इस दौरान अध्यापकों ने सभी कक्षाओं में ले जाकर बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए उनसे गीत गवाए थे।

कहते हैं कि एक बार पिता के सामने हिंदी गीत गाया तो उन्होंने लोकगीत सुनने की फरमाइश की। लोकगीत सुनने के बाद पिता ने यही गीत ही गाने की सलाह दी। इसके बाद उन्होंने लोकगीत गाना शुरू किया। 

पिता हैं संगीत के पहले गुरु

Himachali folk singer Karnail Rana singing journey
एक सितंबर, 1963 को जन्मे करनैल राणा रकवाल लाड़ अपर घलौर, तहसील ज्वालामुखी के मूल निवासी हैं। अब सुभाषनगर अपर सकोह (धर्मशाला) में बस गए हैं। उन्होंने 250 से अधिक एलबम में डेढ़ हजार से अधिक गीत गाए हैं। इनमें एक दर्जन से अधिक गीत खुद लिखे हैं।

कॉलेज के दिनों में करनैल राणा का भी हिंदी गीतों की ओर रुझान था। करनैल राणा कहते हैं कि संगीत के उनके पहले गुरु पिता स्वर्गीय रण सिंह राणा हैं। सेना में रहे स्वर्गीय राण सिंह ने बाद में ओएनजीसी में सेवाएं दीं।

उन्हें भी संगीत का शौक था। माता स्वर्गीय इंदिरा राणा गृहिणी थीं। करनैल लोक कलाकार प्रताप चंद शर्मा, रोशनी देवी, बिमला राणा, हैतराम कैंथा, हेत तनवर, केएल सेहगल, मोहन लाल चौहान सहित सभी लोक कलाकारों को प्रेरणा स्रोत मानते हैं। 

शरारतों में नंबर वन, 8वीं में दो बार हुए फेल 
स्कूल के समय में शरारतों में नंबर वन रहने वाले करनैल राणा का पढ़ाई में थोड़ा हाथ तंग था। इसलिए आठवीं में दो बार फेल हो गए। गणित काफी कमजोर था, लेकिन अध्यापक के कहने पर उन्होंने गणित को सुधारा।  

ये गीत लिखे 

Himachali folk singer Karnail Rana singing journey
करनैल ने 1982 में दसवीं हाई स्कूल घलौर से की। 1986 में स्नातक धर्मशाला कॉलेज और पीजीडीएमसी कोटा राजस्थान से की। साल 1986 में एनवाईके से बतौर एनएसवी जुड़े। 1987 में एनवाईके अकाउंटेंट, 1988 में लोक संपर्क विभाग में बतौर कलाकार पद पर आए।

1989 में आकाशवाणी से गाना शुरू किया। 1995 में चंबा पत्तने दो बेड़ियां पहली कैसेट निकाली।  चंबा पत्तने दो बेड़ियां, कांगड़े दिया उच्चिया रिड़िया, कजो नैण मिलाया दिला मेरिया, कजो नजरां चुरांदी, उड़ियां नी उड़ियां काली कोयले, नींदरा ता गइयां असां चैन भी ग्वाई बैठे सहित अन्य गाने लिखे। 

चुनाव आयोग के ब्रांड एंबेसडर और आकाशवाणी के हिमाचल से पहले ए ग्रेड कलाकार करनैल को जी न्यूज हिमाचल सम्मान, कांगड़ा लोक साहित्य परिषद, हिम कला संगम, हिमाचल मित्रमंडल मुंबई, हिमाचल

कल्चरल एसोसिएशन मुंबई, हिमाचल प्रांतीय सभा लुधियाना, सर्व हितकारी संस्था चंडीगढ़, कांगड़ा निकेतन दिल्ली और हिमाचल केसरी अवार्ड सहित कई अन्य अवॉर्ड मिले हैं। 
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