उत्तर प्रदेश के महोबा में पुलिस कप्तान खुलेआम हर महीने खनन माफिया से साठगांठ कर क्रशर कारोबारियों से लाखों की वसूली करता है। ये सब जोन और रेंज के अफसरों के नाक की नीचे होता है और उनको भनक तक नहीं लगती। ऐसे में इन अफसरों के पर्यवेक्षण पर सवाल खड़ा होता है। आखिर कप्तान की हरकतों का उनको अंदाजा क्यों नहीं हुआ, जब उगाही का ये खेल वर्षों से चला आ रहा है।
अफसरों की जिम्मेदारी तय होगी या नहीं, ये तो समय बताएगा। प्रदेश सरकार ने कानून व्यवस्था को सुधारने और अपराधियों पर शिकंजा कसने का हवाला देकर अधिकारियों की तैनाती में बड़े बदलाव किए थे। जिसमें एक निर्णय बेहद अहम था। जिसके तहत जोन में आईजी की जगह एडीजी और रेंज में डीआईजी की जगह आईजी की तैनाती की गई। दावा किया गया था कि इससे जिला पुलिस के अफसरों के कार्यों की निगरानी और पर्यवेक्षण बेहतर होगा।
यहां प्रयागराज जोन में एडीजी आईपीएस प्रेम प्रकाश हैं, जबकि चित्रकूटधाम मंडल रेंज आईजी के सत्य नारायण हैं। क्रशर कारोबारी इंद्रकांत त्रिपाठी समेत कबरई के अन्य कई क्रशर कारोबारियों से महोबा पुलिस धड़ल्ले से वसूली कर रही है। सवाल है कि कारोबारियों की दिक्कत और उनसे हो रही वसूली की जानकारी इन जिम्मेदार अधिकारियों को क्यों नहीं थी और अगर जानकारी थी तो महोबा कप्तान समेत अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।
खानापूरी कर लौट जाते हैं अफसर
डिजिटल युग में पुलिसिंग भी डिजिटल हो गई है। अफसरों ने इसका फायदा उठाया है। खानापूरी करने को निरीक्षण करने जिलों में जाइए। फोटो खिंचवाइए और वीडियो बनवाएं। उसके बाद अफसरों के व्हाट्सएप ग्रुपों में भेज दीजिए। जिला, जोन और रेंज के पुलिस अफसरों का यही काम है। फोटो वीडियो बन गए, मतलब सब काम हो गया, इसलिए ये सभी अफसर जमीनी हकीकत से बेखबर हैं। अगर ऐसा न होता तो बड़े अफसरों को महोबा पुलिस की उगाही की जानकारी होती। समय पर कार्रवाई होती और इंद्रकांत की जान बच सकती थी।
खुद ही कर देते हैं समीक्षा
अगर किसी जिले के एसपी, सीओ समेत अन्य पुलिसकर्मियों की कार्यप्रणाली का फीड बैक लेना है तो बड़े अफसरों को वहां के जिम्मेदार लोगों से बातचीत करनी होगी। उसमें कारोबारी, स्थानीय नेता, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हो सकते हैं, जिससे सच्चाई की जानकारी होगी, पर ऐसा नहीं होता है। मीटिंग होती है, एसपी खुद मीटिंग की कमान संभालते हैं और जिले में रामराज्य का हवाला दे आवभगत करते हैं।
आखिर क्यों नहीं की बात, नहीं सुनीं परेशानी
कबरई बड़ी पत्थर मंडी है। सैकड़ों क्रशर कारोबारी रहते हैं। यहां का मुख्य कारोबार ही यही है। इसके बावजूद पुलिस के बड़े अफसरों ने ये जहमत नहीं उठाई कि इन कारोबारियों के साथ बैठक करें, उनकी समस्याएं सुनें और उनको निस्तारित करें। प्रैक्टिकल पुलिसिंग न होने से ऐसी वारदातें हो रही हैं।
उत्तर प्रदेश के महोबा में पुलिस कप्तान खुलेआम हर महीने खनन माफिया से साठगांठ कर क्रशर कारोबारियों से लाखों की वसूली करता है। ये सब जोन और रेंज के अफसरों के नाक की नीचे होता है और उनको भनक तक नहीं लगती। ऐसे में इन अफसरों के पर्यवेक्षण पर सवाल खड़ा होता है। आखिर कप्तान की हरकतों का उनको अंदाजा क्यों नहीं हुआ, जब उगाही का ये खेल वर्षों से चला आ रहा है।
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अफसरों की जिम्मेदारी तय होगी या नहीं, ये तो समय बताएगा। प्रदेश सरकार ने कानून व्यवस्था को सुधारने और अपराधियों पर शिकंजा कसने का हवाला देकर अधिकारियों की तैनाती में बड़े बदलाव किए थे। जिसमें एक निर्णय बेहद अहम था। जिसके तहत जोन में आईजी की जगह एडीजी और रेंज में डीआईजी की जगह आईजी की तैनाती की गई। दावा किया गया था कि इससे जिला पुलिस के अफसरों के कार्यों की निगरानी और पर्यवेक्षण बेहतर होगा।
यहां प्रयागराज जोन में एडीजी आईपीएस प्रेम प्रकाश हैं, जबकि चित्रकूटधाम मंडल रेंज आईजी के सत्य नारायण हैं। क्रशर कारोबारी इंद्रकांत त्रिपाठी समेत कबरई के अन्य कई क्रशर कारोबारियों से महोबा पुलिस धड़ल्ले से वसूली कर रही है। सवाल है कि कारोबारियों की दिक्कत और उनसे हो रही वसूली की जानकारी इन जिम्मेदार अधिकारियों को क्यों नहीं थी और अगर जानकारी थी तो महोबा कप्तान समेत अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।
खानापूरी कर लौट जाते हैं अफसर
डिजिटल युग में पुलिसिंग भी डिजिटल हो गई है। अफसरों ने इसका फायदा उठाया है। खानापूरी करने को निरीक्षण करने जिलों में जाइए। फोटो खिंचवाइए और वीडियो बनवाएं। उसके बाद अफसरों के व्हाट्सएप ग्रुपों में भेज दीजिए। जिला, जोन और रेंज के पुलिस अफसरों का यही काम है। फोटो वीडियो बन गए, मतलब सब काम हो गया, इसलिए ये सभी अफसर जमीनी हकीकत से बेखबर हैं। अगर ऐसा न होता तो बड़े अफसरों को महोबा पुलिस की उगाही की जानकारी होती। समय पर कार्रवाई होती और इंद्रकांत की जान बच सकती थी।
खुद ही कर देते हैं समीक्षा
अगर किसी जिले के एसपी, सीओ समेत अन्य पुलिसकर्मियों की कार्यप्रणाली का फीड बैक लेना है तो बड़े अफसरों को वहां के जिम्मेदार लोगों से बातचीत करनी होगी। उसमें कारोबारी, स्थानीय नेता, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हो सकते हैं, जिससे सच्चाई की जानकारी होगी, पर ऐसा नहीं होता है। मीटिंग होती है, एसपी खुद मीटिंग की कमान संभालते हैं और जिले में रामराज्य का हवाला दे आवभगत करते हैं।
आखिर क्यों नहीं की बात, नहीं सुनीं परेशानी
कबरई बड़ी पत्थर मंडी है। सैकड़ों क्रशर कारोबारी रहते हैं। यहां का मुख्य कारोबार ही यही है। इसके बावजूद पुलिस के बड़े अफसरों ने ये जहमत नहीं उठाई कि इन कारोबारियों के साथ बैठक करें, उनकी समस्याएं सुनें और उनको निस्तारित करें। प्रैक्टिकल पुलिसिंग न होने से ऐसी वारदातें हो रही हैं।
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