राकेश भारद्वाज, अमर उजाना, धर्मशाला
Updated Mon, 08 Jan 2018 02:29 PM IST
प्रदेश के कॉलेजों के छठे सेमेस्टर में अंग्रेजी विषय के पाठ्यक्रम पर सवाल खड़े हो गए हैं। मामला रूसा के पाठ्यक्रम में एक उपन्यास की अनुवादित पुस्तक से जुड़ा है। इसमें जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।
कक्षाओं में पढ़ाते समय असहज महसूस कर रहे प्राध्यापक इस मामले को धर्मगुरु दलाईलामा के समक्ष उठा चुके हैं। छात्र संगठनों ने भी उपन्यास की अनुवादित पुस्तक की भाषा को जातीय भावना जगाने से प्रेरित बताकर सिलेबस से हटाने की मांग की है।
रूसा पाठ्यक्रम में अंग्रेजी विषय के छठे सेमेस्टर में आजादी से पूर्व ओमप्रकाश वाल्मीकि के लिखे जूठन उपन्यास के अनुवादित अंश शामिल किए गए हैं। इसमें सवर्ण और पिछड़ी जातियों का संबोधन प्रतिबंधित शब्दों में किया गया है।
छठे सेमेस्टर में इसकी डिटेल स्टडी करवाई जाती है, जबकि परीक्षा में इससे 40 अंकों के प्रश्न भी पूछे जाते हैं। कुछ प्राध्यापकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पाठ्यक्रम के आपत्तिजनक अंश हटाने की मांग को लेकर वे धर्मगुरु दलाईलामा से भी मिल चुके हैं।
एबीवीपी के संगठन मंत्री कौल नेगी ने कहा कि रूसा सिस्टम बिना तैयारी से लागू किया गया है। इसके चलते सिलेबस हर साल बदला जा रहा है। विद्यार्थी परिषद जूठन उपन्यास को छठे सेमेस्टर के पाठ्यक्रम से हटाने की मांग मुखर करेगी।
एनएसयूआई के पूर्व राष्ट्रीय सचिव सुरजीत भरमौरी ने कहा कि देश को बांटने वाले पाठ्यक्रम बदलने की मांग की जाएगी। देश को जाति आधार पर बांटने वाला पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाने दिया जाएगा।
छठे सेमेस्टर में पढ़ाई जा रही जूठन शीर्षक से पुस्तक ओमप्रकाश वाल्मीकि के उपन्यास का अनुवाद है। वाल्मीकि का आजादी से पहले ही वर्ष 1913 में देहांत हो गया था। उपन्यास में ओमप्रकाश वाल्मीकि ने सवर्ण के पिछड़ी जातियों पर लागू अघोषित कानूनों के बारे में बताया है।
समाज में उनके साथ अपनाए गए भेदभाव वाले रवैये की बातें भी बताई गई हैं। पाठ्यक्रम में शामिल करने के बावजूद अनुवादित पुस्तक में जाति सूचक शब्दों को नहीं हटाया गया है।
हिमाचल प्रदेश उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. अमरदेव ने कहा कि उनके ध्यान में मामला सामने आया है। इसकी जांच करवाई जाएगी। जरूरत पड़ने पर पाठ्यक्रम को हटाया जाएगा।
प्रदेश के कॉलेजों के छठे सेमेस्टर में अंग्रेजी विषय के पाठ्यक्रम पर सवाल खड़े हो गए हैं। मामला रूसा के पाठ्यक्रम में एक उपन्यास की अनुवादित पुस्तक से जुड़ा है। इसमें जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।
कक्षाओं में पढ़ाते समय असहज महसूस कर रहे प्राध्यापक इस मामले को धर्मगुरु दलाईलामा के समक्ष उठा चुके हैं। छात्र संगठनों ने भी उपन्यास की अनुवादित पुस्तक की भाषा को जातीय भावना जगाने से प्रेरित बताकर सिलेबस से हटाने की मांग की है।
रूसा पाठ्यक्रम में अंग्रेजी विषय के छठे सेमेस्टर में आजादी से पूर्व ओमप्रकाश वाल्मीकि के लिखे जूठन उपन्यास के अनुवादित अंश शामिल किए गए हैं। इसमें सवर्ण और पिछड़ी जातियों का संबोधन प्रतिबंधित शब्दों में किया गया है।
छठे सेमेस्टर में इसकी डिटेल स्टडी करवाई जाती है, जबकि परीक्षा में इससे 40 अंकों के प्रश्न भी पूछे जाते हैं। कुछ प्राध्यापकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पाठ्यक्रम के आपत्तिजनक अंश हटाने की मांग को लेकर वे धर्मगुरु दलाईलामा से भी मिल चुके हैं।
मामले की होगी जांच : डॉ. अमर देव
एबीवीपी के संगठन मंत्री कौल नेगी ने कहा कि रूसा सिस्टम बिना तैयारी से लागू किया गया है। इसके चलते सिलेबस हर साल बदला जा रहा है। विद्यार्थी परिषद जूठन उपन्यास को छठे सेमेस्टर के पाठ्यक्रम से हटाने की मांग मुखर करेगी।
एनएसयूआई के पूर्व राष्ट्रीय सचिव सुरजीत भरमौरी ने कहा कि देश को बांटने वाले पाठ्यक्रम बदलने की मांग की जाएगी। देश को जाति आधार पर बांटने वाला पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाने दिया जाएगा।
छठे सेमेस्टर में पढ़ाई जा रही जूठन शीर्षक से पुस्तक ओमप्रकाश वाल्मीकि के उपन्यास का अनुवाद है। वाल्मीकि का आजादी से पहले ही वर्ष 1913 में देहांत हो गया था। उपन्यास में ओमप्रकाश वाल्मीकि ने सवर्ण के पिछड़ी जातियों पर लागू अघोषित कानूनों के बारे में बताया है।
समाज में उनके साथ अपनाए गए भेदभाव वाले रवैये की बातें भी बताई गई हैं। पाठ्यक्रम में शामिल करने के बावजूद अनुवादित पुस्तक में जाति सूचक शब्दों को नहीं हटाया गया है।
हिमाचल प्रदेश उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. अमरदेव ने कहा कि उनके ध्यान में मामला सामने आया है। इसकी जांच करवाई जाएगी। जरूरत पड़ने पर पाठ्यक्रम को हटाया जाएगा।