झांसी। अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते। बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए अपना पेट काटने से भी पीछे नहीं हटते। लेकिन, बुढ़ापे में यही संतान साथ छोड़ देती है। संपत्ति हासिल करने के बाद माता-पिता को बेगाना बना दिया जाता है। सेवा करना तो दूर की बात उनके साथ गाली-गलौज और मारपीट तक की जाती है। कुछ ऐसे ही मामले ‘माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम - 2007’ के तहत जिले में बने ट्रिब्यूनल में पहुंचे हैं। यहां 103 बुजुर्गों ने न्याय की गुहार लगाई है।
अपने उत्तराधिकारियों से पीड़ित बुजुर्गों की मदद के लिए जिले में तहसील स्तर पर वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं, जिनके पीठासीन अधिकारी संबंधित तहसील के उप जिला मजिस्ट्रेट हैं। जिले के पांचों तहसीलों के ट्रिब्यूनल में 103 बुजुर्गों ने मामले दायर कर रखे हैं। इन मुकदमों में बुुजुर्गों की ओर से दरख्वास्त दी गई है कि उनके पुत्र-पुत्री उनकी बिलकुल देखभाल नहीं करते हैं। दवा-इलाज का इंतजाम तो दूर की बात खाने-पीने तक का बंदोबस्त नहीं करते हैं। यहां तक कि आए दिन गाली-गलौज करते हैं और हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करते। मुकदमों में ज्यादातर बुजुर्गों की ओर से बताया गया कि वे अपनी संपत्ति बच्चों के नाम कर चुके हैं। अब उनके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है। ऐसे में वे पूरी तरह से बच्चों पर ही आश्रित हैं, लेकिन वे उनका बिल्कुल ख्याल नहीं रख रहे हैं।
केस - 1
बीमार होने पर पूछते तक नहीं हैं
झांसी। महानगर के एक बुजुर्ग द्वारा दाखिल किए गए मुकदमे में बताया गया है कि उन्होंने अपना सारा कारोबार अपने पुत्र को सौंप दिया। इसके बाद से पुत्र का रवैया उनके प्रति एकदम बदल गया। देखभाल करना तो दूर की बात बेटा महीनों बात भी नहीं करता है। बीमार होने पर भी नहीं पूछता है। बुजुर्ग ने ट्रिब्यूनल से देखभाल की व्यवस्था सुनिश्चित करने और पुत्र से हर माह निश्चित धनराशि दिलाने की मांग की है।
केस - 2
अलग कमरे में पड़े रहते हैं
झांसी। ट्रिब्यूनल में एक बुजुर्ग दंपत्ती द्वारा दाखिल किए गए मुकदमे में बताया कि जिस घर को उन्होंने मेहनत से बनाया था, अब वे उसी में ही बेगाने बनकर रह रहे हैं। बच्चों ने घर में अलग कमरा दे रखा है। कोई हाल-चाल तक लेने नहीं आता। जरूरत पर थोड़े से पैसों के लिए बच्चों के सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं। बुजुर्ग दंपती ने ट्रिब्यूनल से बच्चों से मकान खाली कराने की दरख्वास्त की है।
ये है एक्ट में
-----------
- जो वरिष्ठ नागरिक स्वयं का भरण - पोषण करने में असमर्थ हैं, वे संतान से भरण पोषण का दावा कर सकते हैं।
- संतानहीन वरिष्ठ नागरिक उन संबंधियों के विरुद्ध दावा कर सकते हैं, जो उनकी संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं।
- आवेदन उप जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाता है।
- भरण - पोषण का भुगतान न करने वाली संतानों को एक महीने के कारावास और माता-पिता का परित्याग करने वाली संतानों को तीन माह के कारावास की सजा का प्रावधान है।
- बुजुर्गों के पक्ष में फैसला आने पर संतान हाईकोर्ट में ही अपील कर सकती है, जबकि संतानों के पक्ष में फैसला आने पर बुजुर्ग जिला मजिस्ट्रेट की अदालत में अपील कर सकते हैं।
- वादी को अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती, सादा कागज पर ही प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है।
बुजुर्गों की मदद के लिए माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम बनाया गया है। इन मुकदमों की सुनवाई पूरी संवेदनशीलता के साथ तेजी से की जाती है।
- क्षितिज द्विवेदी, उप जिला मजिस्ट्रेट
झांसी। अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते। बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए अपना पेट काटने से भी पीछे नहीं हटते। लेकिन, बुढ़ापे में यही संतान साथ छोड़ देती है। संपत्ति हासिल करने के बाद माता-पिता को बेगाना बना दिया जाता है। सेवा करना तो दूर की बात उनके साथ गाली-गलौज और मारपीट तक की जाती है। कुछ ऐसे ही मामले ‘माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम - 2007’ के तहत जिले में बने ट्रिब्यूनल में पहुंचे हैं। यहां 103 बुजुर्गों ने न्याय की गुहार लगाई है।
अपने उत्तराधिकारियों से पीड़ित बुजुर्गों की मदद के लिए जिले में तहसील स्तर पर वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं, जिनके पीठासीन अधिकारी संबंधित तहसील के उप जिला मजिस्ट्रेट हैं। जिले के पांचों तहसीलों के ट्रिब्यूनल में 103 बुजुर्गों ने मामले दायर कर रखे हैं। इन मुकदमों में बुुजुर्गों की ओर से दरख्वास्त दी गई है कि उनके पुत्र-पुत्री उनकी बिलकुल देखभाल नहीं करते हैं। दवा-इलाज का इंतजाम तो दूर की बात खाने-पीने तक का बंदोबस्त नहीं करते हैं। यहां तक कि आए दिन गाली-गलौज करते हैं और हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करते। मुकदमों में ज्यादातर बुजुर्गों की ओर से बताया गया कि वे अपनी संपत्ति बच्चों के नाम कर चुके हैं। अब उनके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है। ऐसे में वे पूरी तरह से बच्चों पर ही आश्रित हैं, लेकिन वे उनका बिल्कुल ख्याल नहीं रख रहे हैं।
केस - 1
बीमार होने पर पूछते तक नहीं हैं
झांसी। महानगर के एक बुजुर्ग द्वारा दाखिल किए गए मुकदमे में बताया गया है कि उन्होंने अपना सारा कारोबार अपने पुत्र को सौंप दिया। इसके बाद से पुत्र का रवैया उनके प्रति एकदम बदल गया। देखभाल करना तो दूर की बात बेटा महीनों बात भी नहीं करता है। बीमार होने पर भी नहीं पूछता है। बुजुर्ग ने ट्रिब्यूनल से देखभाल की व्यवस्था सुनिश्चित करने और पुत्र से हर माह निश्चित धनराशि दिलाने की मांग की है।
केस - 2
अलग कमरे में पड़े रहते हैं
झांसी। ट्रिब्यूनल में एक बुजुर्ग दंपत्ती द्वारा दाखिल किए गए मुकदमे में बताया कि जिस घर को उन्होंने मेहनत से बनाया था, अब वे उसी में ही बेगाने बनकर रह रहे हैं। बच्चों ने घर में अलग कमरा दे रखा है। कोई हाल-चाल तक लेने नहीं आता। जरूरत पर थोड़े से पैसों के लिए बच्चों के सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं। बुजुर्ग दंपती ने ट्रिब्यूनल से बच्चों से मकान खाली कराने की दरख्वास्त की है।
ये है एक्ट में
-----------
- जो वरिष्ठ नागरिक स्वयं का भरण - पोषण करने में असमर्थ हैं, वे संतान से भरण पोषण का दावा कर सकते हैं।
- संतानहीन वरिष्ठ नागरिक उन संबंधियों के विरुद्ध दावा कर सकते हैं, जो उनकी संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं।
- आवेदन उप जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाता है।
- भरण - पोषण का भुगतान न करने वाली संतानों को एक महीने के कारावास और माता-पिता का परित्याग करने वाली संतानों को तीन माह के कारावास की सजा का प्रावधान है।
- बुजुर्गों के पक्ष में फैसला आने पर संतान हाईकोर्ट में ही अपील कर सकती है, जबकि संतानों के पक्ष में फैसला आने पर बुजुर्ग जिला मजिस्ट्रेट की अदालत में अपील कर सकते हैं।
- वादी को अधिवक्ता की आवश्यकता नहीं होती, सादा कागज पर ही प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है।
बुजुर्गों की मदद के लिए माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम बनाया गया है। इन मुकदमों की सुनवाई पूरी संवेदनशीलता के साथ तेजी से की जाती है।
- क्षितिज द्विवेदी, उप जिला मजिस्ट्रेट