कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर रविवार को उनकी तीन कहानियों का पाठ किया गया। भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू में लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्था के तत्वावधान में हुए आयोजन में आगरा की संस्था रंगलीला के कलाकारों ने नाटकीय अंदाज में कथा वाचन किया।
इस दौरान ‘ईदगाह’ में जहां हामिद की संवेदना दिखी, वहीं ‘ठाकुर का कुंआ’ में जोखू की तड़प और ‘पूस की रात’ में हल्कू की पीड़ा।
संस्था के कलाकार सृष्टि गुप्ता, सोनम वर्मा और प्रथम यादव ने तीन कहानियों ईदगाह, ठाकुर का कुआं और पूस की रात के नाट्य रूपांतरित वाचन में अपनी प्रभावी प्रस्तुतियों से लोगों को अंत तक बांधे रखा।
इसके बाद हुई परिचर्चा में कला संकाय प्रमुख प्रो. कुमार पंकज ने कहा कि प्रेमचंद की पठनीयता और रोचकता में लगातार वृद्धि हो रही है, जो उनके महत्व को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि गोदान में होरी हर रोज मरता है क्योंकि वह किसान से मजदूर बनने का दंश झेल रहा था।
यही स्थिति पूस की रात में हलकू की है। आज जिस तरह किसानों के आत्महत्या की खबरें लगातार आ रही हैं, उससे प्रेमचंद की दूर दृष्टि का पता चलता है। रंगलीला के संयोजक अनिल शुक्ल ने बताया कि कथावाचन का कार्यक्रम देश के विभिन्न शहर में किया जा रहा है।
केंद्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद की राजनीतिक चेतना 1930 के बाद बदलती हुई दिखाई देती है। इसी के बाद साहित्य, समाज और राजनीति पर प्रेमचंद ने ज्यादा स्पष्टता से अपना मंतव्य जाहिर किया। उन्होंने अंगवस्त्रं देकर कलाकारों का सम्मान किया।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर रविवार को उनकी तीन कहानियों का पाठ किया गया। भोजपुरी अध्ययन केंद्र, बीएचयू में लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्था के तत्वावधान में हुए आयोजन में आगरा की संस्था रंगलीला के कलाकारों ने नाटकीय अंदाज में कथा वाचन किया।
इस दौरान ‘ईदगाह’ में जहां हामिद की संवेदना दिखी, वहीं ‘ठाकुर का कुंआ’ में जोखू की तड़प और ‘पूस की रात’ में हल्कू की पीड़ा।
संस्था के कलाकार सृष्टि गुप्ता, सोनम वर्मा और प्रथम यादव ने तीन कहानियों ईदगाह, ठाकुर का कुआं और पूस की रात के नाट्य रूपांतरित वाचन में अपनी प्रभावी प्रस्तुतियों से लोगों को अंत तक बांधे रखा।
इसके बाद हुई परिचर्चा में कला संकाय प्रमुख प्रो. कुमार पंकज ने कहा कि प्रेमचंद की पठनीयता और रोचकता में लगातार वृद्धि हो रही है, जो उनके महत्व को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि गोदान में होरी हर रोज मरता है क्योंकि वह किसान से मजदूर बनने का दंश झेल रहा था।
यही स्थिति पूस की रात में हलकू की है। आज जिस तरह किसानों के आत्महत्या की खबरें लगातार आ रही हैं, उससे प्रेमचंद की दूर दृष्टि का पता चलता है। रंगलीला के संयोजक अनिल शुक्ल ने बताया कि कथावाचन का कार्यक्रम देश के विभिन्न शहर में किया जा रहा है।
केंद्र के समन्वयक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि प्रेमचंद की राजनीतिक चेतना 1930 के बाद बदलती हुई दिखाई देती है। इसी के बाद साहित्य, समाज और राजनीति पर प्रेमचंद ने ज्यादा स्पष्टता से अपना मंतव्य जाहिर किया। उन्होंने अंगवस्त्रं देकर कलाकारों का सम्मान किया।