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first Ramayana and Geeta written in Urdu in Meerut, preserved in CCSU, was published 122 years ago
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दुर्लभ: मेरठ में उर्दू में लिखी पहली रामायण और गीता सीसीएसयू में संरक्षित, 122 साल पहले हुआ था प्रकाशन
नीरज वर्मा, अमर उजाला, मेरठ
Published by: Dimple Sirohi
Updated Tue, 02 May 2023 08:38 AM IST
उर्दू में लिखी रामायण और श्रीमद्भागवत गीता सीसीएसयू के पुस्तकालय में संरक्षित है। 122 साल पहले दोनों ग्रंथों का प्रकाशन हुआ था, विश्वविद्यालय अब इनका डिजिटलाइजेशन करा रहा है।
122 साल पहले प्रकाशित हुई उर्दू में लिखी रामायण और श्रीमद्भागवत गीता चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू) के केंद्रीय पुस्तकालय में संरक्षित है। विश्वविद्यालय प्रशासन दोनों ग्रंथों का डिजिटलाइजेशन करवा रहा है। केंद्रीय पुस्तकालय उपाध्यक्ष डॉ. जेए सिद्दीकी का दावा है कि देश में इससे पुरानी उर्दू में लिखी रामायण व श्रीमद्भागवत गीता कोई दूसरी नहीं है। डिजिटलाइजेशन के बाद दोनों ग्रंथों को ऑनलाइन किया जाएगा।
उर्दू में रामायण का लेखन महात्मा शिववृत्त लालजी ने किया है। इसका प्रकाशन 1901 में जेएस संत सिंह एंड संस लाहौरी दरवाजा लाहौर में हुआ था। इस रामायण में लेखक समेत छह स्कैच बने हैं।
इनमें जनकपुरी की पुष्पवाटिका में सीता का श्रीराम को देखना, धुनष भंग करते श्रीराम का चित्र, केवट का श्रीराम के चरण धोना, मेघनाथ का हनुमानजी को बंधक बनाकर रावण के दरबार में पेश करना और श्रीराम द्वारा रावण के वध के चित्र हैं।
रामायण में बनाए गए चित्र
- फोटो : अमर उजाला
उर्दू में लिखी श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण का स्कैच है। इसका लेखन स्वामी केसरदार कृष्णदास ने किया है। प्रकाशन देहाती पुस्तक भंडार चावड़ी बाजार दिल्ली द्वारा किया गया है। दोनों दुर्लभ ग्रथों को विवि की एक टीम संरक्षित करके डिजिटलाइजेशन करने में जुटी है। इनको दुर्लभ किताबों के लिए बने कमरे में विशेष अलमारी में रखा गया है। कीट आदि से बचाने के लिए अलमारी में रोजाना कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है।
एक्टर नसीरुद्दीन शाह के भाई मुकर्रम ने दिए दुर्लभ ग्रंथ
पांडुलिपि संरक्षित करने के लिए पटना में खुदा बक्श लाइब्रेरी है। दुर्लभ किताबों को जुटाने के लिए केंद्रीय पुस्तकालय उपाध्यक्ष डॉ. जेए सिद्दीकी पटना पहुंचे, वहां उन्हें पता चला कि मेरठ के सरधना में एक व्यक्ति के पास अतिदुर्लभ किताबें हैं।
डॉ. सिद्दीकी ने लौटकर उस व्यक्ति की तलाश शुरू की। इस बीच उनकी मुलाकात नसीरुद्दीनशाह के भाई मुकर्रम अली शाह से हुई। जिन्होंने कई मुलाकात के बाद उर्दू में लिखे दोनों ग्रंथ दिखाए मगर देने से इन्कार कर दिया। बाद में उन्होंने विश्वविद्यालय को दोनों ग्रंथ सौंप दिए।
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