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Delhi: राष्ट्रीय फलक पर छवि बनाने की राह पर केजरीवाल, अध्यादेश को राज्यसभा में हराकर क्रेडिट लेने की रणनीति
नवनीत शरण, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Digvijay Singh
Updated Tue, 23 May 2023 07:02 AM IST
राजनीतिक दांव साधते हुए केजरीवाल ने कहा कि राज्यसभा में यह बिल पास नहीं हुआ, तो 2024 लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल साबित होगा। इससे पूरे देश में संदेश चला जाएगा कि 2024 में केंद्र की भाजपा सरकार जा रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
- फोटो : Twitter/@ArvindKejriwal
राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद अब आम आदमी पार्टी अपनी लाइन लंबी करने की मुहिम में है। दिल्ली, पंजाब से आगे निकलकर राष्ट्रीय फलक पर पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अपनी छवि बनाने की राह पर आगे निकल रहे हैं। विपक्षी पार्टियों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए उनके हाथ केंद्र सरकार का ताजा अध्यादेश भी लगा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आए अध्यादेश के खिलाफ सभी विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने की कवायद में हैं। हालांकि यह राह उनके लिए बहुत आसान नहीं है, क्योंकि दिल्ली में उनके लिए कांग्रेस या दूसरे दल भाजपा की तरह ही दुश्मन हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अलग उनका विपक्षी एकजुटता फॉर्मूला है।
दिल्ली सरकार और केंद्र का झगड़ा पुराना है, लेकिन नए अध्यादेश के बाद यह और भी बढ़ गया है। इस झगड़े में अब विपक्षी दलों की भी एंट्री हो गई है, क्योंकि कहीं न कहीं गैर भाजपा शासित राज्यों की कमोबेश यही स्थिति है। इसी का फायदा उठाकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों से केंद्र के नए अध्यादेश के खिलाफ समर्थन मांग रहे हैं। वह स्पष्ट तौर से विपक्ष को एकजुट होकर अध्यादेश को संसद में हराने के लिए जोड़-तोड़ की कवायद में हैं। इसे लेकर वह फ्रंट फुट पर खेलना चाहते हैं और इस बिल को राज्यसभा में हराकर क्रेडिट लेने की होड़ में हैं। गेंद को अपने कोर्ट में लेकर एक मंच पर सभी विपक्ष को लाकर वह केंद्र की मोदी सरकार को चुनौती देने को तैयार हैं।
राजनीतिक दांव साधते हुए केजरीवाल ने कहा कि राज्यसभा में यह बिल पास नहीं हुआ, तो 2024 लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल साबित होगा। इससे पूरे देश में संदेश चला जाएगा कि 2024 में केंद्र की भाजपा सरकार जा रही है। केजरीवाल इस मुद्दे पर दूसरे दलों के नेताओं का समर्थन पाने के लिए उनसे मुलाकात करने की पूरी रणनीति तैयार कर चुके हैं, क्योंकि संख्या के आधार पर देखा जाए तो एनडीए के पास लोकसभा में बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में बहुमत से सीटें कुछ कम हैं। लिहाजा लोकसभा में तो बहुमत भाजपा को मिल जाएगा, लेकिन राज्यसभा में थोड़ा कठिन होगा।
उधर, केजरीवाल की सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस है, क्योंकि ''आप'' को लेकर उसका स्टैंड क्लियर नहीं है। केजरीवाल की पार्टी से पूरी तरह कांग्रेस की दूरी बनी हुई है। रणनीतिकारों का भी मानना है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के ही पुराने जनाधार को अपने पक्ष में करके मजबूत हो रही है। ऐसे में कांग्रेस का पक्ष में आना थोड़ा कठिन है। प्रदेश कांग्रेस ने भी कहा है कि केजरीवाल सरकार की निष्क्रियता, दिल्ली में बिगड़ती प्रशासनिक व्यवस्था और अस्थिरता के कारण दिल्ली सरकार को तुरंत बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लागू कर देना चाहिए। लिहाजा अब देखना है कि केजरीवाल की मुहिम संसद में क्या रंग लाती है।
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