टीम डिजिटल, अमर उजाला, कानपुर
Updated Mon, 11 Sep 2017 10:14 AM IST
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धर्म ग्रंथों में वर्णित श्राद्ध के विधानों के अनुसार तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। लेकिन कुछ साधारण उपाय कर भी आप पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। गुरुवार से श्राद्ध की शुरूआत हो गई है। इस बार पितृ पक्ष 14 दिन के होंगे।
श्राद्ध करने वाला गरीब है तो निराश न हो। वह जल में काले तिल डालकर तर्पण करे और ब्राह्मण को काले तिल की एक मुठ्ठी दान करकर भी पितरों को प्रसन्न कर सकता है। इसके अलावा पितरों को याद कर गायों को चारा खिलाकर भी उन्हें तृप्त कर सकते हैं। ये जानकारी शास्त्री उमाकांत अवस्थी ने दी। उन्होंने बताया कि श्राद्ध में यथासंभव ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भोजन सामग्री में आटा, फल, गुड़, शक्कर, सब्जी और दक्षिणा दान देने का नियम हैं।
सूर्य के सामने सिर झुकाकर निवेदन करें कि मेरे पितरों तक मेरी भावनाओं व प्रेम से भरा प्रणाम पहुंचाकर उनको तृप्त करें। पितृ पक्ष 20 सितंबर तक चलेगा। पितरों की पूजा के लिए नियत है पहला पखवारा हिंदू धर्म में भादो और अश्विन माह का पहला पखवारा पितरों की पूजा के लिए नियत है। इस अवधि में पितरों की पूरी आस्था, भावना व श्रद्धा के साथ सेवा तन, मन एवं धन से करने में अपार सुख देती है। सनत शास्त्री ने बताया कि पितृ शांति के लिए तर्पण का सही वक्त सुबह आठ से 11 बजे के मध्य है।
इस दौरान किया गया जल से तर्पण पितराें को तृप्त करने के साथ पितृ दोष और ऋण से छुटकारा दिलाता है। शास्त्रों के मुताबिक तर्पण के बाद श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ व फलदायी समय कुतपकाल होता है। हर तिथि पर ये काल सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक होता है। श्राद्ध में पहला ग्रास गाय को ही दें हिंदू धार्मिक मान्यताओं में प्रकृति को ही पांच देवताओं का स्वरूप मानकर कई पेड़ पौधों से लेकर प्राणियों की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों में ऐसी ही देव शक्तियों को कल्याणकारी रूप में लिखा गया है।
इनमें से एक प्राणी गाय यानी गौ माता को भी गिना जाता है। श्राद्ध पक्ष में तो इनकी महत्ता और बढ़ जाती है। सुनील शास्त्री ने बताया कि धार्मिक विधानों में भोजन का पहला ग्रास गाय को ही देने की परंपरा है। गोग्रास मंत्र नैवेद्य मंत्र के रूप में भी जाना जाता है।
ये हैं श्रद्धा की तिथियां
10 सितंबर चतुर्थी,
पंचमी 11 सितंबर
षष्ठी 12 सितंबर
सप्तमी 13 सितंबर
अष्टमी 14 सितंबर
नवमी 15 सितंबर
दशमी 16 सितंबर
एकादशी 17 सितंबर
द्वादशी 18 सितंबर
त्रयोदशी 19 सितंबर
चतुर्दशी 20 सितंबर
सर्व पितृ अमावस्या
धर्म ग्रंथों में वर्णित श्राद्ध के विधानों के अनुसार तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। लेकिन कुछ साधारण उपाय कर भी आप पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं। गुरुवार से श्राद्ध की शुरूआत हो गई है। इस बार पितृ पक्ष 14 दिन के होंगे।
श्राद्ध करने वाला गरीब है तो निराश न हो
डेमो पिक
श्राद्ध करने वाला गरीब है तो निराश न हो। वह जल में काले तिल डालकर तर्पण करे और ब्राह्मण को काले तिल की एक मुठ्ठी दान करकर भी पितरों को प्रसन्न कर सकता है। इसके अलावा पितरों को याद कर गायों को चारा खिलाकर भी उन्हें तृप्त कर सकते हैं। ये जानकारी शास्त्री उमाकांत अवस्थी ने दी। उन्होंने बताया कि श्राद्ध में यथासंभव ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भोजन सामग्री में आटा, फल, गुड़, शक्कर, सब्जी और दक्षिणा दान देने का नियम हैं।
सूर्य के सामने सिर झुकाकर निवेदन करें कि मेरे पितरों तक मेरी भावनाओं व प्रेम से भरा प्रणाम पहुंचाकर उनको तृप्त करें। पितृ पक्ष 20 सितंबर तक चलेगा। पितरों की पूजा के लिए नियत है पहला पखवारा हिंदू धर्म में भादो और अश्विन माह का पहला पखवारा पितरों की पूजा के लिए नियत है। इस अवधि में पितरों की पूरी आस्था, भावना व श्रद्धा के साथ सेवा तन, मन एवं धन से करने में अपार सुख देती है। सनत शास्त्री ने बताया कि पितृ शांति के लिए तर्पण का सही वक्त सुबह आठ से 11 बजे के मध्य है।
देव शक्तियों को कल्याणकारी रूप में लिखा गया है
डेमो पिक
इस दौरान किया गया जल से तर्पण पितराें को तृप्त करने के साथ पितृ दोष और ऋण से छुटकारा दिलाता है। शास्त्रों के मुताबिक तर्पण के बाद श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ व फलदायी समय कुतपकाल होता है। हर तिथि पर ये काल सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक होता है। श्राद्ध में पहला ग्रास गाय को ही दें हिंदू धार्मिक मान्यताओं में प्रकृति को ही पांच देवताओं का स्वरूप मानकर कई पेड़ पौधों से लेकर प्राणियों की भी पूजा की जाती है। शास्त्रों में ऐसी ही देव शक्तियों को कल्याणकारी रूप में लिखा गया है।
इनमें से एक प्राणी गाय यानी गौ माता को भी गिना जाता है। श्राद्ध पक्ष में तो इनकी महत्ता और बढ़ जाती है। सुनील शास्त्री ने बताया कि धार्मिक विधानों में भोजन का पहला ग्रास गाय को ही देने की परंपरा है। गोग्रास मंत्र नैवेद्य मंत्र के रूप में भी जाना जाता है।
ये हैं श्रद्धा की तिथियां
10 सितंबर चतुर्थी,
पंचमी 11 सितंबर
षष्ठी 12 सितंबर
सप्तमी 13 सितंबर
अष्टमी 14 सितंबर
नवमी 15 सितंबर
दशमी 16 सितंबर
एकादशी 17 सितंबर
द्वादशी 18 सितंबर
त्रयोदशी 19 सितंबर
चतुर्दशी 20 सितंबर
सर्व पितृ अमावस्या