एपल के एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी के खून से सनी खाकी के दाग छिपाने को राजधानी पुलिस ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दीं। सदमे से विवेक की पत्नी व मासूम बेटी समेत पूरा परिवार गम और गुस्से में डूबा रहा, लेकिन अफसर इतने बेशर्म कि दोषी सिपाहियों पर कार्रवाई के बजाय बचाव की स्क्रिप्ट लिखते रहे। चरित्र हनन से लेकर आत्मरक्षा में गोली चलाने तक की कहानियां गढ़ डालीं। ये सब आला अफसरों की मौजूदगी में होता रहा। आखिरकार लोगों के आक्रोश के बाद सरकार सख्त हुई तो आला अफसरों को मजबूरी में सिपाहियों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी।
पुलिस ने विवेक का चरित्र हनन करते हुए कहा कि वह कार में महिला के साथ आपत्तिजनक हालत में थे, जिसे पुलिसकर्मियों ने देख लिया। ऐसा कोई आम आदमी नहीं बल्कि पुलिस के अफसर कर रहे थे। सवाल उठा कि आपत्तिजनक हालत में किसी को पुलिस देख भी ले तो क्या गोली मार देगी? फिर इस स्क्रिप्ट को आगे बढ़ाया गया। अब इसमें जोड़ा गया कि सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई। सिपाहियों ने विवेक को रोकने की कोशिश की तो वह कुचलते हुए भागने लगे...इसलिए आत्मरक्षा में चलाई गोली। कुचलने के साथ ही यह जोड़ा गया कि ऐसा तीन बार किया गया।
गम और आक्रोश में डूबी विवेक की पत्नी कल्पना का कहना है कि घटनास्थल पहुंचते ही वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कलानिधि नैथानी समेत सभी पुलिस अफसर लीपापोती में जुट गए। उन्होंने पति के हत्या के आरोपी सिपाहियों को बचाने की कोशिश शुरू कर दी। आधी रात को मौके पर कोई भी नहीं था, इसलिए पुलिस के पास झूठ को सच और सच को झूठ बनाने का पूरा वक्त था। खून से लथपथ विवेक को अस्पताल पहुंचाने के बाद अधिकारी घटनास्थल पहुंचे और पुलिसकर्मियों को हत्या के आरोप व महकमे को फजीहत से बचाने के दांव-पेंच आजमाने शुरू किए। सबसे पहले विवेक की हत्या को हादसे का रूप देने की कोशिश की गई, क्यों?
कल्पना ने बताया कि एसएसपी ने कहा था कि उनके पास परिवारीजनों से संपर्क करने के लिए कोई नंबर या जरिया नहीं था, इसलिए कार के नंबर के आधार पर जानकारी लेकर परिवार से संपर्क किया गया। कल्पना ने इस बात को सरासर झूठ है। विवेक का आईफोन उनकी कार में ही था। वह लगातार उन्हें कॉल कर रही थीं। पुलिस ने कॉल क्यों नहीं रिसीव किया। कार में मौजूद विवेक की पूर्व सहकर्मी भी पूरे परिवार को अच्छी तरह से जानती थी। पुलिस ने उससे मोबाइल नंबर लेकर भी परिवारीजनों से संपर्क करने की जरूरत नहीं समझी? साफ है कि पुलिस पूरा मामला रफा-दफा करने में जुटी थी। कल्पना का आरोप है कि दो घंटे तक पुलिस अधिकारी सिर्फ साजिश रचते रहे। पौने चार बजे के आसपास किसी ने कॉल रिसीव की और बताया कि विवेक का एक्सीडेंट हो गया है और वह लोहिया अस्पताल में हैं।
एफआईआर को लेकर भी पत्नी ने सवाल उठाए। पत्नी का कहना है कि दोपहर दो बजे तक परिवार के सदस्यों को यह पता ही नहीं था कि हत्या की एफआईआर भी दर्ज कराई जा चुकी है। पुलिस आखिर ये बात क्यों छिपाती रही। हमें पता चला है मनमाफिक तहरीर लिखवाई पुलिस ने। एफआईआर दर्ज के लिए तहरीर बोल-बोलकर लिखाई गई। इसमें विवेक को सीधे गोली मारने का जिक्र ही नहीं कराया। उन्होंने महिला सहकर्मी से लिखवाया कि वह विवेक तिवारी के साथ सीएमएस गोमतीनगर विस्तार के पास गाड़ी में बैठी थी, तभी सामने से दो पुलिसवाले आ गए। हमने उनसे बचकर निकलने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने हमे रोकने की कोशिश की। उसके बाद अचानक से मुझे ऐसा लगा कि गोली चली। हमने वहां से गाड़ी आगे बढ़ाई। आगे हमारी गाड़ी अंडरपास की दीवार से टकराई और विवेक के सिर से काफी खून बहने लगा। मैंने सबसे मदद लेने की कोशिश की। थोड़ी देर में पुलिस आई, जिसने हमें हॉस्पिटल पहुंचाया।