हैदराबाद में महिला चिकित्सक की रेप के बाद हत्या को लेकर बुधवार को राजकीय स्नात्कोत्तर महिला मह
बेटियों के उत्पीड़न के एक के बाद एक कई ऐसे केस सामने आ चुके हैं, जिनके नाम से इंसानियत की भी रूह कांप जाए। हैदराबाद तो छोड़ो अब तो अपना रोहतक भी सेफ नहीं। हाल ही में एक हैवान पिता के बेटी की अस्मत लूटने का मामला सामने आया है तो कोई निर्भया, कोई दामिनी क्या करेगी। देश में आए दिन कोई न कोई निर्भया दुष्कर्मियों का शिकार बन कर दम तोड़ रही है। ऐसी घटना के लिए व्यवस्था ज्यादा जिम्मेदार है। उधर, लोग मोमबत्तियां हाथ में लेकर विरोध में एक दिन सड़क पर आते हैं फिर सब भूल जाते हैं। दुष्कर्म की घटनाओं का समाधान मोमबत्ती जलाकर रोष जताना नहीं है, बल्कि जिम्मेदारों को सख्त कदम उठाने होंगे। समाज में जागरूकता की कमी है यहां बेटियां खुद को कमजोर समझती हैं, क्योंकि हमारी परवरिश ही ऐसे हुई है। परिजनों को बेटियों पर यकीन करना होगा और उनका साथ देना होगा तभी समाज में बदलाव आएगा। ऐसे मामलों में दोषियों को बीच चौराहे पर सजा ए मौत दी जानी चाहिए। जब तक सजा का खौफ नहीं होगा, आए दिन बेटियों के यूं ही दुष्कर्म होते रहेंगे। दूसरे सबक नहीं लेंगे। दिल्ली का निर्भया केस सात साल पुराना हो चुका है। अब तक उसके दोषियों को सजा नहीं मिली है। बुधवार को राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय में अमर उजाला के संवाद कार्यक्रम में छात्राओं ने कुछ यूं अपना आक्रोश जाहिर किया।
दुष्कर्मी को किसी तरह की सुविधा न दी जाए। उन्हें पब्लिक के हवाले कर दिया जाए। दोषियों में डर बनाने के लिए सजा का खौफ जरूरी है। इसके लिए सही समय पर उचित कार्रवाई की जाने की जरूरत है। पुलिस, प्रशासन, सरकार व अदालत सभी अपने पक्ष की ईमानदारी बरतते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाए, ताकि दोषी को सजा दी जा सके।
- राखी, छात्रा बीए द्वितीय वर्ष।
दुष्कर्म सरीखी घटनाएं बदलते समय की देन है। इन पर अंकुश के लिए सोच में परिवर्तन जरूरी है। बच्चों को संस्कारी बनाने के साथ अभिभावकों को बेटे-बेटी के फर्क को मिटाकर बेटियों पर भी यकीन करना होगा। महिला सशक्तीकरण के साथ समाज में निर्भया सरीखी घटनाओं पर चिंतन की जरूरत है। हम क्या कर सकते हैं, यह सोचना होगा। निर्भया न हो इसके लिए मिलकर आगे बढ़ना होगा।
- किरण, बीएससी नॉन मेडिकल द्वितीय वर्ष।
दिल्ली निर्भया कांड के बाद भी लगातार दुष्कर्म की नृशंस घटनाएं जारी हैं। ये लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसका अंत क्या, कब और कैसे हो, यह हमें ही सोचना होगा। इसके लिए जनता ऐसे लोगों को सरेआम सजा दे। पुलिस इन्हें बचाती है। दोषी कानून की आड़ लेते हैं। इसलिए तरंत एक्शन जरूरी है। नाबालिग भी पूरा दोषी होता है। उसे भी न बख्शा जाए।
- लक्की, बीकॉम सेकंड ईयर।
समाज में जागरूकता का प्रयास लगातार हो। सभी इस अभियान में जुड़ें। कुछ कमियां अपनी भी होती हैं। उन्हें सुधारने की जरूरत है। रिश्तेदार ही कई मामलों में गलत काम करते हैं। इन पर भी अंकुश जरूरी है। दुर्गा शक्ति एप का प्रयोग अपनी सुरक्षा के लिए जरूर करना चाहिए। मुश्किल समय में घबराने या डरने के बजाय सामने वाले से लडऩा चाहिए।
- नीलम कुमारी गुप्ता, हॉस्टल सुपरिडेंट।
निर्भया कांड या उस जैसे दूसरे मामलों में जनता को सख्त कदम उठाने चाहिए। दोषियों को वही प्रताड़ना देनी चाहिए, जो उन्होंने किसी की बेटी को दी। उसी तरह उसे तड़पाया जाए। नियम व कानून हर व्यक्ति पर समान रूप से लागू हों। किसी की बेटी को मारने वाले को भी सरेआम मार दिया जाए, तभी अपराधियों में खौफ पैदा होगा।
- नितिन, बीएससी नॉन मेडिकल सेकंड ईयर।
बेटियों के उत्पीड़न के एक के बाद एक कई ऐसे केस सामने आ चुके हैं, जिनके नाम से इंसानियत की भी रूह कांप जाए। हैदराबाद तो छोड़ो अब तो अपना रोहतक भी सेफ नहीं। हाल ही में एक हैवान पिता के बेटी की अस्मत लूटने का मामला सामने आया है तो कोई निर्भया, कोई दामिनी क्या करेगी। देश में आए दिन कोई न कोई निर्भया दुष्कर्मियों का शिकार बन कर दम तोड़ रही है। ऐसी घटना के लिए व्यवस्था ज्यादा जिम्मेदार है। उधर, लोग मोमबत्तियां हाथ में लेकर विरोध में एक दिन सड़क पर आते हैं फिर सब भूल जाते हैं। दुष्कर्म की घटनाओं का समाधान मोमबत्ती जलाकर रोष जताना नहीं है, बल्कि जिम्मेदारों को सख्त कदम उठाने होंगे। समाज में जागरूकता की कमी है यहां बेटियां खुद को कमजोर समझती हैं, क्योंकि हमारी परवरिश ही ऐसे हुई है। परिजनों को बेटियों पर यकीन करना होगा और उनका साथ देना होगा तभी समाज में बदलाव आएगा। ऐसे मामलों में दोषियों को बीच चौराहे पर सजा ए मौत दी जानी चाहिए। जब तक सजा का खौफ नहीं होगा, आए दिन बेटियों के यूं ही दुष्कर्म होते रहेंगे। दूसरे सबक नहीं लेंगे। दिल्ली का निर्भया केस सात साल पुराना हो चुका है। अब तक उसके दोषियों को सजा नहीं मिली है। बुधवार को राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय में अमर उजाला के संवाद कार्यक्रम में छात्राओं ने कुछ यूं अपना आक्रोश जाहिर किया।
दुष्कर्मी को किसी तरह की सुविधा न दी जाए। उन्हें पब्लिक के हवाले कर दिया जाए। दोषियों में डर बनाने के लिए सजा का खौफ जरूरी है। इसके लिए सही समय पर उचित कार्रवाई की जाने की जरूरत है। पुलिस, प्रशासन, सरकार व अदालत सभी अपने पक्ष की ईमानदारी बरतते हुए अपनी जिम्मेदारी निभाए, ताकि दोषी को सजा दी जा सके।
- राखी, छात्रा बीए द्वितीय वर्ष।
दुष्कर्म सरीखी घटनाएं बदलते समय की देन है। इन पर अंकुश के लिए सोच में परिवर्तन जरूरी है। बच्चों को संस्कारी बनाने के साथ अभिभावकों को बेटे-बेटी के फर्क को मिटाकर बेटियों पर भी यकीन करना होगा। महिला सशक्तीकरण के साथ समाज में निर्भया सरीखी घटनाओं पर चिंतन की जरूरत है। हम क्या कर सकते हैं, यह सोचना होगा। निर्भया न हो इसके लिए मिलकर आगे बढ़ना होगा।
- किरण, बीएससी नॉन मेडिकल द्वितीय वर्ष।
दिल्ली निर्भया कांड के बाद भी लगातार दुष्कर्म की नृशंस घटनाएं जारी हैं। ये लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसका अंत क्या, कब और कैसे हो, यह हमें ही सोचना होगा। इसके लिए जनता ऐसे लोगों को सरेआम सजा दे। पुलिस इन्हें बचाती है। दोषी कानून की आड़ लेते हैं। इसलिए तरंत एक्शन जरूरी है। नाबालिग भी पूरा दोषी होता है। उसे भी न बख्शा जाए।
- लक्की, बीकॉम सेकंड ईयर।
समाज में जागरूकता का प्रयास लगातार हो। सभी इस अभियान में जुड़ें। कुछ कमियां अपनी भी होती हैं। उन्हें सुधारने की जरूरत है। रिश्तेदार ही कई मामलों में गलत काम करते हैं। इन पर भी अंकुश जरूरी है। दुर्गा शक्ति एप का प्रयोग अपनी सुरक्षा के लिए जरूर करना चाहिए। मुश्किल समय में घबराने या डरने के बजाय सामने वाले से लडऩा चाहिए।
- नीलम कुमारी गुप्ता, हॉस्टल सुपरिडेंट।
निर्भया कांड या उस जैसे दूसरे मामलों में जनता को सख्त कदम उठाने चाहिए। दोषियों को वही प्रताड़ना देनी चाहिए, जो उन्होंने किसी की बेटी को दी। उसी तरह उसे तड़पाया जाए। नियम व कानून हर व्यक्ति पर समान रूप से लागू हों। किसी की बेटी को मारने वाले को भी सरेआम मार दिया जाए, तभी अपराधियों में खौफ पैदा होगा।
- नितिन, बीएससी नॉन मेडिकल सेकंड ईयर।