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बुनकरों की डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘बुनकर’ को मिला राष्ट्रीय अवार्ड

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, वाराणसी Published by: गीतार्जुन गौतम Updated Sun, 11 Aug 2019 04:11 PM IST
बुनकर फिल्म।
बुनकर फिल्म। - फोटो : Social media

बनारस के बुनकरों के जीवन और कार्यशैली पर आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘बुनकर’ को 66 वें नेशनल अवॉर्ड 2018 में नान फीचर फिल्म कटेगरी के तहत बेस्ट आर्ट एंड कल्चर फिल्म का पुरस्कार दिया गया है। इस फिल्म में बुनकरों के जीवन की कठिनाइयों, उनकी कला की पृष्ठभूमि और बुनकरों की समस्याओं के समाधान के विषय को प्रमुखता से उठाया गया है। अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े लोगों की प्रतिक्रिया और उनके सुझाव भी लिए गए हैं।



फिल्म के निदेशक बलिया के चांदपुर गांव के निवासी सत्यप्रकाश उपाध्याय हैं जो करीब 10 वर्षों से मुंबई फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हैं। उन्होंने लगातार कई फिल्में बनाईं। बुनकर उनकी पहली डेब्यू फिल्म  है जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। सत्यप्रकाश ने बताया बचपन से ही बनारस से नाता रहा है। मैंने और मेरे फिल्म  की प्रोड्यूसर सपना शर्मा ने बनारसी साड़ियों को लेकर डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की सोची थी।


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इसके लिए हम बनारस आए। इसके बाद बुनकरों और सोशल वर्कर से भी हम मिले। धीरे-धीरे हम इस क्षेत्र की कठिनाइयों, कला, इतिहास सभी की गहराई में चलते चले गए। इस कला की बारीकियों को देखा ऐसे परिवारों से भी मिले जहां बुनकारी कई पीढ़ियों से की जा रही है मगर समस्याओं को देखते हुए आगे की पीढ़ी इसमें आना नहीं चाहती।

यहां पर बुनकारी की समस्या को देखते हुए काफी बुनकरों ने यह काम छोड़कर दूसरा कोई व्यवसाय कर लिया। जैसे-जैसे फिल्म को लेकर हम लोगों से मिलते चले गए हमें एक-एक कर अलग-अलग बहुत सारी समस्याएं दिखाई दी। इस क्षेत्र की चुनौतियां, इसके साथ ही अलग-अलग समाधान भी मिले। जब इन सब को एक साथ जोड़ा तो एक बड़ी समस्या बनकर समझ में आई जिसके कई सारे समाधान भी निकले।

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फिल्म के डीओपी विजय मिश्रा ने काफी खूबसूरती से इसे फिल्माया। इस फिल्म की दो बार स्क्रीनिंग बनारस में हो चुकी है। फिल्म की शुरुआत हमने एनिमेशन से की है जिसमें बुनाई का इतिहास इससे जुड़े घरानों को दिखाया गया है। बुनकरों की बातचीत है। उसके बाद पूरी फिल्म को एक धागे में पिरो कर रख दिया गया है जो केवल जागरूकता ही न फैलाएं बल्कि लोगों के दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ जाए।

इस फिल्म को देखने के बाद बुनकरों की समस्या का समाधान भी हो। 68 मिनट की फिल्म में हमने अपनी पूरी ताकत झोंक दी ताकि इसका हर पक्ष निखर कर आए। फिल्म के बाद मैंने सिद्धार्थ काक के प्रोडक्शन में ‘मेड इन बनारस’ फिल्म भी डायरेक्ट की है। अभी फिलहाल एक बड़ी फिल्म की तैयारी कर रहा हूं जिसका नाम कूपमंडूक है। इसकी शुरुआत दी बनारस से करने की कोशिश है। कह सकता हूं बनारस मेरे लिए बहुत ही लकी साबित होता है । सत्यप्रकाश के परदादा जी ने संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से ज्योतिष की पढ़ाई की थी।
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