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‘उनका जो फर्ज है, अहले सियासत जाने, अपना पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे...’। पाक की तरफ से लगातार हो रहे सीजफायर उल्लंघन और सीमा पर गोलाबारी के बावजूद भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दोनों देशों के बीच बरसों पुरानी रस्म बहुत खुलूस के साथ निभाई गई।
लोगों के दिलों में बसे सूफी संत दलीप सिंह मन्हास (बाबा चमलियाल) के सालाना मेले में पाक रेंजर्स ‘बाबा की चादर’ लिए पहुंचे। सुनहरे गोटे से सजी इस चादर को बीएसएफ के डीआईजी पीएस धीमान ने बड़े आदर और सम्मान के साथ बाबा की दरगाह पर चढ़ाने केलिए कुबूल किया। जवाब में बाबा के प्रसाद के रूप में शक्कर और शरबत की ट्रालियां पाक के सुपुर्द कीं, जिनका इंतजार जीरो लाइन के पार जमीं सैकड़ों श्रद्धालुओं की बेचैन आंखों को था।
सरहद के दोनों तरफ के लोगों के लिए श्रद्धा का पर्याय बने बाबा चमलियाल के मेले के दौरान सीमा पर यह दुआओं का दिन था। सेक्टर कमांडर ब्रिगेडियर अमजद हुसैन की अगुवाई में पाक रेंजर्स, सिविल एडमिनिस्ट्रेशन समेत अन्य गणमान्य नागरिकों का 31 सदस्यीय दल सीमा पर पहुंचा था।
जीरो लाइन पर कमांडेंट बीएसएफ ने परंपरागत तरीके से उनका स्वागत किया। सेक्टर कमांडर पाक रेंजर्स को गार्ड आफ आनर दिया गया। दोनों ही पक्षों के प्रतिनिधियों ने एक-दूसरे को तोहफे और मिठाई भेंट की। सीमा पर इस ओर भी लोग टकटकी लगाए दूर से ही कभी अपने हिस्से रहे वतन के लोगों को प्रसाद के इंतजार में बेकल देख रहे थे।
सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर श्रद्धालु इस मेले का हिस्सा बनने पहुंचे थे। बाबा बुल्ले शाह के सूफी गीतों के बीच बाबा की शान में लगातार श्रद्धालु दरगाह पर मत्था टेक अपने दुख-दर्द दूर करने के साथ ही दोनों देशों के बीच अमन-चैन की दुआ कर रहे थे। प्रसाद चख रहे थे।
चक सलारिया, बलांद्रा, गगल पूरे रास्ते बाबा की याद में छबीलें सजाई गई थीं। डीसी सांबा शीतल नंदा के अनुसार मौके को देखते हुए माकूल प्रशासनिक इंतजाम किए गए थे।
बताया जाता है कि सूफी संत बाबा चमलियालमेले का आयोजन तकरीबन साढ़े तीन सौ साल से हो रहा है। माना जाता है कि यहां की मिट्टी के लेप से त्वचा से जुड़ी किसी भी तरह की बीमारी दूर हो जाती है। इसकेचलते यहां दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।
1971 की लड़ाई से पहले पाक रेंजर्स दरगाह तक आकर खुद बाबा चमलियाल की मजार पर चादर चढ़ाते थे, लेकिन लड़ाई के बाद उनके यहां आने पर रोक लग गई। वह भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ही चादर बीएसएफ के अफसरों को साैंप देते हैं।
जीरो लाइन पर सेक्टर कमांडर लेवल मीटिंग भी हुई, जो सुबह 11 बजे से शुरू होकर एक घंटे से ज्यादा चली। इसमें दोनों तरफ से एक-दूसरे को भरोसा दिलाया गया कि सीमा क्षेत्र में शांति और सद्भावना कायम करने का प्रयास होगा।
‘उनका जो फर्ज है, अहले सियासत जाने, अपना पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे...’। पाक की तरफ से लगातार हो रहे सीजफायर उल्लंघन और सीमा पर गोलाबारी के बावजूद भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दोनों देशों के बीच बरसों पुरानी रस्म बहुत खुलूस के साथ निभाई गई।
लोगों के दिलों में बसे सूफी संत दलीप सिंह मन्हास (बाबा चमलियाल) के सालाना मेले में पाक रेंजर्स ‘बाबा की चादर’ लिए पहुंचे। सुनहरे गोटे से सजी इस चादर को बीएसएफ के डीआईजी पीएस धीमान ने बड़े आदर और सम्मान के साथ बाबा की दरगाह पर चढ़ाने केलिए कुबूल किया। जवाब में बाबा के प्रसाद के रूप में शक्कर और शरबत की ट्रालियां पाक के सुपुर्द कीं, जिनका इंतजार जीरो लाइन के पार जमीं सैकड़ों श्रद्धालुओं की बेचैन आंखों को था।
सरहद के दोनों तरफ के लोगों के लिए श्रद्धा का पर्याय बने बाबा चमलियाल के मेले के दौरान सीमा पर यह दुआओं का दिन था। सेक्टर कमांडर ब्रिगेडियर अमजद हुसैन की अगुवाई में पाक रेंजर्स, सिविल एडमिनिस्ट्रेशन समेत अन्य गणमान्य नागरिकों का 31 सदस्यीय दल सीमा पर पहुंचा था।
बड़ी आस्था से जुटते हैं हजारों श्रद्धालु
दरगाह पर जुटे श्रद्धालु
- फोटो : Amar Ujala
जीरो लाइन पर कमांडेंट बीएसएफ ने परंपरागत तरीके से उनका स्वागत किया। सेक्टर कमांडर पाक रेंजर्स को गार्ड आफ आनर दिया गया। दोनों ही पक्षों के प्रतिनिधियों ने एक-दूसरे को तोहफे और मिठाई भेंट की। सीमा पर इस ओर भी लोग टकटकी लगाए दूर से ही कभी अपने हिस्से रहे वतन के लोगों को प्रसाद के इंतजार में बेकल देख रहे थे।
सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय कर श्रद्धालु इस मेले का हिस्सा बनने पहुंचे थे। बाबा बुल्ले शाह के सूफी गीतों के बीच बाबा की शान में लगातार श्रद्धालु दरगाह पर मत्था टेक अपने दुख-दर्द दूर करने के साथ ही दोनों देशों के बीच अमन-चैन की दुआ कर रहे थे। प्रसाद चख रहे थे।
चक सलारिया, बलांद्रा, गगल पूरे रास्ते बाबा की याद में छबीलें सजाई गई थीं। डीसी सांबा शीतल नंदा के अनुसार मौके को देखते हुए माकूल प्रशासनिक इंतजाम किए गए थे।
तीन सौ साल से हो रहा है आयोजन
मेले के दौरान उमड़ी भीड़
- फोटो : Amar Ujala
बताया जाता है कि सूफी संत बाबा चमलियालमेले का आयोजन तकरीबन साढ़े तीन सौ साल से हो रहा है। माना जाता है कि यहां की मिट्टी के लेप से त्वचा से जुड़ी किसी भी तरह की बीमारी दूर हो जाती है। इसकेचलते यहां दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।
1971 की लड़ाई से पहले पाक रेंजर्स दरगाह तक आकर खुद बाबा चमलियाल की मजार पर चादर चढ़ाते थे, लेकिन लड़ाई के बाद उनके यहां आने पर रोक लग गई। वह भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा पर ही चादर बीएसएफ के अफसरों को साैंप देते हैं।
जीरो लाइन पर सेक्टर कमांडर लेवल मीटिंग भी हुई, जो सुबह 11 बजे से शुरू होकर एक घंटे से ज्यादा चली। इसमें दोनों तरफ से एक-दूसरे को भरोसा दिलाया गया कि सीमा क्षेत्र में शांति और सद्भावना कायम करने का प्रयास होगा।