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जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में मंदिरों के प्रबंधन के लिए कोई भी नीति विकसित करने के लिए सरकार पूरी तरह स्वतंत्र है। मुख्य न्यायाधीश अली मोहम्मद माग्रे और न्यायमूर्ति संजय धर की खंडपीठ ने महाधिवक्ता डीसी रैना की दलील सुनने के बाद बुधवार को यह आदेश पारित किया।
मामले की अगली सुनवाई 26 दिसंबर को होगी। मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष बुधवार को जैसे ही रंजीत गोरखा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई शुरू हुई, महाधिवक्ता ने याचिका पर सवाल उठाते हुए अदालत द्वारा पारित सभी अंतरिम आदेशों को रद्द करने की मांग की। उन्होंने कहा, याचिकाओं का लंबित होना और उनमें पारित अंतरिम आदेश मंदिरों के प्रबंधन के लिए नीति विकसित करने के लिए सरकार के रास्ते में आड़े आ गए हैं।
खंडपीठ ने कहा, हमने न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की जांच की है, लेकिन मंदिरों के प्रबंधन के लिए नीति तैयार करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया पर रोक लगाने का कोई आदेश इसमें नहीं है। अत: सरकार मंदिरों के प्रबंधन के लिए कोई भी नीति विकसित करने के लिए स्वतंत्र होगी।
याचिकाकर्ता चाहता है मंदिर की संपत्ति का प्रबंधन
याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण और संकट बिक्री पर रोक) अधिनियम 1997 के प्रावधानों के अनुसार मंदिर की संपत्ति का प्रबंधन चाहता है।