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पश्चिमी यूपी की जाट राजनीति का केंद्र बिंदु माने जाने वाले चौधरी परिवार (चौधरी चरण सिंह) को 48 साल बाद भी मुजफ्फरनगर रास नहीं आया। बागपत सीट की विरासत अपने बेटे को सौंपकर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने पहुंचे चौधरी अजित सिंह भाजपा के डॉ. संजीव बालियान से हार गए।
वहीं उनके पुत्र जयंत चौधरी भी बागपत सीट की विरासत बचाने में नाकाम रहे। उन्हें भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने हराया। हालांकि दोनों जीत-हार में बेहद नजदीकी मुकाबला देखने को मिला। दोनों तरफ के नेताओं और कार्यकर्ताओं की सांसें अटकी रहीं।
चौधरी चरण सिंह ने वर्ष 1971 में बीकेडी से बागपत लोकसभा सीट की बजाय मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। ये प्रदेश की राजनीति से केंद्र की राजनीति में जाने के लिए उनका पहला चुनाव था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे।
इसके बाद बागपत से ही चुनाव जीतकर संसद जाते रहे। उनके निधन के बाद से बागपत सीट उनके बेटे चौधरी अजित सिंह के कब्जे में रही। हालांकि चौधरी अजित सिंह भी यहां से दो बार चुनाव हारे। वर्ष 2014 में उन्हें भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने हराया था।
बदले राजनीतिक समीकरण के तहत रालोद ने सपा-बसपा से गठबंधन कर न केवल तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, बल्कि चुनावी रणनीति बनाते हुए चौधरी अजित सिंह ने बागपत सीट की विरासत अपने पुत्र जयंत चौधरी को सौंप दी।
खुद चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने पहुंच गए। तभी से हर किसी की जुबान पर ये था कि मुजफ्फरनगर सीट 48 साल पुराना अपना इतिहास दोहराएगी या चौधरी अजित सिंह को संसद पहुंचाएगी। लेकिन बेहद करीबी मुकाबले में चौ. अजित सिंह भाजपा के डॉ. संजीव बालियान से चुनाव हार गए। वहीं बागपत सीट से चुनाव लड़ रहे उनके पुत्र जयंत चौधरी भी नाकाम रहे।
दोनों सीटों पर देखने को मिला जाटों में बिखराव
मुजफ्फरनगर और बागपत सीट पर रालोद और भाजपा से जाट प्रत्याशी होने के चलते जाटों की वोटों में बिखराव देखने को मिला। कहीं ये बिखराव 50-50 का रहा तो कहीं ये 60-40 का देखने को मिला। मतगणना स्थल पर दोनों पार्टी के एजेंट एक दूसरे को गांवों में मिले वोटों को दिखाकर एक दूसरे की खिंचाई भी करते रहे।
नोट- इन खबरों के बारे आपकी क्या राय हैं। हमें फेसबुक पर कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।
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वहीं उनके पुत्र जयंत चौधरी भी बागपत सीट की विरासत बचाने में नाकाम रहे। उन्हें भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने हराया। हालांकि दोनों जीत-हार में बेहद नजदीकी मुकाबला देखने को मिला। दोनों तरफ के नेताओं और कार्यकर्ताओं की सांसें अटकी रहीं।
चौधरी चरण सिंह ने वर्ष 1971 में बीकेडी से बागपत लोकसभा सीट की बजाय मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। ये प्रदेश की राजनीति से केंद्र की राजनीति में जाने के लिए उनका पहला चुनाव था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे।
इसके बाद बागपत से ही चुनाव जीतकर संसद जाते रहे। उनके निधन के बाद से बागपत सीट उनके बेटे चौधरी अजित सिंह के कब्जे में रही। हालांकि चौधरी अजित सिंह भी यहां से दो बार चुनाव हारे। वर्ष 2014 में उन्हें भाजपा के डॉ. सत्यपाल सिंह ने हराया था।
बदले राजनीतिक समीकरण के तहत रालोद ने सपा-बसपा से गठबंधन कर न केवल तीन सीटों पर चुनाव लड़ा, बल्कि चुनावी रणनीति बनाते हुए चौधरी अजित सिंह ने बागपत सीट की विरासत अपने पुत्र जयंत चौधरी को सौंप दी।
खुद चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने पहुंच गए। तभी से हर किसी की जुबान पर ये था कि मुजफ्फरनगर सीट 48 साल पुराना अपना इतिहास दोहराएगी या चौधरी अजित सिंह को संसद पहुंचाएगी। लेकिन बेहद करीबी मुकाबले में चौ. अजित सिंह भाजपा के डॉ. संजीव बालियान से चुनाव हार गए। वहीं बागपत सीट से चुनाव लड़ रहे उनके पुत्र जयंत चौधरी भी नाकाम रहे।
दोनों सीटों पर देखने को मिला जाटों में बिखराव
मुजफ्फरनगर और बागपत सीट पर रालोद और भाजपा से जाट प्रत्याशी होने के चलते जाटों की वोटों में बिखराव देखने को मिला। कहीं ये बिखराव 50-50 का रहा तो कहीं ये 60-40 का देखने को मिला। मतगणना स्थल पर दोनों पार्टी के एजेंट एक दूसरे को गांवों में मिले वोटों को दिखाकर एक दूसरे की खिंचाई भी करते रहे।
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