न्यूज डेस्क, अमर उजाला, मेरठ
Updated Thu, 23 Jan 2020 02:24 PM IST
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया ऐतिहासिक भाषण मेरठ वासियों के दिलों में बसता है। नेताजी 1940 में मेरठ में आए थे। उनकी ये यादें आज भी यहां के लोगों के जेहन में ताजा हैं। मेरठ में शहीद स्मारक स्थित राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में 210 फोटो सहेज कर रखे गए हैं। इनमें अधिकांश फोटो कोलकाता स्थित नेताजी रिसर्च ब्यूरो से एकत्र किए गए हैं।
बीएवी इंटर कॉलेज बुढ़ाना गेट के रिटायर्ड प्रवक्ता बीएन पाराशर बताते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1940 में मेरठ में आए थे। उन्होंने दो संगठनों फाइटर मैन के लिए आजाद हिंद फौज और सिविलियन के लिए आजाद हिंद संघ का गठन किया। देश की आजादी में इस संघ का भी योगदान रहा है। 1969 में मेरठ में नेताजी सुभाष जन्म दिवस समिति का गठन किया गया।
पाराशर बताते हैं कि वह बोस के परिजनों से मिले, उनके पास बोस के जीवन से जुड़ी अहम चीजें हैं। इनमें फोटो, किताबों को मेरठ के संग्रहालय में जमा करा चुके हैं। बोस की यादों से जुड़े 210 फोटो की लंबी गैलरी है। जिसे प्रत्येक वर्ष बोस की जयंती पर प्रदर्शित किया जाता है। यहां नेताजी का पहला भाषण टाउन हॉल में ही हुआ था। नेताजी अपना भाषण दे रहे थे तभी अचानक बूंदाबांदी शुरू हो गई।
बाहर लोगों में हलचल सी होने लगी तो नेताजी ने अपना हाथ उठाकर कहा कि इस बारिश से हमारा जोश कम होने वाला नहीं है। आजादी के लिए हमारे दिलों में जो आग है, वह बारिश को सुखा देगी।
मतभेद के कारण नेताजी ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया तो उस समय कांग्रेस हाईकमान ने सर्कुलर जारी किया था कि कोई भी कांग्रेस से जुड़ा व्यक्ति उनके कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा। लेकिन मेरठ में कांग्रेसियों ने उनका स्वागत किया।
सुभाष पार्क का नाम ही बदल दिया गया
इतिहासकार डॉ. केके शर्मा और बीएन पाराशर बताते हैं कि कमिश्नरी के सामने सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण 23 जनवरी 1985 को किया गया था।
कमिश्नरी के सामने स्थित पार्क का नाम भी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रखा गया, लेकिन मेरठ प्रशासन ने अनदेखी की और पार्क धीरे-धीरे धरना स्थल का रूप लेता गया।
यह पार्क पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर हो गया। पार्क में चरण सिंह की प्रतिमा भी लगी हुई है। 1957 में मेरठ नगर पालिका ने घंटाघर के द्वार का नाम नेताजी के नाम पर रखा। नेताजी के भतीजे अमीय नाथ बोस 1970 से 1980 के बीच में कई बार मेरठ आए थे।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया ऐतिहासिक भाषण मेरठ वासियों के दिलों में बसता है। नेताजी 1940 में मेरठ में आए थे। उनकी ये यादें आज भी यहां के लोगों के जेहन में ताजा हैं। मेरठ में शहीद स्मारक स्थित राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय में 210 फोटो सहेज कर रखे गए हैं। इनमें अधिकांश फोटो कोलकाता स्थित नेताजी रिसर्च ब्यूरो से एकत्र किए गए हैं।
बीएवी इंटर कॉलेज बुढ़ाना गेट के रिटायर्ड प्रवक्ता बीएन पाराशर बताते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस 1940 में मेरठ में आए थे। उन्होंने दो संगठनों फाइटर मैन के लिए आजाद हिंद फौज और सिविलियन के लिए आजाद हिंद संघ का गठन किया। देश की आजादी में इस संघ का भी योगदान रहा है। 1969 में मेरठ में नेताजी सुभाष जन्म दिवस समिति का गठन किया गया।
पाराशर बताते हैं कि वह बोस के परिजनों से मिले, उनके पास बोस के जीवन से जुड़ी अहम चीजें हैं। इनमें फोटो, किताबों को मेरठ के संग्रहालय में जमा करा चुके हैं। बोस की यादों से जुड़े 210 फोटो की लंबी गैलरी है। जिसे प्रत्येक वर्ष बोस की जयंती पर प्रदर्शित किया जाता है। यहां नेताजी का पहला भाषण टाउन हॉल में ही हुआ था। नेताजी अपना भाषण दे रहे थे तभी अचानक बूंदाबांदी शुरू हो गई।
बाहर लोगों में हलचल सी होने लगी तो नेताजी ने अपना हाथ उठाकर कहा कि इस बारिश से हमारा जोश कम होने वाला नहीं है। आजादी के लिए हमारे दिलों में जो आग है, वह बारिश को सुखा देगी।
मतभेद के कारण नेताजी ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया तो उस समय कांग्रेस हाईकमान ने सर्कुलर जारी किया था कि कोई भी कांग्रेस से जुड़ा व्यक्ति उनके कार्यक्रम में शामिल नहीं होगा। लेकिन मेरठ में कांग्रेसियों ने उनका स्वागत किया।
सुभाष पार्क का नाम ही बदल दिया गया
इतिहासकार डॉ. केके शर्मा और बीएन पाराशर बताते हैं कि कमिश्नरी के सामने सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण 23 जनवरी 1985 को किया गया था।
कमिश्नरी के सामने स्थित पार्क का नाम भी सुभाष चंद्र बोस के नाम पर रखा गया, लेकिन मेरठ प्रशासन ने अनदेखी की और पार्क धीरे-धीरे धरना स्थल का रूप लेता गया।
यह पार्क पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर हो गया। पार्क में चरण सिंह की प्रतिमा भी लगी हुई है। 1957 में मेरठ नगर पालिका ने घंटाघर के द्वार का नाम नेताजी के नाम पर रखा। नेताजी के भतीजे अमीय नाथ बोस 1970 से 1980 के बीच में कई बार मेरठ आए थे।