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Babri Masjid Demolition Verdict: राममंदिर पर फैसला आने के लगभग 11 महीने बाद उस स्थान पर बने ढांचे को गिराने के मामले में बुधवार को आने वाला फैसला न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश की राजनीतिक बिसात पर नए सिरे से सियासी मोहरे सजाएगा। भले ही यह फैसला 6 दिसंबर 1992 के घटनाक्रम से जुड़ा हो, पर इसका निहितार्थ 1528 में मीरबांकी के हमले से लेकर आज तक के घटनाक्रम को नए सिरे से चर्चा में लाएगा। इसके अलावा राजनीतिक तौर पर पक्ष व प्रतिपक्ष को एक-दूसरे पर हमले करने के नए सियासी हथियार भी देगा।
निर्णय जो भी आए, लेकिन वह अपने साथ दिलचस्प संयोगों और कानून की धाराओं की न सिर्फ नई व्याखाएं छिपाए है बल्कि नेपथ्य के किरदारों को एक बार फिर लोगों की जुबान पर लाने की ऊर्जा समेटे हैं। फैसला नई और पुरानी पीढ़ी के बीच भी नए सियासी समीकरण निर्मित करने वाला है। आज की जो पीढ़ी आडवाणी, सिंहल, मोरेश्वर सावे, कटियार, जोशी, ऋतंभरा, उमा भारती और बाला साहेब ठाकरे जैसे लोगों की सक्रियता भूल चुकी है, उसकी जुबान पर ये नाम फिर चर्चा में आएंगे।
संयोग है कि निर्णय के समय बिहार में चुनाव है, जहां लालकृष्ण आडवाणी को 1990 में कारसेवा के लिए अयोध्या आते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रास्ते में गिरफ्तार कराया था। जाहिर है कि अब इस फैसले पर बिहार में राजग व राजद के बीच सियासी बिसात जरूर बिछेगी।
सजा होती है तो लालू के जेल में होने के बावजूद उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के नेता भाजपा व राजग को घेरेंगे, और अगर आडवाणी सहित अन्य आरोपी बरी होते हैं तो लालू की पार्टी पर हमले होना तय है। यूपी में भी विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के कारण फैसले की गूंज सुनाई देना लाजिमी है।
विश्व हिंदू परिषद और भाजपा नेताओं को सजा होती है तो विपक्ष की तरफ से भगवा आतंकवाद का मामला फिर उछाला जा सकता है । प्रज्ञा ठाकुर, असीमानंद, कर्नल पुरोहित जैसे मामलों को विपक्ष अपना हथियार बना सकता है । खासतौर से कांग्रेस अपनी सरकार की कार्रवाई को उचित ठहराते हुए भाजपा और संघ परिवार को घेरने की कोशिश कर सकती है ।
एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद दीवानी विवाद अर्थात जमीन पर मालिकाना हक तय होना था। पर, ढांचा ध्वंस में आपराधिक मामलों में मुकदमा है। लेकिन ऐसा आपराधिक मामला जिसके आरोपी कानून की नजर में अभियुक्त और खलनायक होने के बावजूद लोगों के नायक रहे।
ढांचा ध्वंस के समय कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, लेकिन अभियुक्त होने के बावजूद उन्होंने जब यात्रा निकाली तो उनके गुजरने वाली राह की मिट्टी लोगों के लिए पवित्र बन गई। संगठनकर्ता लालकृष्ण आडवाणी जननेता के रूप में उभरकर अटल बिहारी वाजपेयी के समकक्ष खड़े हो गए। विनय कटियार के रूप में एक युवा नेता उभरा। जाहिर है कि आपराधिक मामले का फैसला होने के बावजूद यह देश और प्रदेश की सियासत को नए तेवर जरूर देगा।
फैसला जो भी आए, पर एक बिंदु पर भाजपा के दोनों हाथ में लड्डू हैं । देश में अब तक बड़े घोटालों और मामलों में तत्कालीन सरकारों की भूमिका को लेकर विपक्ष को घेरने की कोशिश जरूर करेगी। उसकी तरफ से यह कहा ही जाएगा कि राजनेताओं की संलिप्तता वाले मामले आमतौर पर उस पार्टी की सरकार होने पर बंद कर दिए जाते हैं।
- सीबीआई को भी जांच की इजाजत आसानी से नहीं मिलती है, पर उसने सीबीआई को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका करने की अनुमति दी। न्यायिक प्रक्रिया में कहीं रोड़ा नहीं डाला।
- वर्ष 1992 के आंदोलन में सक्रिय और लखनऊ से अयोध्या तक आडवाणी के सहयोगी रहे अमित पुरी कहते हैं कि भाजपा ने ‘न्याय सबको, लेकिन तुष्टीकरण किसी का नहीं’ के सिद्धांत को साकार करके दिखाया है। यह स्थापित किया कि सत्ता को न्यायिक प्रक्रिया के रास्ते में अवरोधक नहीं, बल्कि साधक की भूमिका में होना चाहिए।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने कहा था कि बाबरी मस्जिद को ढहाकर विश्व हिंदू परिषद और भाजपा ने हमारे साथ विश्वासघात किया। हम मंदिर-मस्जिद का एक साथ निर्माण करेंगे।
- लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि अयोध्या में जो कुछ हुआ उसकी कतई आशा नहीं थी। हमें इस पर दुख है।
- उमा भारती ने कहा, अबकी बार मैं मंदिर के लिए सिर काट लूंगी या सैकड़ों सिर काट दूंगी।
- अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा सरकारों की बर्खास्तगी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध को लेकर कहा था कि हम अयोध्या पर टकराव नहीं चाहते, पर सरकार की यही मंशा है तो हम तैयार हैं।
- डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा था हमें संकल्प लेना होगा कि जिस स्थान पर रामलला विराजमान हैं, भव्य मंदिर उसी स्थान पर विहिप के नक्शे के अनुसार बने।
- जफरयाब जीलानी ने कहा था कि ढांचा ध्वस्त हो गया, लेकिन इससे मुसलमानों की मान्यता प्राप्त बाबरी मस्जिद समाप्त नहीं हुई। मुसलमानों में इबादत का तकद्दुस जमीन को हासिल है किसी इमारत को नहीं। अब इमारत नहीं, जमीन है और यही मस्जिद है।
Babri Masjid Demolition Verdict: राममंदिर पर फैसला आने के लगभग 11 महीने बाद उस स्थान पर बने ढांचे को गिराने के मामले में बुधवार को आने वाला फैसला न सिर्फ प्रदेश बल्कि देश की राजनीतिक बिसात पर नए सिरे से सियासी मोहरे सजाएगा। भले ही यह फैसला 6 दिसंबर 1992 के घटनाक्रम से जुड़ा हो, पर इसका निहितार्थ 1528 में मीरबांकी के हमले से लेकर आज तक के घटनाक्रम को नए सिरे से चर्चा में लाएगा। इसके अलावा राजनीतिक तौर पर पक्ष व प्रतिपक्ष को एक-दूसरे पर हमले करने के नए सियासी हथियार भी देगा।
निर्णय जो भी आए, लेकिन वह अपने साथ दिलचस्प संयोगों और कानून की धाराओं की न सिर्फ नई व्याखाएं छिपाए है बल्कि नेपथ्य के किरदारों को एक बार फिर लोगों की जुबान पर लाने की ऊर्जा समेटे हैं। फैसला नई और पुरानी पीढ़ी के बीच भी नए सियासी समीकरण निर्मित करने वाला है। आज की जो पीढ़ी आडवाणी, सिंहल, मोरेश्वर सावे, कटियार, जोशी, ऋतंभरा, उमा भारती और बाला साहेब ठाकरे जैसे लोगों की सक्रियता भूल चुकी है, उसकी जुबान पर ये नाम फिर चर्चा में आएंगे।
संयोग है कि निर्णय के समय बिहार में चुनाव है, जहां लालकृष्ण आडवाणी को 1990 में कारसेवा के लिए अयोध्या आते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रास्ते में गिरफ्तार कराया था। जाहिर है कि अब इस फैसले पर बिहार में राजग व राजद के बीच सियासी बिसात जरूर बिछेगी।
सजा होती है तो लालू के जेल में होने के बावजूद उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के नेता भाजपा व राजग को घेरेंगे, और अगर आडवाणी सहित अन्य आरोपी बरी होते हैं तो लालू की पार्टी पर हमले होना तय है। यूपी में भी विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के कारण फैसले की गूंज सुनाई देना लाजिमी है।
'भगवा आतंकवाद का मामला फिर उछाला जा सकता है'
विश्व हिंदू परिषद और भाजपा नेताओं को सजा होती है तो विपक्ष की तरफ से भगवा आतंकवाद का मामला फिर उछाला जा सकता है । प्रज्ञा ठाकुर, असीमानंद, कर्नल पुरोहित जैसे मामलों को विपक्ष अपना हथियार बना सकता है । खासतौर से कांग्रेस अपनी सरकार की कार्रवाई को उचित ठहराते हुए भाजपा और संघ परिवार को घेरने की कोशिश कर सकती है ।
एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद दीवानी विवाद अर्थात जमीन पर मालिकाना हक तय होना था। पर, ढांचा ध्वंस में आपराधिक मामलों में मुकदमा है। लेकिन ऐसा आपराधिक मामला जिसके आरोपी कानून की नजर में अभियुक्त और खलनायक होने के बावजूद लोगों के नायक रहे।
ढांचा ध्वंस के समय कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, लेकिन अभियुक्त होने के बावजूद उन्होंने जब यात्रा निकाली तो उनके गुजरने वाली राह की मिट्टी लोगों के लिए पवित्र बन गई। संगठनकर्ता लालकृष्ण आडवाणी जननेता के रूप में उभरकर अटल बिहारी वाजपेयी के समकक्ष खड़े हो गए। विनय कटियार के रूप में एक युवा नेता उभरा। जाहिर है कि आपराधिक मामले का फैसला होने के बावजूद यह देश और प्रदेश की सियासत को नए तेवर जरूर देगा।
फैसला जो भी आए..., भाजपा को होगा फायदा
फैसला जो भी आए, पर एक बिंदु पर भाजपा के दोनों हाथ में लड्डू हैं । देश में अब तक बड़े घोटालों और मामलों में तत्कालीन सरकारों की भूमिका को लेकर विपक्ष को घेरने की कोशिश जरूर करेगी। उसकी तरफ से यह कहा ही जाएगा कि राजनेताओं की संलिप्तता वाले मामले आमतौर पर उस पार्टी की सरकार होने पर बंद कर दिए जाते हैं।
- सीबीआई को भी जांच की इजाजत आसानी से नहीं मिलती है, पर उसने सीबीआई को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका करने की अनुमति दी। न्यायिक प्रक्रिया में कहीं रोड़ा नहीं डाला।
- वर्ष 1992 के आंदोलन में सक्रिय और लखनऊ से अयोध्या तक आडवाणी के सहयोगी रहे अमित पुरी कहते हैं कि भाजपा ने ‘न्याय सबको, लेकिन तुष्टीकरण किसी का नहीं’ के सिद्धांत को साकार करके दिखाया है। यह स्थापित किया कि सत्ता को न्यायिक प्रक्रिया के रास्ते में अवरोधक नहीं, बल्कि साधक की भूमिका में होना चाहिए।
ढांचा गिरने पर बोले थे मुख्य किरदार
- तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने कहा था कि बाबरी मस्जिद को ढहाकर विश्व हिंदू परिषद और भाजपा ने हमारे साथ विश्वासघात किया। हम मंदिर-मस्जिद का एक साथ निर्माण करेंगे।
- लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि अयोध्या में जो कुछ हुआ उसकी कतई आशा नहीं थी। हमें इस पर दुख है।
- उमा भारती ने कहा, अबकी बार मैं मंदिर के लिए सिर काट लूंगी या सैकड़ों सिर काट दूंगी।
- अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा सरकारों की बर्खास्तगी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध को लेकर कहा था कि हम अयोध्या पर टकराव नहीं चाहते, पर सरकार की यही मंशा है तो हम तैयार हैं।
- डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा था हमें संकल्प लेना होगा कि जिस स्थान पर रामलला विराजमान हैं, भव्य मंदिर उसी स्थान पर विहिप के नक्शे के अनुसार बने।
- जफरयाब जीलानी ने कहा था कि ढांचा ध्वस्त हो गया, लेकिन इससे मुसलमानों की मान्यता प्राप्त बाबरी मस्जिद समाप्त नहीं हुई। मुसलमानों में इबादत का तकद्दुस जमीन को हासिल है किसी इमारत को नहीं। अब इमारत नहीं, जमीन है और यही मस्जिद है।