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Exclusive: ब्रिटिश हुकूमत ने घोषित की थी आपराधिक जाति, बावरिया समाज ने शिक्षा से धोया सदियों का कलंक

गिरिराज सिंह, अमर उजाला, शामली Published by: Dimple Sirohi Updated Tue, 19 Jan 2021 06:50 PM IST
सार

  • आपराधिक गतिविधियों के लिए सदियों तक कुख्यात रहा है बावरिया समाज 
  • 15 हजार से ज्यादा की आबादी वाले ये गांव सदियों तक बदनाम रहे लेकिन अब यहां बदलाव के अंकुर फूट रहे हैं
  • 50 से ज्यादा नौकरियों में गए युवा, पुलिस, शिक्षा, बैंक और अर्द्घसैनिक बलों में हैं कार्यरत

Exclusive: stigma of centuries washed away by education, the youth of Bavaria society in shamli District moving ahead by reading and writing
दूधली में टूटा पड़ा एक व्यक्ति का घर। - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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देश भर में आपराधिक गतिविधियों के लिए कुख्यात उत्तर प्रदेश के शामली जनपद के बावरिया समाज में अब बदलाव की बयार बह रही है। कुछ जिम्मेदारों और नई पीढ़ी ने समाज के माथे पर सदियों से लगे कलंक को धोने के लिए कदम बढ़ाए हैं। झिंझाना थाना क्षेत्र में बसे बावरिया समाज के करीब 12 गांवों में शिक्षा की ज्योति जली, तो अपराध का अंधेरा छंटने लगा। गांवों के 50 से ज्यादा युवा सरकारी नौकरियों में पहुंच गए और कई तैयारियों में जुटे हैं। यहां के लोगों में समाज की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए छटपटाहट नजर आती है। 



ब्रिटिश हुकूमत ने आपराधिक जाति घोषित किया था
बावरिया जनजाति पर अंग्रेजों के जमाने से अपराधी होने का दाग लगा हुआ है। ब्रिटिश हुकूमत ने 1871 में इस जनजाति को ‘आपराधिक जनजाति’ घोषित किया था। 1970 के दशक में तत्कालीन डीएम योगेंद्र नारायण माथुर और कुछ वर्ष पहले जिले में रहे तत्कालीन डीएम एनपी सिंह सिंह ने इस समुदाय के लोगों की जिंदगी बदलने के लिए खूब काम किए।


बावरिया समाज कल्याण समिति के अध्यक्ष धीर ध्वज एवं जनकल्याण समिति के जीतराम बताते हैं कि योगेंद्र नारायण माथुर ने बावरियों के हालात को निकट से देखने के बाद उनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, रोजगार आदि मुहैया कराने की पहल की। वह अब भी वहां जाते-आते रहते हैं। इसके अलावा 2014 में डीएम रहे एनपी सिंह भी बावरियों का जीवन स्तर सुधारने के लिए खूब काम किए। 

मेरठ-करनाल हाईवे पर गांव सिंगरा से बावरिया समाज के गांवों की शुरुआत होती है आसपास में चार ग्राम पंचायतों के अंतर्गत 12 गांव आते हैं। बावरिया कॉलोनी इन गांवों का केंद्रबिंदू है। 15 हजार से ज्यादा की आबादी वाले ये गांव आपराधिक गतिविधियों को लेकर बदनाम रहे लेकिन अब इनमें बदलाव के अंकुर फूट रहे हैं।

गांव के बावरिया समाज समिति के महासचिव दूधली निवासी हरजीत सिंह बताते हैं कि गांवों से 50 से ज्यादा युवा सरकारी नौकरियों में हैं। शिक्षा ने गांवों की दशा बदलने का काम किया। कुछ युवा बाहर रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें : मेरठ से आरोपी आफताब गिरफ्तार, पहले लड़कियों को करता था अगवा, फिर दुष्कर्म और... 

41 हिस्ट्रीशीटर, करीब 20 सक्रिय
झिंझाना थाने के एसएसआई मुनेश कुमार बताते हैं कि बावरिया समाज के गांवों के 41 लोगों की हिस्ट्रीशीट थाने में खुली हैं, जिनमें से 20 सक्रिय अपराधी हैं। बाहर की पुलिस जब उनकी तलाश में यहां आती है तो वारदात का पता लगता है।

ये युवा पहुंचे सरकारी नौकरियों में 
गांव बिरालियान निवासी जुगून बीएसएफ, शंकर सीआईएसएफ, मंगल सिंह पुलिस में हैं। अहमदगढ़ निवासी ज्योति, पूजा एवं किरन शिक्षिका, संजय बीएसएफ, खानपुर जाटान निवासी बलराम, नीरज, कपिल, सूरज पुलिस में तथा ज्योति बैंक में, मस्तगढ़ निवासी विशाल कुमार, जितेंद्र कुमार, भंवर सिंह, विक्रांत कुमार, सुनील कुमार एवं मोहित यूपी पुलिस में तथा संदीप और रामनिवास शिक्षक हैं।

दूधली निवासी ऊषा रानी यूपी पुलिस, अमित कुमार दिल्ली पुलिस, अहमदगढ़ निवासी कविता, सविता एवं जाटान निवासी प्रियंका नर्सिंग में कार्यरत हैं। नया बांस निवासी हरिओम, खोक्सा निवासी कमल, खेड़ी जुनारदार निवासी मंगल यूपी पुलिस, खानपुर कला निवासी रवि रेलवे पुलिस, मंगल शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। 

90 के दशक में केवल दो, अब सौ से ज्यादा स्नातक 
1990-91 में बावरिया समाज के 12 गांवों में केवल हरजीत सिंह परास्नातक तथा शेर सिंह स्नातक थे। वर्तमान में इन गांवों में लगभग 100 युवा परास्नातक तथा 150 से ज्यादा स्नातक हैं।

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बावरिया काॅलोनी में संचालित इंदिरा गांधी मेमोरियल इंटर कॉलेज में पढ़तीं छात्राएं । - फोटो : अमर उजाला
एक विद्यालय, जिसने बदली समाज की दिशा 
शामली: सिंगरा गांव पार करते ही इंदिरा गांधी मैमोरियल इंटर कॉलेज संचालित है। 1991-92 में स्थापित इस कॉलेज ने बावरिया समाज की दिशा बदलने में बड़ी भूमिका है। कॉलेज के प्रधानाचार्य जयकरण अंसल बताते हैं कि स्कूल खोलना आसान था लेकिन इसमें बच्चों को लाना मुश्किल था।

कुछ लोग नहीं चाहते थे कि बच्चे पढ़े-लिखें। इसलिए विरोध भी हुआ लेकिन उनके प्रयास जारी रहे। कोशिश रंग लगाई। अब केवल इस विद्यालय में ही नहीं बल्कि अन्य कई कॉलेजों में यहां के बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं।

पिछले साल कॉलेज में 1600 छात्र-छात्राएं पंजीकृत थे। इस बार कोरोना की वजह से कक्षा नौ से नीचे की कक्षाएं नहीं चल रहीं हैं। इस विद्यालय सरकारी नौकरियों में गए कई युवा इसी विद्यालय से पढ़कर निकले हैं। इसके अलावा प्रत्येक गांव में परिषदीय विद्यालय भी हैं। 

एक-दूसरे को देख आगे बढ़ रहे युवा 
गांव खोक्सा निवासी कुलदीप पुत्र जगदीश यूपी पुलिस में अलीगढ़ में तैनात हैं। छुट्टी पर आए कुलदीप ने बताया कि समाज के युवा एक-दूसरे को देखकर आगे बढ़ रहे हैं। गांव से जब कोई युवक नौकरी पर जाता है तो दूसरे युवा भी उत्साहित होते हैं। वे भी तैयारी करते हैं और समाज की मुख्य धारा से जुड़ने की कोशिश करते हैं। अब गांव के लोग अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। 

मैदान में करते हैं तैयारी 
बावरिया कॉलोनी में खाली पड़ी जगह को खेल का मैदान बना लिया है। रोजाना सुबह यहां पर गांवों के युवा पुलिस भर्ती की तैयारी करते हैं। बावरिया समाज के लोगों से सरकारी नौकरी में गए युवाओं में से ज्यादातर पुलिस और अर्द्घसैनिक बलों में ही हैं। 
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