पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
कोरोना से लड़ाई में स्वास्थ्य विभाग की भूमिका भले ही अहम रही, लेकिन इस दौरान गर्भवती महिलाओं के प्रसव में महकमे ने खूब बाजीगरी दिखाई। स्वास्थ्य विभाग ने कारोना काल के छह माह में ऐसा आंकड़ा पेश किया है कि उस पर विश्वास करना मुश्किल है। विभाग का दावा है कि जिले में 11691 गर्भवती महिलाओं का प्रसव संस्थागत (सरकारी अस्पताल में) कराया गया। जिले में किसी भी महिला का प्रसव घर पर नहीं हुआ। यही रिपोर्ट जिले के स्वास्थ्य विभाग ने शासन को भी भेजी है।
कोरोना को लेकर 23 मार्च से देश भर में लॉकडाउन किया गया था। इस दौरान लोगों के बेवजह घर से बाहर निकलने पर पाबंदी थी। सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में प्रसव पूर्व कोरोना की जांच को अनिवार्य किया गया था। इसके बाद भी तमाम प्रसूताओं ने निजी अस्पतालों की शरण ली।
हालांकि, निजी अस्पताल में बंदी के कारण जो भी प्रसव कराए गए उनका रिकार्ड नहीं रखा गया। इस बीच छह महीने के दौरान संस्थागत प्रसव के जो नतीजे सामने आए वह चौंकाने वाले हैं। डीपीएम ओपी राव बताते हैं कि मार्च से लेकर अब तक 11691 प्रसव पूरे जिले में हुए हैं। सभी प्रसव सरकारी अस्पतालों में कराए गए हैं। घरेलू प्रसव की संख्या शून्य है।
उनका दावा है कि शासन को भेजी जाने वाली रिपोर्ट में सीएचसी, पीएचसी के अलावा जिला अस्पताल में होने वाले प्रसव की संख्या होती है। सरकारी अस्पताल के संचालक आशा कार्यकर्ता व संस्थागत प्रसव के आधार पर ही रिपोर्ट तैयार करते हैं। ये बात सही है कि अस्पतालों से आई रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ी हो सकती है। फिलहाल इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जांच कराई जाएगी।
जन्म प्रमाण पत्र के लिए लेतें हैं सरकारी अस्पताल का सहारा
जन्म प्रमाण पत्र व जननी सुरक्षा योजना का लाभ लेने के लिए लोग सरकारी अस्पताल का सहारा ले रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में प्रसव पूर्व तमाम तरह की जांच से बचने के लिए यह प्रयोग आशा कार्यकर्ताओं के जरिए किया जाता है। आजकल बिना जन्म प्रमाण पत्र के बच्चे का आधार कार्ड तक नहीं बनता। इसे लेकर कोरोना काल में कागज में बंद चल रहे निजी अस्पतालों में कराए गए प्रसव का भी डाटा सरकारी अस्पताल में फीड कराया गया है।
सरकारी धन की होती है बंदरबांट
मंझनपुर। महिला के गर्भ में भ्रूण आते ही उसकी देखरेख का जिम्मा आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पर आ जाता है। गर्भवती महिला के अलावा प्रसव के बाद उसके शिशु की देखभाल भी इन्हीं कार्यकर्ताओं के जिम्मे होती है। कार्यकर्ताओं को पता होता है कि प्रसव कब होगा। वह इसकी बराबर मानीटरिंग करते हैं। प्रसव अगर घर में भी हुआ तो सरकारी लाभ व जन्म प्रमाण पत्र के लिए सरकारी अस्पताल में पंजीकरण करा दिया जाता है। इसके एवज में मिलने वाले सरकारी धन का अस्पताल से लेकर नीचे के कार्यकर्ताओं के बीच बराबर का बंदरबांट किया जाता है।
संस्थागत व घरेलू प्रसव के आंकड़ों में काफी कम या शून्य का अंतर होने की जानकारी नहीं है। यदि ऐसा है तो जांच कराई जाएगी। जांच में गड़बड़ी सामने आने पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. पीएन चतुर्वेदी, सीएमओ
कोरोना से लड़ाई में स्वास्थ्य विभाग की भूमिका भले ही अहम रही, लेकिन इस दौरान गर्भवती महिलाओं के प्रसव में महकमे ने खूब बाजीगरी दिखाई। स्वास्थ्य विभाग ने कारोना काल के छह माह में ऐसा आंकड़ा पेश किया है कि उस पर विश्वास करना मुश्किल है। विभाग का दावा है कि जिले में 11691 गर्भवती महिलाओं का प्रसव संस्थागत (सरकारी अस्पताल में) कराया गया। जिले में किसी भी महिला का प्रसव घर पर नहीं हुआ। यही रिपोर्ट जिले के स्वास्थ्य विभाग ने शासन को भी भेजी है।
कोरोना को लेकर 23 मार्च से देश भर में लॉकडाउन किया गया था। इस दौरान लोगों के बेवजह घर से बाहर निकलने पर पाबंदी थी। सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में प्रसव पूर्व कोरोना की जांच को अनिवार्य किया गया था। इसके बाद भी तमाम प्रसूताओं ने निजी अस्पतालों की शरण ली।
हालांकि, निजी अस्पताल में बंदी के कारण जो भी प्रसव कराए गए उनका रिकार्ड नहीं रखा गया। इस बीच छह महीने के दौरान संस्थागत प्रसव के जो नतीजे सामने आए वह चौंकाने वाले हैं। डीपीएम ओपी राव बताते हैं कि मार्च से लेकर अब तक 11691 प्रसव पूरे जिले में हुए हैं। सभी प्रसव सरकारी अस्पतालों में कराए गए हैं। घरेलू प्रसव की संख्या शून्य है।
उनका दावा है कि शासन को भेजी जाने वाली रिपोर्ट में सीएचसी, पीएचसी के अलावा जिला अस्पताल में होने वाले प्रसव की संख्या होती है। सरकारी अस्पताल के संचालक आशा कार्यकर्ता व संस्थागत प्रसव के आधार पर ही रिपोर्ट तैयार करते हैं। ये बात सही है कि अस्पतालों से आई रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ी हो सकती है। फिलहाल इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए जांच कराई जाएगी।
जन्म प्रमाण पत्र के लिए लेतें हैं सरकारी अस्पताल का सहारा
जन्म प्रमाण पत्र व जननी सुरक्षा योजना का लाभ लेने के लिए लोग सरकारी अस्पताल का सहारा ले रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में प्रसव पूर्व तमाम तरह की जांच से बचने के लिए यह प्रयोग आशा कार्यकर्ताओं के जरिए किया जाता है। आजकल बिना जन्म प्रमाण पत्र के बच्चे का आधार कार्ड तक नहीं बनता। इसे लेकर कोरोना काल में कागज में बंद चल रहे निजी अस्पतालों में कराए गए प्रसव का भी डाटा सरकारी अस्पताल में फीड कराया गया है।
सरकारी धन की होती है बंदरबांट
मंझनपुर। महिला के गर्भ में भ्रूण आते ही उसकी देखरेख का जिम्मा आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पर आ जाता है। गर्भवती महिला के अलावा प्रसव के बाद उसके शिशु की देखभाल भी इन्हीं कार्यकर्ताओं के जिम्मे होती है। कार्यकर्ताओं को पता होता है कि प्रसव कब होगा। वह इसकी बराबर मानीटरिंग करते हैं। प्रसव अगर घर में भी हुआ तो सरकारी लाभ व जन्म प्रमाण पत्र के लिए सरकारी अस्पताल में पंजीकरण करा दिया जाता है। इसके एवज में मिलने वाले सरकारी धन का अस्पताल से लेकर नीचे के कार्यकर्ताओं के बीच बराबर का बंदरबांट किया जाता है।
संस्थागत व घरेलू प्रसव के आंकड़ों में काफी कम या शून्य का अंतर होने की जानकारी नहीं है। यदि ऐसा है तो जांच कराई जाएगी। जांच में गड़बड़ी सामने आने पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. पीएन चतुर्वेदी, सीएमओ