उत्तर भारत के कई प्रदेशों में बर्ड फ्लू की दस्तक के बाद चंडीगढ़ के जख्म फिर से हरे हो गए हैं। आज से करीब छह साल पहले बर्ड फ्लू ने चंडीगढ़ की रौनक छीन ली थी। सिटी ब्यूटीफुल की लाइफ लाइन मानी जाने वाली सुखना लेक पर 125 से ज्यादा बत्तखों का बसेरा था। इन बत्तखों से चंडीगढ़ को इतनी ज्यादा मोहब्बत थी कि लेक पर आने वाला हर व्यक्ति इनके साथ फोटो खिंचवाए बिना नहीं जाता था।
बच्चे उनके पीछे भागते रहते थे। सुबह शाम उन्हें दाना देने के लिए लोगों की भीड़ जुटी रहती थी। शहरवासियों के फोटो एलबम इन बत्तखों की यादों से अब भी भरे हैं। 2014 में जब कड़ाके की ठंड पड़ रही थी, उसी दौरान 14 दिसंबर को बत्तखों के मरने का सिलसिला शुरू हो गया था। एक-एक करके 25 बत्तखों की मौत हो गई थी।
स्थानीय प्रशासन हरकत में आया और तुरंत सैंपल जालंधर की लैब में भेजे गए। लेकिन वहां पुष्टि नहीं हो पाई। उसके बाद बत्तखों के सैंपल भोपाल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज (एनआईएचएसएडी) भेजे गए और बर्ड फ्लू की पुष्टि हो गई। लैब में बर्ड फ्लू की पुष्टि होते ही अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए। उसके बाद उन्होंने सभी बत्तखों के मारने का फैसला लिया।
एक में मिला था वायरस, सभी को ऐसे मारा गया था
लैब में छह सैंपल भेजे गए थे। इनमें से एक में वायरस की पुष्टि हुई थी। उसके बाद एहतियात के तौर पर सभी बत्तखों को मार दिया गया। मारने से पहले उनके खाने में बेहोशी की दवा मिलाई गर्ई थी। जब वे बेहोश हो गई थी तो उनकी गर्दन तोड़कर उन्हें जला दिया गया। सर्दी होने की वजह से अंधेरा जल्दी होगया था।
कर्मचारी टार्च व फ्लड लाइटों की मदद से अपने अभियान में जुटे रहे। बाद में उनकी राख को सुखना लेक के आईलैंड में ही दफना दिया गया था। उसके बाद एक टीम ने रात में ही पूरी सुखना लेक का दौरा किया, ताकि कोई पक्षी जिंदा न रह जाए।