किसी भी क्षेत्रीय सिनेमा के मुकाबले भोजपुरी सिनेमा के दर्शक सबसे ज्यादा हैं, बावजूद इसके इसे वह सफलता नहीं मिल पाई है जितनी सफलता बाकी क्षेत्रीय सिनेमा को मिली है। अक्सर इसकी तुलना साउथ की इंडस्ट्री से भी होती है लेकिन कहा यही जाता है कि दूसरा सिनेमा उस तरह का कंटेंट लेकर नहीं ला पा रहा। पर जब इस कंटेंट को लिखने वाले लेखकों की बात आती है तो उनकी गिनती सबसे बाद में होती है। बॉलीवुड का ये रोग अब भोजपुरी सिनेमा को भी लग गया है। भोजपुरी सितारे अरविंद अकेला 'कल्लू' की फिल्म 'कल्लू की दुल्हनिया' के राइटर को फिल्म की रिलीज के बाद भी अब तक उनके पारिश्रमिक का भुगतान कथित रूप से नहीं हुआ है।
अभिनेता अरविंद अकेला 'कल्लू' की फिल्म 'कल्लू की दुल्हनिया' थिएटर में ना रिलीज होकर भोजपुरी सिनेमा चैनल पर रिलीज हुई है। भोजपुरी सिनेमा चैनल पर अरविंद अकेला 'कल्लू' की फिल्म 'कल्लू की दुल्हनियां' का वर्ल्ड प्रीमियर 17 दिसंबर 2022 शनिवार की शाम 6.30 पर हुआ। इस फिल्म के निर्देशक चंदन उपाध्याय, निर्माता मुकेश गुप्ता और अभिषेक ठाकुर हैं। फिल्म के पटकथा और संवाद लेखक मनोज पांडे ने बताया कि फिल्म के निर्माता ने उन्हें आश्वासन दिया था कि फिल्म रिलीज से पहले उनका पारिश्रमिक उन्हें मिल जाएगा, लेकिन फिल्म रिलीज भी हो गई लेकिन अभी तक उसका पेमेंट नहीं मिला।
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'पंडित', 'राजा ठाकुर', 'पप्पू के प्यार हो गइल', 'बेटवा बाहुबली', 'घातक', 'गुलामी', 'प्रेम रोग' सहित कई भोजपुरी फिल्में लिख चुके लेखक मनोज पांडे कहते हैं, 'भोजपुरी फिल्मों में अक्सर ऐसा होता है कि लेखकों को उनका पैसा नहीं मिलता है। इसलिए मैंने भोजपुरी फिल्मों से दूरी बना ली थी। लेकिन फिल्म के निर्देशक चंदन उपाध्याय के साथ संबंधों को देखते हुए मैंने 'कल्लू की दुल्हनिया' की पटकथा और संवाद महज 50 हजार रुपये में लिखने के लिए राजी हुआ और साइनिंग अमाउंट के तौर पर मुझे 11 हजार रुपए मिले, बाकी पैसे के बारे में बोला गया कि फिल्म के रिलीज से पहले भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन नहीं हुआ।'
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मनोज पांडे कहते हैं, 'हिंदी फिल्मों के 90 प्रतिशत लेखक भोजपुरी की पृष्ठभूमि से आते हैं। हिंदी में अच्छी अच्छी फिल्में और वेब सीरीज लिख रहे हैं, वो भोजपुरी फिल्में क्यों नहीं लिखना चाहते हैं जबकि भोजपुरी उनकी मातृभाषा है? इसलिए क्योंकि भोजपुरी सिनेमा में न तो ढंग के पैसे मिलते हैं और न ही सम्मान और हम खुद को साउथ की इंडस्ट्री से तुलना करते हैं। भोजपुरी हमारी मातृभाषा है हम चाहते हैं कि इसका विकास हो, इसलिए बहुत ही कम पैसे में फिल्में लिखने के लिए राजी हो जाते हैं, लेकिन वह भी पैसे नहीं मिलते, कितने दुर्भाग्य की बात है यह।'
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