दीपक उर्फ राजू नामक बदमाश खुद को जितेंद्र उर्फ गोगी का जीजा बताकर उसे चिढ़ाता था। दरअसल जितेंद्र गोगी की रिश्ते की बहन से दीपक का प्रेम-प्रसंग चल रहा था। इस बात पर दीपक मजाक में गोगी को चिढ़ाता था। चूंकि दीपक टिल्लू गैंग का बेहद नजदीकी था, इसलिए गोगी ने दीपक की गोली मारकर हत्या कर दी। इसकी हत्या के बाद टिल्लू ने गोगी की हत्या की कसम खाई। इसी रंजिश में टिल्लू ने गोगी के करीबी अरुण उर्फ कमांडो को मार दिया। इसके बाद दोनों के बीच और दुश्मनी बढ़ गई। लगातार दोनों गैंग एक दूसरे पर हमले करते रहे। दर्जनों लोगों ने इसमें अपनी जान गंवा दी। अब गोगी की मौत के बाद माना जा रहा है कि उसके गुर्गे मौत का बदला लेने के लिए टिल्लू गैंग के लड़कों पर हमला कर सकते हैं।
पुलिस के मुताबिक 2010 में दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रद्धानंद कॉलेज से शुरू हुई मामूली रंजिश ने टिल्लू और गोगी को बड़ा नामी गैंगस्टर बना दिया। दरअस्ल उस समय के दो नामी गैंगस्टर नीतू दाबोदिया को दिल्ली पुलिस ने मुठभेड़ के बाद मार गिराया था। इसके अलावा नीरज बवानिया को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद टिल्लू और गोगी को फलने-फूलने का पूरा समय मिला। कई बार पुलिस ने गोगी को दबोचा।
तीन बार वह पुलिस की कस्टडी से फरार भी हुआ। अभी आखिरी बार स्पेशल सेल ने गोगी को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया था। लॉरेंस बिश्नोई, काला जठेड़ी और वीरेंद्र उर्फ कालू राणा के क्राइम सिंडिकेट में दाखिल होने के बाद टिल्लू और उसके साथियों अब गोगी से डर लगने लगा था। इसलिए उसको जल्द से जल्द खत्म कराया जाना जरूरी थी।
सूत्रों का कहना है कि रिस्क लेते हुए टिल्लू ने पुलिस कस्टडी में ही गोगी को अपने रास्ते से हटवा दिया। माना जा रहा है कि नीरज बवानिया ने भी टिल्लू से हाथ मिलाया हुआ है। पुलिस अब इस पूरे मामले की पड़ताल कर रही है।
जितेंद्र गोगी के गैंग में फिलहाल 200 से अधिक लड़के व शूटर थे मौजूद...
दिल्ली पुलिस सूत्रों का कहना है कि पिछले एक दशक के दौरान जितेंद्र गोगी ने अपनी ताकत को बहुत बढ़ा लिया था। जबरन वसूली, हत्या, हत्या के प्रयास, लूटपाट जैसी वारदात को अंजाम देने के लिए उसके गुर्गे हमेशा तैयार रहते थे। सूत्रों का कहना है कि फिलहाल वह दिल्ली, हरियाणा समेत आसपास के बाकी राज्यों में अपने गैंग की कमान संभाल रहा था। फिलहाल इसके गैंग में 200 से अधिक लड़के काम कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी और राजस्थान जैसे राज्यों में चल रहे क्राइम सिंडिकेट में बदमाश अपने गैंग के सदस्यों की हर तरह से मदद करते थे। वर्चस्व कायम करने के लिए यह आपस में भिड़ रहे थे।