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Neel Mohan: नील मोहन ने किया लखनऊ का सिर ऊंचा, पढ़ें सेंट फ्रांसिस स्कूल से यूट्यूब के सीईओ तक के सफर की कहानी
माई सिटी रिपोर्टर, अमर उजाला, लखनऊ
Published by: लखनऊ ब्यूरो
Updated Sat, 18 Feb 2023 06:18 PM IST
सार
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नील मोहन ने लखनऊ के सेंट फ्रांसिस स्कूल से कक्षा नौ से 12 तक की पढ़ाई पूरी की थी। उनकी इस उपलब्धि का सभी ने जश्न मनाया और उन्हें बधाइयां दी।
भारतीय मूल के अमेरिकी नील मोहन अब यू-ट्यूब के सीईओ होंगे। नील भले ही देश-दुनिया के लिए इंडो-अमेरिकन हैं पर लखनऊ के लोगों के लिए यह खबर इसलिए खास है कि क्योंकि एक लखनवी ने यू-ट्यूब की कमान संभाली है। दुनिया उन्हें गूगल के 100 मिलियन डॉलर मैन के नाम से भी जानती है। सुसैन वोजिस्की के इस्तीफे के बाद नील को यह कमान सौंपी गई है।
सेंट फ्रांसिस स्कूल से स्टैंनफोर्ड तक तय किया सफर
नील मोहन ने लखनऊ के सेंट फ्रांसिस स्कूल से कक्षा नौ से 12 तक की पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री लेने के लिए स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी चले और वहीं बस गए। कक्षा नौ में उनकी क्लास टीचर रहीं प्रो. निशी पांडेय ने क्लास ग्रुप फोटो साझा करते हुए बताया कि बैठे बच्चों के ठीक पीछे वाली पहली पंक्ति में एकदम बाएं...नील मोहन है। वह क्लास का होनहार छात्र था।
इंटरनेट से पहला परिचय उसी ने करवाया
एचआर कंसल्टेंट गौतम घोष कहते हैं कि 1993-94 में वो आया था, तब उसने पहली बार हम सबका परिचय इंटरनेट से करवाया। बताया कि इंटरनेट की मदद से क्या कुछ जानकारियां हासिल की जा सकती हैं। जो उससे सुना था, उसे पहली बार हम लोगों ने 1998-1999 में इस्तेमाल किया था। उसका घर रिवर बैंक कॉलोनी में था। उसकी ऊंची सोच, उसके सपनों का अंदाजा उसके कमरे की दीवार पर लिखे कैल टेक...(कैलिफोर्निया टेक यूनिवर्सिटी) शब्द से लगाया जा सकता है।
हर दिल अजीज 100 मिलियन मैन को बधाई
केजीएमयू के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ऋषि सेठी कहते हैं कि हमारे अजीज मित्रों में से एक, शांत रहने वाले गूगल के 100 मिलियन मैन को बहुत बधाई। ये तो सब जानते हैं कि गूगल ने उसे 100 मिलियन डॉलर का बोनस देकर रोका था।
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लाइब्रेरी में ज्यादा वक्त बीतता था, स्कूल में सीखी हिंदी
ऑनलाइन एजुकेशन बिजनेस से जुड़े शांतनु कुमार कहते हैं कि 1985 में हमारे स्कूल के सौ वर्ष पूरे हुए थे। 101वें वर्ष में प्रवेश के समय हम कक्षा 7 डी में थे। उस वक्त एक अंग्रेजी बोलने वाला बच्चा आया था, जिसकी विदेशी उच्चारण वाली इंग्लिश सबको आकर्षित करती थी। हिंदी बिल्कुल नहीं आती थी लेकिन स्कूल में रहते हिंदी सीख ली। ज्यादातर वक्त लाइब्रेरी में जाता था। कक्षा 12 के बाद वो चला गया, फिर संपर्क नहीं हुआ। आज एलुमिनाई ग्रुप उसकी इस उपलब्धि का जश्न मना रहा है।
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