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फीरोजाबाद। कई लोग ऐसे भी हैं जो लोकतंत्र के अधिकारों को दिलाने के लिए एक आंदोलन बन चुके हैं। भ्रष्टाचार के अंधेरे में इस तरह के आंदोलनों की छोटी सी लौ भी बड़ा काम करती दिखाई देती है। यह बात उपभोक्ताओं के अधिकारों की हो या फिर अन्य किसी क्षेत्र में अधिकारों की जागरूक लोगों की आवाज हक हासिल करने के लिए हनक के साथ गूंज रही है।
आम उपभोक्ताओं की आवाज बनी उपभोक्ता समिति
उपभोक्ताओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए उपभोक्ता फोरम जैसी संस्थाएं गठित की गई हैं। आम उपभोक्ता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए लगभग बीस वर्ष से निर्मल कुमार जैन एक आंदोलन के रूप में काम रहे हैं। उनकी पहचान ऐसी हुई है कि शहर के लोग उन्हें निर्मल उपभोक्ता कहकर बुलाते हैं। अधिकारों के हनन की कई लड़ाईयां उन्होंने जीती हैं और शोषित उपभोक्ताओं को उनका अधिकार दिलाया है। प्रचार सामग्री के जरिए उपभोक्ता अधिनियम के प्रति कसबों तक लोगों को जागरूक किया है।
सेवार्थ संस्थान ने लड़ी चिकित्सा अधिकार की लड़ाई
संविधान प्रदत्त अधिकारों में स्वास्थ्य सेवाएं आमजन के लिए मौलिक अधिकारों में शुमार हैं। यह अधिकार दिलाने का बीणा सेवार्थ संस्थान के माध्यम से समाजसेवी पीके जिंदल ने उठाया है। शवों की बेकद्री न हो इसके लिए अत्याधुनिक वातानुकूलित पोस्टमार्टम गृह बनवाने के लिए उन्हें स्वास्थ्य विभाग से लड़ाई भी लड़नी पड़ी। दुर्घटना में घायलों को उपचार मिलने में देरी न हो इसके लिए सेवार्थ संस्थान की एंबुलेंस भी शुरू की गईं। शहर में डायलिसिस की सुविधा रोटरी नेत्र चिकित्सालय कैंपस में शुरू की गई और अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में मील का पत्थर बनने वाला ट्रामा सेंटर भी मूर्त रूप लेने जा रहा है।
मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहा संघ
कांच और चूड़ी उद्योगों का यह शहर मजदूर बाहुल्य है। लाखों मजदूरों की मेहनत के बाद यहां भट्ठी से निकला कांच दमकता है और रंग- बिरंगी चूड़ियों की खनक पूरे देश में सुनाई देती है। देश की आजादी के बाद राजाराम यादव ऐसे मजदूर नेता हुए जिन्होंने मजदूरों की लड़ाई लड़ी। वर्तमान में मजदूरों के हक की जंग कांच उद्योग क्रांतिकारी मजदूर संघ लड़ रहा है। इस संघ ने मजदूर आंदोलन को यहां नई धार दी है। संघ की मौजूदा अध्यक्ष रज्जोदेवी यादव के दरबार में मजदूरों की समस्याओं का निपटारा होता है। संघ मजदूरों के हक की लड़ाई कामरेडों को साथ लेकर लड़ रहा है। सीटू से संबद्ध संगठन के बैनर तले रज्जोदेवी शासन से लेकर प्रशासन तक मजदूरों के हक की जंग लड़ रही है। श्रमिकों के बीच वह माताजी के रूप जानी जाती हैं।
आजादी के जश्न को शब्द नहीं दे सकते
15 अगस्त 1947 को देश की आजादी की जब घोषणा हुई तब घर-घर में उत्सव मनाया गया था। देश के अतीत और वर्तमान पर जब बुजुर्गों से बात की गई तो अतीत के सुनहरे पल ताजा हो गए। 80 वर्षीय शिव कुमार पाराशर कहते हैं देश की आजादी का जो जश्न मनाया गया था उसको शब्द नहीं दिए जा सकते। जैसे नदी में बाढ़ आ जाती है वैसे ही देश के कोने कोने से लोग दिल्ली पहुंच रहे थे। देश की आजादी की घोषणा पर हजारों लोग दिल्ली गए थे। हर कोई एक दूसरे को गले लगा रहा था।
संविधान में कई बिंदुओं पर लचीलापन
1952 में लागू हुए संविधान के तहत बने कई कानूनों में अब बदलाव की आवाज उठ रही है। बढ़ते भ्रष्टाचार और संगीन अपराधों के बीच सख्त कानून का मुद्दा सड़क से लेकर संसद तक गूंज रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता कुलदीप मित्तल भी कहते हैं कि संविधान में कई जगह लचीलापन है। इसी लचीलेपन का लाभ लेकर भ्रष्टाचार और संगीन अपराध करने वाले भी बच रहे हैं। कानून संसद बनाती है और नेता उसको अपनी जरूरत के अनुसार मोड़ लेते हैं। भारत सबसे मजबूत लोकतांत्रिक देश है यहां कानून भी आमजन की आवाज के अनुसार बनने चाहिए। संविधान में कई बिंदुओं पर बडे़ फेरबदल की जरूरत है। वर्तमान में फास्ट ट्रैक अदालतों की सबसे अधिक जरूरत है।
फीरोजाबाद। कई लोग ऐसे भी हैं जो लोकतंत्र के अधिकारों को दिलाने के लिए एक आंदोलन बन चुके हैं। भ्रष्टाचार के अंधेरे में इस तरह के आंदोलनों की छोटी सी लौ भी बड़ा काम करती दिखाई देती है। यह बात उपभोक्ताओं के अधिकारों की हो या फिर अन्य किसी क्षेत्र में अधिकारों की जागरूक लोगों की आवाज हक हासिल करने के लिए हनक के साथ गूंज रही है।
आम उपभोक्ताओं की आवाज बनी उपभोक्ता समिति
उपभोक्ताओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए उपभोक्ता फोरम जैसी संस्थाएं गठित की गई हैं। आम उपभोक्ता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए लगभग बीस वर्ष से निर्मल कुमार जैन एक आंदोलन के रूप में काम रहे हैं। उनकी पहचान ऐसी हुई है कि शहर के लोग उन्हें निर्मल उपभोक्ता कहकर बुलाते हैं। अधिकारों के हनन की कई लड़ाईयां उन्होंने जीती हैं और शोषित उपभोक्ताओं को उनका अधिकार दिलाया है। प्रचार सामग्री के जरिए उपभोक्ता अधिनियम के प्रति कसबों तक लोगों को जागरूक किया है।
सेवार्थ संस्थान ने लड़ी चिकित्सा अधिकार की लड़ाई
संविधान प्रदत्त अधिकारों में स्वास्थ्य सेवाएं आमजन के लिए मौलिक अधिकारों में शुमार हैं। यह अधिकार दिलाने का बीणा सेवार्थ संस्थान के माध्यम से समाजसेवी पीके जिंदल ने उठाया है। शवों की बेकद्री न हो इसके लिए अत्याधुनिक वातानुकूलित पोस्टमार्टम गृह बनवाने के लिए उन्हें स्वास्थ्य विभाग से लड़ाई भी लड़नी पड़ी। दुर्घटना में घायलों को उपचार मिलने में देरी न हो इसके लिए सेवार्थ संस्थान की एंबुलेंस भी शुरू की गईं। शहर में डायलिसिस की सुविधा रोटरी नेत्र चिकित्सालय कैंपस में शुरू की गई और अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में मील का पत्थर बनने वाला ट्रामा सेंटर भी मूर्त रूप लेने जा रहा है।
मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ रहा संघ
कांच और चूड़ी उद्योगों का यह शहर मजदूर बाहुल्य है। लाखों मजदूरों की मेहनत के बाद यहां भट्ठी से निकला कांच दमकता है और रंग- बिरंगी चूड़ियों की खनक पूरे देश में सुनाई देती है। देश की आजादी के बाद राजाराम यादव ऐसे मजदूर नेता हुए जिन्होंने मजदूरों की लड़ाई लड़ी। वर्तमान में मजदूरों के हक की जंग कांच उद्योग क्रांतिकारी मजदूर संघ लड़ रहा है। इस संघ ने मजदूर आंदोलन को यहां नई धार दी है। संघ की मौजूदा अध्यक्ष रज्जोदेवी यादव के दरबार में मजदूरों की समस्याओं का निपटारा होता है। संघ मजदूरों के हक की लड़ाई कामरेडों को साथ लेकर लड़ रहा है। सीटू से संबद्ध संगठन के बैनर तले रज्जोदेवी शासन से लेकर प्रशासन तक मजदूरों के हक की जंग लड़ रही है। श्रमिकों के बीच वह माताजी के रूप जानी जाती हैं।
आजादी के जश्न को शब्द नहीं दे सकते
15 अगस्त 1947 को देश की आजादी की जब घोषणा हुई तब घर-घर में उत्सव मनाया गया था। देश के अतीत और वर्तमान पर जब बुजुर्गों से बात की गई तो अतीत के सुनहरे पल ताजा हो गए। 80 वर्षीय शिव कुमार पाराशर कहते हैं देश की आजादी का जो जश्न मनाया गया था उसको शब्द नहीं दिए जा सकते। जैसे नदी में बाढ़ आ जाती है वैसे ही देश के कोने कोने से लोग दिल्ली पहुंच रहे थे। देश की आजादी की घोषणा पर हजारों लोग दिल्ली गए थे। हर कोई एक दूसरे को गले लगा रहा था।
संविधान में कई बिंदुओं पर लचीलापन
1952 में लागू हुए संविधान के तहत बने कई कानूनों में अब बदलाव की आवाज उठ रही है। बढ़ते भ्रष्टाचार और संगीन अपराधों के बीच सख्त कानून का मुद्दा सड़क से लेकर संसद तक गूंज रहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता कुलदीप मित्तल भी कहते हैं कि संविधान में कई जगह लचीलापन है। इसी लचीलेपन का लाभ लेकर भ्रष्टाचार और संगीन अपराध करने वाले भी बच रहे हैं। कानून संसद बनाती है और नेता उसको अपनी जरूरत के अनुसार मोड़ लेते हैं। भारत सबसे मजबूत लोकतांत्रिक देश है यहां कानून भी आमजन की आवाज के अनुसार बनने चाहिए। संविधान में कई बिंदुओं पर बडे़ फेरबदल की जरूरत है। वर्तमान में फास्ट ट्रैक अदालतों की सबसे अधिक जरूरत है।