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धुंधली होती नजर: 75 फीसदी को नहीं मिल पाता नजदीक का चश्मा, देश में 50 करोड़ चश्में की जरूरत; सरकार देती 10 लाख

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: Vikas Kumar Updated Tue, 10 Jan 2023 09:50 PM IST
सार

एम्स के डॉ. आरपी सेंटर में कम्युनिटी ऑप्थल्मोलॉजी के प्रमुख डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि देश में 50 करोड़ लोगों को चश्मे की जरूरत है, लेकिन देश में इसकी उपलब्धता नहीं है। 

धुंधली होती नजर
धुंधली होती नजर - फोटो : अमर उजाला

विस्तार

आंखों की मांसपेशियां कमजोर होने से नजदीक का दिखाई देना कम हो जाता है। इस समस्या को दूर करने में चश्मा सहायक है, लेकिन 75 फीसदी को यह मिल ही नहीं पाता। अधिकतर जगहों पर ज्यादा दाम होने से लोग इसे खरीदने से हिचकते हैं। इस समय देश में करीब 50 करोड़ चश्मों की जरूरत है, लेकिन उपलब्धता काफी कम है। इस कमी को दूर करने के लिए मंगलवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली में तीसरा लीडरशिप एक्सचेंज प्रोग्राम हुआ।

कार्यक्रम में एम्स के साथ आंखों की समस्या पर काम करने वाले एनजीओ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, सीएसआर के तहत काम कर रही संस्था व अन्य ने भाग लिया। इस बारे में एम्स के डॉ. आरपी सेंटर में कम्युनिटी ऑप्थल्मोलॉजी के प्रमुख डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि देश में 50 करोड़ लोगों को चश्मे की जरूरत है, लेकिन देश में इसकी उपलब्धता नहीं है। इस कमी को दूर करने के लिए सभी एक मंच पर आए हैं। 

उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस दिशा में काम करें तो लोगों को चश्मा मिल सकता है। इसके लिए सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि देश में व्यापक स्तर पर चश्मे का निर्माण हो। यह सस्ते और सुलभ हों। इनकी सप्लाई चैन आसान हो जिससे देश के कोने कोने तक पहुंच हो जाए। उन्होंने कहा कि नजदीक के चश्मे के लिए ज्यादा जांच की जरूरत नहीं होती। यदि पीड़ित को चश्मा पहनने के बाद यदि साफ दिखता है तो वह उस नंबर का चश्मा लगा सकता है। यदि सरकार आशा वर्कर की मदद से यह काम करें तो बड़ी संख्या को यह मिल सकता है।

25 फीसदी को मिला चश्मा
डॉ. वशिष्ठ ने बताया कि एम्स ने देश में आंखों की दिव्यांगता की रोकथाम के लिए एक सर्वे किया था। इसमें 50 साल से अधिक आयु के 90 हजार लोगों की जांच की गई। इसमें पाया गया कि 75 फीसदी लोगों को चश्मे की जरूरत है, लेकिन उन्हें मिला नहीं या उन्होंने लिया नहीं। उन्होंने कहा कि पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर लोगों ने महंगा होने के कारण लोगों ने चश्मा नहीं लिया। डॉ. वशिष्ठ ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने विश्व में 2030 तक इस समस्या को दूर करने का लक्ष्य रखा गया है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता की जरूरत
डॉ. वशिष्ठ ने कहा कि देश में आंखों की जांच करने वालों की संख्या काफी कम है। देश में इनकी संख्या 80 हजार होनी चाहिए, जबकि 20 हजार ही उपलब्ध हैं। इस कमी को दूर करने के लिए इस क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की जरूरत जिससे जांच आसानी से हो सकें।

यह है देश का आंकड़ा
- 5-15 साल के बच्चे की नजदीक की नजर खराब होने पर दो करोड़ चश्मों की जरूरत।
-सरकार स्कूल स्क्रीनिंग प्रोग्राम के तहत 10 लाख चश्मा उपलब्ध कराती है।
- 40 साल से अधिक के 27.5 करोड़ लोगों को नजदीक का चश्मे की जरूरत।
- 40 साल से अधिक के 22 करोड़ लोगों को दूर के चश्मे की जरूरत है।
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