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हौसले बुलंद हों तो जीवन में वह मुकाम भी हासिल किया जा सकता है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। अंबाला की कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं जिन्होंने अपने बुलंद हौसले से कुछ ऐसा कर दिखाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से यह डरे नहीं बल्कि लड़े और फिर उस मुकाम को हासिल किया कि हर किसी के लिए नजीर बन गए। इन्हीं लोगों में शामिल हैं। अंबाला शहर की वैभवी कौशल और छावनी की ऊषा देवी।
पहले कैंसर से लड़ीं और अब बनी ब्रांड अंबेसडर
इसमें अंबाला सिटी के बांस बाजार की रहने वाली वैभवी कौशल जोकि एएमएल (एक्यूट मैयोलॉइड ल्यूकिमिया) ब्लड कैंसर से लड़ कर ठीक हो गई और उन्हें सम्मान में स्नेह स्पर्श रोटरी क्लब की ब्रांड अंबेसडर भी बनाया गया है। उन्होंने बताया कि वह इस बीमारी से लड़ सकी हैं, इसमें सबसे अधिक सहयोग उनके परिवार का है, जिन्होंने उनकी पूरी सेवा की, प्यार दिया और इस बीमारी से लड़ने का आत्म विश्वास दिलवाया। उन्होंने बताया कि उनके बेटे का जन्म 15 अगस्त 2010 को हुआ था, लेकिन अगले ही दिन उनकी तबीयत काफी खराब हो गई जब टेस्ट किए गए तो पता चला कि उन्हें एएमएल नामक कैंसर है, जिसके बाद उन्हें 16 अगस्त को ही पीजीआई रेफर कर दिया। जहां स्वयं भगवान बनकर डाक्टर पंकज और उनके बड़े भाई आए, डाक्टर पंकज मल्होत्रा ने उनका इलाज किया और उनके बड़े भाई अमित मंगला ने अपना बोनमैरो देकर उनकी जिंदगी बचाने कार्य किया। लेकिन उनके परिवार के प्यार ने सास संतोष कौशल, ससुर सोहन कौशल, पति कस्तुभ कौशल, बेटी मुमुक्शा कौशल, और बेटे सिमांत्क कौशल ने प्यार व विश्वास ने ही उन्हें इतना हौंसला दिया कि वह इतनी गंभीर बीमारी को लड़कर व मौत को मात देकर वापिस अपनी खुशहाल जिंदगी जी रही है।
कैंट की ऊषा देवी जो कि दो साल से ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही हैं, लेकिन अब उनकी स्थिति काफी हद तक ठीक है। उन्होंने बताया कि जब लगभग दो साल पहले उनके ब्रेस्ट में दर्द हुआ था, तो वह डाक्टर के पास गए,जहां से उन्हें पीजीआई रेफर कर दिया। वहां टेस्ट के बाद डाक्टरों ने बताया कि उनका कैंसर चौथे चरण में पहुंच गया है। इसके तुरंत बाद से ही उन्होंने इलाज शुरू कर दिया। इस दौरान उन्हें सर्जरी के दौरान काफी पीड़ा हुई, लेकिन जिंदगी जीने के आत्मविश्वास ने उन्हें इस पीड़ा को सहन करने की शक्ति दी। इलाज को लेकर उनके अभी तक लगभग साढ़े पांच लाख रुपए खर्च हो चुके हैं, जिसमें केवल डाक्टरों की यूनियन की ओर से ही कम खर्च पर दवाईयां दिलवाई, इसके अलावा केवल उनके परिवार सदस्यों ने सहयोग कर खर्च उठाया। लेकिन परिवार के इस सहयोग और प्यार के कारण वह आज खुशहाल जिंदगी जी रही है।
हौसले बुलंद हों तो जीवन में वह मुकाम भी हासिल किया जा सकता है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। अंबाला की कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं जिन्होंने अपने बुलंद हौसले से कुछ ऐसा कर दिखाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से यह डरे नहीं बल्कि लड़े और फिर उस मुकाम को हासिल किया कि हर किसी के लिए नजीर बन गए। इन्हीं लोगों में शामिल हैं। अंबाला शहर की वैभवी कौशल और छावनी की ऊषा देवी।
पहले कैंसर से लड़ीं और अब बनी ब्रांड अंबेसडर
इसमें अंबाला सिटी के बांस बाजार की रहने वाली वैभवी कौशल जोकि एएमएल (एक्यूट मैयोलॉइड ल्यूकिमिया) ब्लड कैंसर से लड़ कर ठीक हो गई और उन्हें सम्मान में स्नेह स्पर्श रोटरी क्लब की ब्रांड अंबेसडर भी बनाया गया है। उन्होंने बताया कि वह इस बीमारी से लड़ सकी हैं, इसमें सबसे अधिक सहयोग उनके परिवार का है, जिन्होंने उनकी पूरी सेवा की, प्यार दिया और इस बीमारी से लड़ने का आत्म विश्वास दिलवाया। उन्होंने बताया कि उनके बेटे का जन्म 15 अगस्त 2010 को हुआ था, लेकिन अगले ही दिन उनकी तबीयत काफी खराब हो गई जब टेस्ट किए गए तो पता चला कि उन्हें एएमएल नामक कैंसर है, जिसके बाद उन्हें 16 अगस्त को ही पीजीआई रेफर कर दिया। जहां स्वयं भगवान बनकर डाक्टर पंकज और उनके बड़े भाई आए, डाक्टर पंकज मल्होत्रा ने उनका इलाज किया और उनके बड़े भाई अमित मंगला ने अपना बोनमैरो देकर उनकी जिंदगी बचाने कार्य किया। लेकिन उनके परिवार के प्यार ने सास संतोष कौशल, ससुर सोहन कौशल, पति कस्तुभ कौशल, बेटी मुमुक्शा कौशल, और बेटे सिमांत्क कौशल ने प्यार व विश्वास ने ही उन्हें इतना हौंसला दिया कि वह इतनी गंभीर बीमारी को लड़कर व मौत को मात देकर वापिस अपनी खुशहाल जिंदगी जी रही है।
कैंट की ऊषा देवी जो कि दो साल से ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही हैं, लेकिन अब उनकी स्थिति काफी हद तक ठीक है। उन्होंने बताया कि जब लगभग दो साल पहले उनके ब्रेस्ट में दर्द हुआ था, तो वह डाक्टर के पास गए,जहां से उन्हें पीजीआई रेफर कर दिया। वहां टेस्ट के बाद डाक्टरों ने बताया कि उनका कैंसर चौथे चरण में पहुंच गया है। इसके तुरंत बाद से ही उन्होंने इलाज शुरू कर दिया। इस दौरान उन्हें सर्जरी के दौरान काफी पीड़ा हुई, लेकिन जिंदगी जीने के आत्मविश्वास ने उन्हें इस पीड़ा को सहन करने की शक्ति दी। इलाज को लेकर उनके अभी तक लगभग साढ़े पांच लाख रुपए खर्च हो चुके हैं, जिसमें केवल डाक्टरों की यूनियन की ओर से ही कम खर्च पर दवाईयां दिलवाई, इसके अलावा केवल उनके परिवार सदस्यों ने सहयोग कर खर्च उठाया। लेकिन परिवार के इस सहयोग और प्यार के कारण वह आज खुशहाल जिंदगी जी रही है।