जलालाबाद। चुनावी मौसम में गली, नुक्कड़, चाय की दुकान तथा चौराहों आदि पर चुनाव को लेकर चर्चाएं चरम पर हैं। यहां कोई विकास, कोई बेरोजगारी तो कोई क्षेत्र के पिछड़ेपन की बात कर रहा है तो कोई सरकार बनने और बिगड़ने की बात कर रहा है। जाति-बिरादरी की बात भी इन चर्चाओं में से शामिल रहती है। गांव देहात से बाजार आए कुछ लोग नगर के मुख्य चौराहे के पास एक बंद दुकान के सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठे थे। कुछ ही देर में चुनाव को लेकर चर्चा शुरू हो गई।
चर्चा के दौरान गांव ठिगरी निवासी अशोक दीक्षित ने कहा कि हम तो भाई उसी के पक्ष में मतदान करेंगे जो गुंडागर्दी पर लगाम लगाएगा। अशोक की बात पर गांव कसारी के राममूर्ति बोले कहत तऊ तुम ठीक हौ। पहले से तो रवैया बल्दी है। गुंडई कम भई लेकिन खितीयर आदमी से बुझौ। जानवन्न के चक्कर मै जा ठंड मैं रात-रात भरि लए डंडा घूमत पत्ति। का जौ सरकार को नाहि दिखाति। हमने पटका पै खेत लइके गेहूं करे थे। परौं की बात है रात भर रखाउत रहे भुरारे को घरै चले आये। थोड़ी देर में लड़िका खेतै पहुंचे तौ कइयो जानवर गेहूं खात मिले।
कोला गांव के रक्षपाल बोले हमारी तौ बिरादरी को एक आदमी चुनाव में खड़ो है। हम ता वोट बाई को दियै। कम से कम वौ पहिचान्ति तौ है, दई कोई कछू नाही देति। नगर के मोहल्ला ब्रह्मनान निवासी राकेश कहते हैं कि इस बार का चुनावी माहौल बदला हुआ है। बड़ी तादाद में लोग जाति-बिरादरी से अलग हटकर उसे वोट देने की बात कर रहे हैं जिनकी सरकार ने गरीबों के हित में कई कार्य कि ए। फल का ठेला लगाने वाले गांव गुनारा निवासी नोखेलाल बोले कि बात सही है लेकिन विधायक जो बने हम ठेला वालों के लिए कोई ऐसी जगह निश्चित करवा दे जहां से बार-बार भगाए न जाएं। इससे दुकानदारी सही तरीके से होती रहे। गांधीनगर के रिंकू कहने लगे कि दिन पै दिन महंगाई बढ़त जाति। सरकार हम गरीबन कौ कुछ और रियायति देइ जिससे कोई स्थायी काम धंधा शुरू हुइ पावै। बझेड़ा गांव के रनवीर ने कहा कि क्षेत्र में उद्योग-धंधे स्थापित होने चाहिए जिससे युवाओं को रोजगार के लिए घर से दूर न जाना पड़े। थोड़ी--बहुत पढ़ाई करने वाला भी घर पर रहकर नौकरी करता रहे। रैपुरा के बाबू सिंह ने कहा कि सरकार कौ अधिकारिन पै लगाम लगैवो चहिए। सरकार सेंटर खुलवाइ देति लेकिन अधिकारिन कि मनमानी से किसानन कौ इसको कित्तो फायदा मिल पाउति जा सब जान्त है। अधिकतर लोग सरकार के कामकाज के स्थान पर अधिकारियों के रवैये पर सवाल उठाते नजर आए। किसान छुट्टा पशुुओं से बहुत परेशान नजर आए। हालांकि लोग दबी जुबान जाति-बिरादरी की ओर भी रुझान रखते नजर आए।
जलालाबाद। चुनावी मौसम में गली, नुक्कड़, चाय की दुकान तथा चौराहों आदि पर चुनाव को लेकर चर्चाएं चरम पर हैं। यहां कोई विकास, कोई बेरोजगारी तो कोई क्षेत्र के पिछड़ेपन की बात कर रहा है तो कोई सरकार बनने और बिगड़ने की बात कर रहा है। जाति-बिरादरी की बात भी इन चर्चाओं में से शामिल रहती है। गांव देहात से बाजार आए कुछ लोग नगर के मुख्य चौराहे के पास एक बंद दुकान के सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठे थे। कुछ ही देर में चुनाव को लेकर चर्चा शुरू हो गई।
चर्चा के दौरान गांव ठिगरी निवासी अशोक दीक्षित ने कहा कि हम तो भाई उसी के पक्ष में मतदान करेंगे जो गुंडागर्दी पर लगाम लगाएगा। अशोक की बात पर गांव कसारी के राममूर्ति बोले कहत तऊ तुम ठीक हौ। पहले से तो रवैया बल्दी है। गुंडई कम भई लेकिन खितीयर आदमी से बुझौ। जानवन्न के चक्कर मै जा ठंड मैं रात-रात भरि लए डंडा घूमत पत्ति। का जौ सरकार को नाहि दिखाति। हमने पटका पै खेत लइके गेहूं करे थे। परौं की बात है रात भर रखाउत रहे भुरारे को घरै चले आये। थोड़ी देर में लड़िका खेतै पहुंचे तौ कइयो जानवर गेहूं खात मिले।
कोला गांव के रक्षपाल बोले हमारी तौ बिरादरी को एक आदमी चुनाव में खड़ो है। हम ता वोट बाई को दियै। कम से कम वौ पहिचान्ति तौ है, दई कोई कछू नाही देति। नगर के मोहल्ला ब्रह्मनान निवासी राकेश कहते हैं कि इस बार का चुनावी माहौल बदला हुआ है। बड़ी तादाद में लोग जाति-बिरादरी से अलग हटकर उसे वोट देने की बात कर रहे हैं जिनकी सरकार ने गरीबों के हित में कई कार्य कि ए। फल का ठेला लगाने वाले गांव गुनारा निवासी नोखेलाल बोले कि बात सही है लेकिन विधायक जो बने हम ठेला वालों के लिए कोई ऐसी जगह निश्चित करवा दे जहां से बार-बार भगाए न जाएं। इससे दुकानदारी सही तरीके से होती रहे। गांधीनगर के रिंकू कहने लगे कि दिन पै दिन महंगाई बढ़त जाति। सरकार हम गरीबन कौ कुछ और रियायति देइ जिससे कोई स्थायी काम धंधा शुरू हुइ पावै। बझेड़ा गांव के रनवीर ने कहा कि क्षेत्र में उद्योग-धंधे स्थापित होने चाहिए जिससे युवाओं को रोजगार के लिए घर से दूर न जाना पड़े। थोड़ी--बहुत पढ़ाई करने वाला भी घर पर रहकर नौकरी करता रहे। रैपुरा के बाबू सिंह ने कहा कि सरकार कौ अधिकारिन पै लगाम लगैवो चहिए। सरकार सेंटर खुलवाइ देति लेकिन अधिकारिन कि मनमानी से किसानन कौ इसको कित्तो फायदा मिल पाउति जा सब जान्त है। अधिकतर लोग सरकार के कामकाज के स्थान पर अधिकारियों के रवैये पर सवाल उठाते नजर आए। किसान छुट्टा पशुुओं से बहुत परेशान नजर आए। हालांकि लोग दबी जुबान जाति-बिरादरी की ओर भी रुझान रखते नजर आए।