जखनिया (गाजीपुर)। महंथ महामंडलेश्वर भवानीनंदन यति महाराज ने कहा कि भगवान शंकर कल्याणकारी हैं। उनकी पूजा, आराधना सभी मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ट लाभ की प्राप्ति होती है। यजुर्वेद में बताए गए विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया है लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि-विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्र ॐ नम:शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव-पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है। यह बातें उन्होंने सिद्धपीठ श्री हथियाराम मठ पर आयोजित चातुर्मास महायज्ञ के शुभारंभ के अवसर पर सोमवार की देर शाम रुद्राभिषेक के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कही।
उन्होंने भगवान रूद्र (शिव) के अभिषेक का पौराणिक एवं वैदिक महत्व बताते हुए कहा कि रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। शास्त्रों में भगवान शिव को जलधारा प्रिय माना जाता है। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में किया गया है। शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। कहा कि शिव को गंगाधर कहा जाता है। शिव को गंगा की धार बहुत प्रिय है। गंगा जल से शिव अभिषेक करने पर चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। इससे अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मंत्र जरुर बोलना चाहिए। सोमवार, प्रदोष या चतुर्दशी तिथि को शिव का ऐसी धाराओं से अभिषेक एवं पूजा से भगवान शिव के साथ शक्ति, श्री गणेश और धनलक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलता है। सिद्धपीठ पर श्रावण के प्रथम दिवस से प्रारंभ होकर लगातार दो माह तक चलने वाले चातुर्मास महायज्ञ के दौरान प्रतिदिन पार्थिव (मिट्टी) शिवलिंग बनाकर 21 बैदिक विद्वानों द्वारा विधि विधान से रुद्राभिषेक के साथ ही पंच ब्राह्मणों द्वारा महामृत्युंजय जप निरंतर किया जा रहा है। इसके साथ ही महामंडलेश्वर श्री भवानीनंदन यतिजी द्वारा हरिहरात्मक पूजन एवं उत्तर पूजन किया जा रहा है।