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Denied interference in eviction order from in laws allegations against widowed daughteri
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Delhi High Court: ससुराल से बेदखल करने वाले आदेश में हस्तक्षेप से हाईकोर्ट का इनकार
अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: आकाश दुबे
Updated Tue, 27 Sep 2022 11:43 AM IST
सार
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए ससुराल से बेदखल करने का निर्देश देने वाले आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि बुजुर्ग दंपति द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए आरोप सही साबित हुए हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए ससुराल से बेदखल करने का निर्देश देने वाले आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, कोर्ट ने कहा कि बुजुर्ग दंपति द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए मानसिक प्रताड़ना, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के आरोप सही साबित हुए हैं
उच्च न्यायालय ने एक विधवा बहू को उसके ससुराल से बेदखल करने का निर्देश देने वाले आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा सास-ससुर वरिष्ठ नागरिक हैं और बहू यह दिखाने में विफल रही कि वह कर्तव्यपूर्वक उनकी देखभाल कर रही थी।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत दो अधिकारियों ने बुजुर्ग दंपति द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए मानसिक प्रताड़ना, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के आरोपों में एक साथ सार पाया। अदालत ने यह भी कहा कि घरेलू हिंसा कानून के तहत साझा घराने की अवधारणा को उन स्थितियों तक नहीं बढ़ाया जा सकता है जहां विवाह रद्द हो गया हो, भंग हो गया हो या अब अस्तित्व में न हो।
अदालत ने यह टिप्पणी विधवा महिला की उस याचिका पर की है जिसमें ससुराल पक्ष की शिकायत पर वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट और संभागीय आयुक्त द्वारा बेदखली के आदेश को चुनौती दी गई है। अदालत ने कहा दोनों अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए तथ्य यह स्थापित करते हैं कि अंतत: वरिष्ठ नागरिकों को अपना घर छोड़ने और बड़े बेटे के निवास पर जाने के लिए मजबूर किया गया था। कार्यवाही के दौरान जब वे दो अधिकारियों के सामने आए तो याचिकाकर्ता विफल रही कि वह वरिष्ठ नागरिकों के हितों की देखभाल कर रही थी।
यह देखते हुए कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम को माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण की गारंटी और सुरक्षा के लिए पेश किया गया है।अदालत ने आदेश दिया कि उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर उनका विचार है कि अधिकारियों द्वारा लिया गया विचार जबकि 2007 के अधिनियम के तहत की गई शिकायत पर विचार करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
शिकायत में ससुराल वालों ने याचिकाकर्ता पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि उनका मृत बेटा याचिकाकर्ता से शादी के दौरान किए गए कथित अविवेक के कारण अवसाद की स्थिति में चला गया था और 2013 में उसके निधन से पहले वैवाहिक संबंध टूट गए थे।
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय को बताया कि विचाराधीन संपत्ति एक साझा घर है और इस प्रकार वह कथित दुर्व्यवहार या उत्पीड़न का कोई सबूत नहीं होने का दावा करते हुए वहां रहने के लिए कानूनी रूप से हकदार है। अदालत ने कहा कि एक साझा परिवार अनिवार्य रूप से एक अलग पत्नी के निवास के अधिकार को सुरक्षित करता है। मुकदमेबाजी चल रही है ताकि वह निराश्रित स्थिति में न रह जाए और वर्तमान मामले में संरक्षण के तहत कोई संरक्षण आदेश नहीं है।
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