मेरठ का सौरभ गुप्ता मुजफ्फरनगर के खतौली की रहने वाली एक लड़की शादमा के प्यार में इस कदर दीवाना हुआ कि वह अपनी भी सुधबुध खो बैठा। शादमा के प्यार के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था। वह शादमा से शादी करना चाहता था लेकिन शादमा उससे बात तक नहीं करती थी। उससे भी बड़ी मुश्किल यह थी वह दूसरे समुदाय और दूसरे धर्म से थी। सौरभ ने नाम बदलकर शादमा से बातचीत शुरू की, तो बात बन गई। इसके बाद शादमा ने उससे जो भी कहा सौरभ ने सब किया। तकरीबन 12 साल तक वह शादमा के जाल में फंसा रहा।
उसके अपने परिवार ने भी उससे किनारा कर लिया। धर्मांतरण के आठ साल बाद हिंदू जागरण मंच के लोगों के समझाने पर उसने फिर से हिंदू धर्म में वापसी कर ली, लेकिन परिवार ने उसे फिर भी नहीं अपनाया। आगे पढ़ें कैसे प्रेमिका के जाल में फंसकर सौरभ ने बदला था धर्म:-
गुरुवार देर रात को जब यूपी एटीएस ने मुजफ्फरनगर के फुलत निवासी मौलाना कलीम सिद्दीकी को मेरठ से गिरफ्तार किया तो धर्मांतरण से जुड़े कई बड़े राज सामने आए। उनमें सौरभ के धर्मांतरण का मामला अहम बताया जा रहा है। एटीएस ने सौरभ को पूछताछ के लिए उठाया है। जाहिर है कि धर्मांतरण के मामले में सौरभ की गवाही महत्वपूर्ण साबित होगी।
12 साल तक जाल में फंसा रहा सौरभ
सौरभ गुप्ता ने बताया कि वह लावड़ में एक कोचिंग सेंटर में पढ़ता था। 2009 में कोचिंग संचालक की बहन ने शादमा का नंबर दिया था। मैंने रिहान नाम बताकर उसको कॉल की। इस पर शादमा ने मुझे धमकाया और कहा कि कॉल करोगे तो शिकायत कर दूंगी। 15 दिन बाद शादमा ने खुद ही मुझे कॉल की। वह बोली- मैं जानती हूं कि तुम रिहान नहीं बल्कि सौरभ गुप्ता हो। इस्लाम कबूल कर लो तो मैं दोस्ती कर लूंगी। उसके बाद फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। वर्ष 2010 में मुजफ्फरनगर में शादमा से मुलाकात हुई।
शादमा के साथी ने कराई थी मौलाना कलीम से मुलाकात, कराई जमातें
सौरभ के मुताबिक शादमा के साथ एक मुस्लिम युवक था, जो उसे फुलत ले गया। इसकी जानकारी लगने पर परिजन वहां पहुंचे और पांच-छह दिन बाद वापस ले आए। लेकिन वह शादमा के प्रेम में पड़ चुका था। इसी बीच, हाफिज अबरार ने सौरभ से संपर्क किया और उसने फुलत से उसे 40 दिन की जमात में बाहर भेज दिया। वहां से लौटा तो मौलाना कलीम सिद्दीकी से उसकी मुलाकात हुई। उसने कारोबार कराने की बात कही और पुरकाजी में इसरार के पास भेज दिया। वहां भी कलीम ने आकर इसरार से परचून की दुकान खुलवाने की बात कही। दुकान खोलने से पहले ही सौरभ को फिर से 40 दिन की जमात में भेज दिया।
बड़ौत में की परचून की दुकान, चलाया फलों का ठेला
सौरभ ने बताया कि जमात से लौटने के बाद कलीम ने उसे बड़ौत में परचून की दुकान खुलवा दी। दुकान नहीं चली तो फलों का ठेला लगवा दिया। इसी दौरान कलीम ने शादमा से उसका निकाह करा दिया। उसके बाद कुछ दिन आढ़त का भी काम किया। इस दौरान फिर जमात पर भेजा गया। मदरसे में पढ़ाई भी की। नमाज अदा करना भी सिखाया गया। वह अब मुस्लिम समुदाय के रीति-रिवाज के तौर-तरीकों से वाकिफ हो गया था। आठ साल बाद में अहसास हुआ और फिर हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं से संपर्क किया। उन्होंने मौलाना कलीम के चंगुल से सौरभ को छुड़ाया।