बरेली। आला हजरत फाजिले बरेलवी के बाद हजरत सैयद मोहम्मद वामिक मियां ने भी कुरान का तर्जुमा (अनुवाद) किया है। इसकी खासियत यह है कि उन्होंने कुरान के तर्जुमे के साथ ही आयतों की तफसील भी बयान की है। यह जिक्र भी किया है कि कौन सी आयत किस बात का इशारा करती है। इसका प्रकाशन 2020 में होगा।
इस संबंध में दरगाह वामिकिया निशातिया के नायब सज्जादा नशीन मौलाना सैयद असलम मियां वामिकी और डॉ. महमूद हुसैन वामिकी ने उर्स के मौके पर बताया कि हजरत वामिक मियां की पैदाइश 1856 में हुई थी। उन्होंने कुरान का तर्जुमा लगभग 25 साल की उम्र में किया था। कुरान का तर्जुमा करने के बाद उन्होंने इसकी किताबत अपने हाथों से ही की थी। इसका नाम ‘तजुर्मानुल कुरान’ है, जो 1310 पेज की है। उन्हें दीनी और मजहबी जानकारी के साथ विज्ञान का भी अच्छा इल्म था।
बरेली। आला हजरत फाजिले बरेलवी के बाद हजरत सैयद मोहम्मद वामिक मियां ने भी कुरान का तर्जुमा (अनुवाद) किया है। इसकी खासियत यह है कि उन्होंने कुरान के तर्जुमे के साथ ही आयतों की तफसील भी बयान की है। यह जिक्र भी किया है कि कौन सी आयत किस बात का इशारा करती है। इसका प्रकाशन 2020 में होगा।
इस संबंध में दरगाह वामिकिया निशातिया के नायब सज्जादा नशीन मौलाना सैयद असलम मियां वामिकी और डॉ. महमूद हुसैन वामिकी ने उर्स के मौके पर बताया कि हजरत वामिक मियां की पैदाइश 1856 में हुई थी। उन्होंने कुरान का तर्जुमा लगभग 25 साल की उम्र में किया था। कुरान का तर्जुमा करने के बाद उन्होंने इसकी किताबत अपने हाथों से ही की थी। इसका नाम ‘तजुर्मानुल कुरान’ है, जो 1310 पेज की है। उन्हें दीनी और मजहबी जानकारी के साथ विज्ञान का भी अच्छा इल्म था।