हरियाणा में राहुल और प्रियंका कोई कमाल नहीं कर पाए। कांग्रेस का सूपड़ा ऐसे साफ हुआ मानो सूर्यास्त हो गया है। जानिए प्रदेश में पार्टी की करारी शिकस्त के पीछे के बड़े कारण।
परिवारवाद, अंतर्कलह और संगठन की कमजोरी हरियाणा में एक बार फिर कांग्रेस को ले डूबी। भाजपा की ओर से उतारे गए एक भी प्रत्याशी को कांग्रेस परास्त नहीं कर सकी। यहां तक की जिन प्रत्याशियों पर भाजपा खुद पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी, वे भी इस चुनावी समर में कांग्रेस से आगे निकल गए। अंबाला संसदीय क्षेत्र से रतनलाल कटारिया का लाख विरोध होने के बावजूद कुमारी सैलजा अंबाला से सीट नहीं निकाल सकीं। हुड्डा पिता- पुत्र अपनी सीटें नहीं निकाल सके।
भिवानी से श्रुति चौधरी अपनी सीट नहीं निकाल सकीं। यहां से भाजपा सांसद धर्मबीर को जनता ने दोबारा चुना। वह भी तब जब धर्मबीर यह बयान दे चुके थे कि उनकी लोकसभा चुनाव लड़ने की मंशा नहीं है। वे अब विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। कांग्रेस की इस कमजोरी की सबसे बड़ी वजह पार्टी की आंतरिक कलह रही। हरियाणा में पूरे पांच साल कांग्रेस दो धड़ों में बंटी रही। हुड्डा खेमा अपने समर्थक विधायकों को लेकर तंवर का विरोध करता रहा और डॉ. अशोक तंवर हुड्डा का विरोध करते रहे। आलाकमान के लाख हस्तक्षेप के बाद भी हालात नहीं सुधरे। केंद्रीय नेताओं ने दखल किया लेकिन अंदरूनी जंग बरकरार रही।
बूथ स्तर पर पार्टी संगठन कमजोर रहा
नतीजा यह निकला कि हरियाणा में कांग्रेस का संगठन नहीं खड़ा हो पाया। पार्टी ने राजनीतिक रैलियों में भीड़ तो इकट्ठा कर ली, लेकिन बूथ स्तर पर मतदाताओं को लेकर जाने वाला संगठन कमजोर रहा। पांच साल में पार्टी हरियाणा में जिला अध्यक्ष और ब्लॉक प्रधान नहीं बना सकी।
वंशवाद को भाजपा ने बताया कारण
वंशवाद के आरोप झेल रही कांग्रेस पर सीएम मनोहर लाल ने करारी चोट की है। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में हमने वंशवाद का खात्मा कर दिया। यहां वंशवाद से उनका मतलब उन नेताओं से था जिन्हें परिवार के चलते टिकट मिलती आ रही है। कांग्रेस के श्रुति चौधरी और दीपेंद्र हुडडा जैसे नेताओं पर सीएम ने सीधा निशाना साधा।
अब आंतरिक कलह तेज होने के आसार
हुड्डा को पूरा भरोसा था कि वे हरियाणा में अधिक से अधिक सीटें जीत कर आलाकमान के सामने विधानसभा चुनाव की कमान हासिल करने के लिए ताल ठोकेंगे, लेकिन इस शिकस्त के बाद हरियाणा के राजनतिक हालात पर उन्हें चिंतन करने के लिए विवश होना पड़ेगा। हार के तुरंत बाद चिंतन के बजाए कांग्रेस में आंतरिक कलह तेज होने के आसार हैं। प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर ने टिकटों के बंटवारे को लेकर फिर सवाल खड़ा कर दिया है। अब यह मामला आलाकमान के दरबार में पहुंचेगा। विधानसभा चुनाव में पहले कांग्रेस ने हरियाणा में अपनी पार्टी के भीतर की आंतरिक कलह को शांत नहीं किया तो विधानसभा में हालात और खराब हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव तक सूबे में संगठन को खड़ा करना भी कांग्रेस के लिए चुनौती है।