दुद्धी। जनपद के डाला क्रेशर बेल्ट में महीनों पूर्व हुए खनन हादसे के बाद खनन बंद होने से डाला, ओबरा, चोपन खनन क्षेत्र मेें सियापा छा गया है। खनन बंदी के चलते मजदूरों समेत हजारों लोगों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है। खनन बंद होने का असर सीधे पूर्वांचल की मंडियों पर दिखाई देने लगा। बालू, मोरंग, गिट्टी के भाव आसमान पर हो गए। ज्यादातर भवन स्वामियों ने अपने मकानों का काम रोक दिया है। मगर छत्तीसगढ़ की बालू से पूर्वांचल के मंडियों की रौनक लौटने लगी है। ऐेसे में ट्रांसपोर्टर छत्तीसगढ़ के मंडी का सहारा लेने लगे हैं।
सोनभद्र में खनन कार्य बंद होने से बिल्डिंग मैटेरियल के दामों में आई तेजी के चलते पूर्वांचल के तमाम विकास कार्यों के साथ-साथ लोगों के निजी भवन निर्माण पर ग्रहण लग गया है। विकास के कार्य रुकने से बालू, बोल्डर, गिट्टी ढोने वाले हजारों वाहन जहां, तहां खड़ा हो गए हैं। मजदूरों का भी हाल कुछ ऐसा ही है। काम नहीं मिलने से मजदूरों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है। ऐसे में मजदूर साहूकारों से ब्याज पर पैसा लेने को मजबूर है। यही हाल रहा तो मजदूर साहूकारों के कर्ज से उबर नहीं पाएंगे। हालांकि विगत दिनों दुद्धी तहसील मुख्यालय से लगे त्रिशुली (छत्तीसगढ़) में खुले दर्जनों बालू की साइडों ने वाहन स्वामियों के लिए संजीवनी बूटी का काम करना शुरू कर दिया है। प्रतिदिन लगभग पांच सौ ट्रकों से बालू का ढुलान शुरू हो गया है। पर्याप्त साइडों के खुलने से वाहन स्वामियों को कम रेट में बालू मिलने लगा है बताया जाता है कि सोनभद्र के साइडों पर जो बालू सात से आठ हजार रुपये प्रति दस चक्का लोड होता था। वही बालू त्रिशूली (छत्तीसगढ़) के साइडों पर मात्र ढाई से तीन हजार में परमिट सहित लोड हो रहा है। मगर इसका लाभ भवन स्वामियों को नहीं मिल रहा है। ऐसे में वाहन स्वामियों की पूर्वांचल की मंडियों में चांदी कटने लगी है। ट्रांसपोर्टर खनन बंद होने का हवाला देकर पुराने रेटे से तीन से चार गुना रेट में बालू बेच रहे हैं। जबकि, छत्तीसगढ़ में बालू काफी सस्ता है।