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सहनशक्ति के बिना जीवन व्यर्थ- अरूण मुनि
Updated Thu, 20 Jul 2017 01:10 AM IST
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सहनशक्ति के बिना जीवन व्यर्थ : अरुण मुनि
बड़ौत (बागपत)। जैन संत अरुण मुनि ने कहा कि यदि संबंधों को टिकाऊ बनाना है तो संवेदनशील बनो, जिसमें सहनशक्ति नहीं होती, उसका जीवन व्यर्थ होता है।
वे जैन स्थानक नया बाजार में धर्मसभा को संबोधित करते कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अध्यात्म की ऊंचाई पर तभी पहुंचा जा सकता है, जब अध्यात्म की तलहटी तक पहुंचा जाए। जीवन की ऊंचाई पर जाने के लिए जहां अच्छा स्वास्थ्य जरूरी है, वहीं मानसिक स्वस्थता भी जरूरी है। जिसको मानसिक स्वस्थता मिल जाती है, वह जीते जी स्वर्ग को देख लेता है। उन्होेंने कहा कि पहले भारत की पहचान संयुक्त परिवार के रूप में होती थी। मगर आज हर घर में इसकी कमी पायी जाती है। छोटे-छोटे परिवार बनकर रह गए हैं। इसका मुख्य कारण सहनशीलता की कमी है। सास-बहू के बीच सहनशीलता नहीं रही। बाप-बेट के बीच यहां तक माता-पिता दोनों बीच भी सहनशीलता नहीं रही। उन्होंने कहा कि जिस घर में जितने अधिक रोग होते हैं, उनमें उतना ही मन मुटाव होता है। संबंधों का दीपक यदि जलते रहना चाहते हो तो उसमें आत्मीयता ओर प्रेम रूपी तेल डालते रहना पड़ेगा। आन और अहंकार की चौकड़ी से बचकर रहना होगा। इनकी कमी के चलते ही आज संघ परिवार व समाज टूटते जा रहे हैं। धर्मसभा में जयप्रकाश, सोहनपाल, कालू जैन, अनिल, राजीव, नरेश, भोपाल, शैल बाला, इंद्राणी, गौरव, सरोज, अंजली, संतोष आदि उपस्थित रहे।
सहनशक्ति के बिना जीवन व्यर्थ : अरुण मुनि
बड़ौत (बागपत)। जैन संत अरुण मुनि ने कहा कि यदि संबंधों को टिकाऊ बनाना है तो संवेदनशील बनो, जिसमें सहनशक्ति नहीं होती, उसका जीवन व्यर्थ होता है।
वे जैन स्थानक नया बाजार में धर्मसभा को संबोधित करते कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अध्यात्म की ऊंचाई पर तभी पहुंचा जा सकता है, जब अध्यात्म की तलहटी तक पहुंचा जाए। जीवन की ऊंचाई पर जाने के लिए जहां अच्छा स्वास्थ्य जरूरी है, वहीं मानसिक स्वस्थता भी जरूरी है। जिसको मानसिक स्वस्थता मिल जाती है, वह जीते जी स्वर्ग को देख लेता है। उन्होेंने कहा कि पहले भारत की पहचान संयुक्त परिवार के रूप में होती थी। मगर आज हर घर में इसकी कमी पायी जाती है। छोटे-छोटे परिवार बनकर रह गए हैं। इसका मुख्य कारण सहनशीलता की कमी है। सास-बहू के बीच सहनशीलता नहीं रही। बाप-बेट के बीच यहां तक माता-पिता दोनों बीच भी सहनशीलता नहीं रही। उन्होंने कहा कि जिस घर में जितने अधिक रोग होते हैं, उनमें उतना ही मन मुटाव होता है। संबंधों का दीपक यदि जलते रहना चाहते हो तो उसमें आत्मीयता ओर प्रेम रूपी तेल डालते रहना पड़ेगा। आन और अहंकार की चौकड़ी से बचकर रहना होगा। इनकी कमी के चलते ही आज संघ परिवार व समाज टूटते जा रहे हैं। धर्मसभा में जयप्रकाश, सोहनपाल, कालू जैन, अनिल, राजीव, नरेश, भोपाल, शैल बाला, इंद्राणी, गौरव, सरोज, अंजली, संतोष आदि उपस्थित रहे।