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सौहार्द: श्रीनगर में 700 साल पुराने मंगलेश्वर भैरव मंदिर का मुस्लिम कारीगर कर रहे जीर्णोद्धार

अमृतपाल सिंह बाली, श्रीनगर Published by: kumar गुलशन कुमार Updated Wed, 22 Mar 2023 01:27 PM IST
सार

बशीर अहमद ने कहा कि इस प्राचीन मंदिर के निर्माण से यहां के लोग खुश हैं। यहां के लोग दोबारा से एक साथ मस्जिद की अजान और मंदिर की घंटियों की गूंज सुनना चाहते हैं। 90 के दशक के बाद यहां से कश्मीरी पंडित चले गए। अब हमारी गुज़ारिश है कि वो दोबारा यहां आएं।

jammu kashmir Muslim artisans are renovating 700 year old Mangleshwar Bhairav temple in Srinagar
मंगलेश्वर भैरव मंदिर - फोटो : अमृतपाल सिंह बाली

विस्तार
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कश्मीरी पंडितों के पलायन से बंद पड़े और 2014 में आई विनाशकारी बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए सात सौ साल पुराने मंगलेश्वर भैरव मंदिर का जीर्णोद्धार जारी है। श्रीनगर के बाबा डेम्ब इलाके में स्थित इस मंदिर का कश्मीरी पंडित समुदाय में काफी महत्व है।



अब प्रदेश प्रशासन के निर्देश पर पुरातत्व विभाग इस मंदिर को पुराने स्वरूप में लौटाने का काम कर रहा है। यह कार्य स्थानीय मुस्लिम कारीगरों द्वारा किया जा रहा है। 1.62 करोड़ की लागत से मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य जून 2022 में शुरू हुआ था, जिसके अप्रैल तक पूरा होने की संभावना है। इसके बाद इसे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा।


2014 की बाढ़ के बाद हुआ बदहाल

आरएंडबी विभाग के सुपरवाइजर गुलजार अहमद ने बताया कि यह कार्य आर्कियोलॉजिकल विभाग से सौंपा है। यह मंदिर 700 साल पुराना है और 2014 की बाढ़ के बाद बदहाल हालत में था। अब इस मंदिर को फिर से उसी तर्ज से बनाया जा रहा है जैसा पहले था। वोही खतमबंद, वोही सुर्खी चूना आदि का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह कार्य 31 अप्रैल तक खत्म होगा।

खतमबंद से मिलेगी फिर वही पहचान

गौरतलब है कि इस मंदिर को प्राचीन तर्ज पर बनाने के लिए कश्मीर की मशहूर लकड़ी के काम खतमबंद को किया जा रहा है। इस मंदिर में दो पवित्र पेड़ भी हैं, जिन्हें हटाया नहीं गया है। खतमबंद के पारंपरिक काम को करने वाले कारीगर बशीर अहमद के अनुसार वह काफी समय से इस काम से जुड़े हुए हैं। ऐसी इबादतगाहों में काम को अंजाम देने में काफी खुशी होती है। वह कई मस्जिदों के साथ साथ मंदिरों और गुरुद्वारों में भी यह कार्य कर चुके हैं।

खतमबंद कब आई कश्मीर में

बशीर ने बताया कि यह कला (खतमबंद) इस्लामिक संत मीर सैयद अली हमदानी (आरए) द्वारा लाई गई थी, जिन्होंने 14 वीं शताब्दी में अपने अनुयायियों के साथ कश्मीर का दौरा किया था। इसमें ईरान के खातमबंद कारीगर भी शामिल थे।

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कारीगर बशीर अहमद - फोटो : अमृतपाल सिंह बाली
दोबारा एक साथ सुनना चाहते हैं अजान और मंदिर की घंटियों की गूंज: बशीर

स्थानीय निवासी बशीर अहमद ने कहा कि इस प्राचीन मंदिर के निर्माण से यहां के लोग खुश हैं। यहां के लोग दोबारा से एक साथ मस्जिद की अज़ान और मंदिर की घंटियों की गूंज सुनना चाहते हैं। 90 के दशक के बाद यहां से कश्मीरी पंडित चले गए। अब हमारी गुज़ारिश है कि वो दोबारा यहां आएं और इस मंदिर में वैसी ही रौनक हो जैसे पहले हुआ करती थी।

लौट आए धर्मनिरपेक्षता और कश्मीरियत : संजय सराफ

एक कश्मीरी पंडित और राजनेता संजय सराफ ने कहा कि कश्मीर हमेशा से धर्मनिरपेक्षता और कश्मीरियत की मिसाल रहा है और हम चाहते हैं वही माहौल दोबारा आना चाहिए। इस प्राचीन मंदिर को बाबा मंगलेश्वर के नाम से जाना जाता था जो भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। इस इलाके को नमचीबल फ़तेहकदल भी कहा जाता है और कश्मीरी पंडितों की इस इलाके में काफी आबादी हुआ करती थी।

2004 में इसे पंडितों के पलायन के बाद पहली बार खोला गया था और हवन किया गया था। इसमें स्थानीय मुसलमानों ने काफी सहयोग दिया था। कश्मीर में मौजूदा समय में 951 मंदिर हैं, जिसमें से 250 के करीब ठीक हुए हैं और शेष को मरम्मत की जरूरत है। केंद्र सरकार के निर्देशों के चलते मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया है। यह मंदिर पानी के बीचोबीच है और कश्ती में सुबह-सुबह कश्मीरी पंडित मंदिर में बाबा मंगलेश्वर को जल चढ़ाने के लिए जाया करते थे।

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