पुष्पेन्द्र कुमार त्रिपाठी वाराणसी। लोकसभा चुनाव से पहले माना जा रहा था कि 2014 में वाराणसी संसदीय सीट से आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को मिले मत भाजपा के खिलाफ और किसी एक विपक्षी दल की झोली में एकमुश्त जाएंगे। इसके लिए बसपा प्रमुख मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने खूब प्रयास किए, मगर वह इन मतों को सहेज पाने में विफल रहे। नतीजतन, इन मतों का बिखराव हुआ और लाभ कांग्रेस व सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मिला। हालांकि, केजरीवाल को मिले मत सप-बसपा गठबंधन या कांग्रेस के प्रत्याशी को एकमुश्त मिल जाते तब भी वो चुनाव नहीं जीत पाते, लेकिन यह जरूर है कि प्रतिस्पर्धा तगड़ी हो जाती। 2014 के लोकसभा चुनाव में केजरीवाल को वाराणसी संसदीय सीट से 2,09,238 मत मिले थे। कांग्रेस को 75,614, बसपा को 60,579 और सपा प्रत्याशी को 45,291 मत मिले थे। इन चारों प्रत्याशियों को कुल 3,90,722 मत मिले थे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 5,81,023 मत मिले थे। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी का मत प्रतिशत लगभग दोगुना हो गया। इसके बावजूद दोनों को 3,47,707 मत ही मिल सके, जो कि 2014 में केजरीवाल, सपा, बसपा और कांग्रेस प्रत्याशी को मिलाकर मिले मतों से 43,015 मत कम है। वहीं, इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले मतों का प्रतिशत लगभग आठ फीसदी बढ़ गया और उन्हें 6,74,664 मत मिले। राजनीति के जानकारों का कहना है कि केजरीवाल से समाज का एक वर्ग बदलाव के लिए जुड़ा था, मगर चुनाव के बाद केजरीवाल ने काशी की ओर मुड़कर नहीं देखा। इसके चलते केजरीवाल से प्रभावित हुए वर्ग के मतदाताओं को जो राजनीतिक दल अपनी रीति-नीति से जितना प्रभावित कर पाया, वे उधर ही खिंचे चले गए। 63.62 प्रतिशत मत मोदी और 36 प्रतिशत वोट 25 प्रत्याशियों को लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से 26 प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 63.62 प्रतिशत मत मिले, जबकि अन्य 25 प्रत्याशियों को 36 प्रतिशत मिले। नोटा के हिस्से में 0.38 प्रतिशत मत आए। 2014 में प्रधानमंत्री को 56.36 प्रतिशत मिले थे और 43.64 प्रतिशत मत 41 प्रत्याशियों व नोटा के हिस्से में गए थे।
पुष्पेन्द्र कुमार त्रिपाठी
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वाराणसी। लोकसभा चुनाव से पहले माना जा रहा था कि 2014 में वाराणसी संसदीय सीट से आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल को मिले मत भाजपा के खिलाफ और किसी एक विपक्षी दल की झोली में एकमुश्त जाएंगे। इसके लिए बसपा प्रमुख मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने खूब प्रयास किए, मगर वह इन मतों को सहेज पाने में विफल रहे। नतीजतन, इन मतों का बिखराव हुआ और लाभ कांग्रेस व सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मिला। हालांकि, केजरीवाल को मिले मत सप-बसपा गठबंधन या कांग्रेस के प्रत्याशी को एकमुश्त मिल जाते तब भी वो चुनाव नहीं जीत पाते, लेकिन यह जरूर है कि प्रतिस्पर्धा तगड़ी हो जाती।
2014 के लोकसभा चुनाव में केजरीवाल को वाराणसी संसदीय सीट से 2,09,238 मत मिले थे। कांग्रेस को 75,614, बसपा को 60,579 और सपा प्रत्याशी को 45,291 मत मिले थे। इन चारों प्रत्याशियों को कुल 3,90,722 मत मिले थे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 5,81,023 मत मिले थे। 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी का मत प्रतिशत लगभग दोगुना हो गया। इसके बावजूद दोनों को 3,47,707 मत ही मिल सके, जो कि 2014 में केजरीवाल, सपा, बसपा और कांग्रेस प्रत्याशी को मिलाकर मिले मतों से 43,015 मत कम है। वहीं, इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले मतों का प्रतिशत लगभग आठ फीसदी बढ़ गया और उन्हें 6,74,664 मत मिले।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि केजरीवाल से समाज का एक वर्ग बदलाव के लिए जुड़ा था, मगर चुनाव के बाद केजरीवाल ने काशी की ओर मुड़कर नहीं देखा। इसके चलते केजरीवाल से प्रभावित हुए वर्ग के मतदाताओं को जो राजनीतिक दल अपनी रीति-नीति से जितना प्रभावित कर पाया, वे उधर ही खिंचे चले गए।
63.62 प्रतिशत मत मोदी और 36 प्रतिशत वोट 25 प्रत्याशियों को
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से 26 प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 63.62 प्रतिशत मत मिले, जबकि अन्य 25 प्रत्याशियों को 36 प्रतिशत मिले। नोटा के हिस्से में 0.38 प्रतिशत मत आए। 2014 में प्रधानमंत्री को 56.36 प्रतिशत मिले थे और 43.64 प्रतिशत मत 41 प्रत्याशियों व नोटा के हिस्से में गए थे।
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