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पहले कहते थे, कहां लड़की बॉक्सिंग करेगी। शुरू में मेडल नहीं आए तो लोग बोले, कहा था बस का नहीं है। फिर मेडल आने लगे तो बोलने लगे, लड़कियों में प्रतिद्वंद्वी नहीं होते। अब विदेशी धरती पर गोल्ड के साथ बेस्ट बॉक्सर का अवॉर्ड मिला तो सब चुप हैं। यहां तक पहुंचने के लिए लोगों के तंज ही नहीं सहे, हर दिन संघर्ष भी किया। इसी ने मुझे बेस्ट बनाया है। इस पर गर्व है। घर पर इस जीत से खुशी का माहौल है। यह कहना है मोंटीग्रो में हुई बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल व बेस्ट बॉक्सर का अवॉर्ड पाने वाली साई एनबीए की वनिका का। मंगलवार को दिल्ली एयरपोर्ट से साई एनबीए एकेडमी पहुंचने पर अमर उजाला से हुई विशेष बातचीत में बॉक्सर वनिका ने अपने संघर्ष की कहानी साझा की।
वनिका ने कहा कि वह पानीपत के गांव शिमला मुलाना की रहने वाली है। पिता धर्मेंद्र सिंह टैक्सी चलाते हैं। मां सरला देवी गृहिणी हैं। वह चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर है। बड़ी बहन मोनिका स्नातक कर चुकी है। वह राष्ट्रीय स्तर की हॉकी खिलाड़ी है। बड़ा भाई अजय स्नातक की पढ़ाई कर रहा है। छोटा भाई सचिन दसवीं की पढ़ाई के साथ हाल ही में बॉक्सिंग शुरू की है। खुद वर्ष 2015 से बॉक्सिंग खेल रही हूं। इससे पहले राष्ट्रीय स्तर तक हॉकी खेली। फिर कुछ अलग करने के चलते बॉक्सिंग की तरफ बढ़ी। पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में कोच सुनील कुमार के पास बॉक्सिंग के शुरुआती दांव पेच सीखना शुरू किया। खेलो इंडिया 2018 में मेरा चयन हुआ। यहां से साई सेंटर में जगह मिली। इसके बाद से साई एनबीए में अभ्यास जारी है। इस दौरान अनेक मेडल जीते। बेस्ट बॉक्सर का खिताब अपने देश के बजाय विदेशी धरती पर मिला। यह खुशी सारी जिंदगी याद रहेगी। इस पर गर्व है।
मेरे बेस्ट बॉक्सर के इस खिताब की असल हकदार अपने माता-पिता हैं। उन्होंने हर समय मुझे प्रोत्साहित किया। कभी किसी तरह की परेशानी नहीं आने दी। जब लोगों ने विरोध किया, उस समय भी माता-पिता ने सबसे अधिक सहयोग किया। शुरू दिक्कत ज्यादा रही। स्कूल में सीबीएसई खेलों में मेडल जीतने के बाद फीस माफ हो गई। इसके बाद कुछ राहत मिली। उस समय मैं नौवीं में थी। बॉक्सिंग शुरू करने पर पिता ने काफी सकारात्मकता दिखाई। घर से स्टेडियम के बीच की 15 किलोमीटर की दूरी बेटी अकेले कैसे तय करती। इसलिए वे खुद सुबह-शाम मुझे छोड़ने व लेने आते। यह संघर्ष ही रंग लगाया और मुझे बेस्ट बनाया।
पहले कहते थे, कहां लड़की बॉक्सिंग करेगी। शुरू में मेडल नहीं आए तो लोग बोले, कहा था बस का नहीं है। फिर मेडल आने लगे तो बोलने लगे, लड़कियों में प्रतिद्वंद्वी नहीं होते। अब विदेशी धरती पर गोल्ड के साथ बेस्ट बॉक्सर का अवॉर्ड मिला तो सब चुप हैं। यहां तक पहुंचने के लिए लोगों के तंज ही नहीं सहे, हर दिन संघर्ष भी किया। इसी ने मुझे बेस्ट बनाया है। इस पर गर्व है। घर पर इस जीत से खुशी का माहौल है। यह कहना है मोंटीग्रो में हुई बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल व बेस्ट बॉक्सर का अवॉर्ड पाने वाली साई एनबीए की वनिका का। मंगलवार को दिल्ली एयरपोर्ट से साई एनबीए एकेडमी पहुंचने पर अमर उजाला से हुई विशेष बातचीत में बॉक्सर वनिका ने अपने संघर्ष की कहानी साझा की।
वनिका ने कहा कि वह पानीपत के गांव शिमला मुलाना की रहने वाली है। पिता धर्मेंद्र सिंह टैक्सी चलाते हैं। मां सरला देवी गृहिणी हैं। वह चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर है। बड़ी बहन मोनिका स्नातक कर चुकी है। वह राष्ट्रीय स्तर की हॉकी खिलाड़ी है। बड़ा भाई अजय स्नातक की पढ़ाई कर रहा है। छोटा भाई सचिन दसवीं की पढ़ाई के साथ हाल ही में बॉक्सिंग शुरू की है। खुद वर्ष 2015 से बॉक्सिंग खेल रही हूं। इससे पहले राष्ट्रीय स्तर तक हॉकी खेली। फिर कुछ अलग करने के चलते बॉक्सिंग की तरफ बढ़ी। पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में कोच सुनील कुमार के पास बॉक्सिंग के शुरुआती दांव पेच सीखना शुरू किया। खेलो इंडिया 2018 में मेरा चयन हुआ। यहां से साई सेंटर में जगह मिली। इसके बाद से साई एनबीए में अभ्यास जारी है। इस दौरान अनेक मेडल जीते। बेस्ट बॉक्सर का खिताब अपने देश के बजाय विदेशी धरती पर मिला। यह खुशी सारी जिंदगी याद रहेगी। इस पर गर्व है।
मेरे बेस्ट बॉक्सर के इस खिताब की असल हकदार अपने माता-पिता हैं। उन्होंने हर समय मुझे प्रोत्साहित किया। कभी किसी तरह की परेशानी नहीं आने दी। जब लोगों ने विरोध किया, उस समय भी माता-पिता ने सबसे अधिक सहयोग किया। शुरू दिक्कत ज्यादा रही। स्कूल में सीबीएसई खेलों में मेडल जीतने के बाद फीस माफ हो गई। इसके बाद कुछ राहत मिली। उस समय मैं नौवीं में थी। बॉक्सिंग शुरू करने पर पिता ने काफी सकारात्मकता दिखाई। घर से स्टेडियम के बीच की 15 किलोमीटर की दूरी बेटी अकेले कैसे तय करती। इसलिए वे खुद सुबह-शाम मुझे छोड़ने व लेने आते। यह संघर्ष ही रंग लगाया और मुझे बेस्ट बनाया।