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पिछड़ों की गोलबंदी ने बिगाड़ा गठबंधन का गणित
मुजफ्फरनगर। वर्ष 2014 की तरह पिछड़ा वर्ग का वोट इस बार भी भाजपा के साथ डटकर खड़ा रहा। पिछड़ों की भाजपा के पक्ष में गोलबंदी और सवर्णों में वोटिंग को लेकर उत्साह ने गठबंधन के गणित को फेल कर दिया। इसी के कारण मुजफ्फरनगर और कैराना समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश कई सीटों पर भाजपा ने कड़ी चुनौती के बावजूद जीत हासिल दर्ज की है।
भाजपा के सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन के किले को तोड़ना मुश्किल भरा था। दलित-मुस्लिम गठजोड़ के साथ गठबंधन बेहद मजबूत स्थिति में था। मुजफ्फरनगर में तो रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह खुद मैदान में थे। सपा-बसपा के साथ ही उनके पास रालोद का वोट बैंक भी था। इसके अलावा कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी न उतारकर उन्हें और मजबूत कर दिया था। छोटे चौधरी के मैदान में आने से मुजफ्फरनगर की गिनती हॉट सीटों में होने लगी थी। उनके सामने भाजपा प्रत्याशी का टिक पाना आसान नहीं था। जाट राजनीति के धुरंधर चौधरी अजित सिंह ने चुनाव की घोषणा होने से करीब एक साल पहले से ही मेहनत करनी शुरू कर दी थी। कैराना सीट पर भी भाजपा के लिए कड़ी चुनौती थी। हुकम सिंह की मौत के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। इस सीट पर फिर से उप चुनाव के परिणाम दोहराए जाने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन गठबंधन की मजबूती के खिलाफ पिछड़ा वर्ग का वोट भाजपा के साथ डटकर खड़ा रहा। करीब 50 प्रतिशत आबादी वाले पिछड़े और सवर्ण मतदाताओं की गोलबंदी ने भाजपा प्रत्याशियों के सिर पर जीत का सेहरा बांधा। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पाल, सैनी, धीमान, कश्यप, कुम्हार समेत अन्य पिछड़े वर्ग के वोटरों की संख्या लगभग सात लाख से ज्यादा है। जिस दल के साथ भी यह वोट जुड़ जाता है, उसकी जीत तय हो जाती है।
उत्साह से लबरेज थे मतदाता
लोकसभा चुनाव में मतदाता उत्साह से लबरेज थे। पिछड़ा वर्ग और सवर्ण मतदाताओं ने भाजपा को जिताने के लिए जबर्दस्त वोटिंग की। हिंदू बाहुल्य बूथों पर मतदान का प्रतिशत अच्छा रहा था। मतदान का प्रतिशत अधिक होना भी भाजपा के पक्ष में गया और मुजफ्फरनगर में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भाजपा को जीत हासिल हुई।