मित्रता में जाति, धर्म, ऊंच-नीच, गरीबी-अमीरी नहीं होती। मित्रता में छल, कपट भी नहीं होता। मित्रता हर रिश्ते से ऊपर होती है। इस बात को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा से अपनी दोस्ती का निर्वहन कर उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह बात बड़े शिव समाधि मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन प्रवचन करते हुए कथा वाचक बाल विदुषी वैष्णवी ने कही।
उन्होंने श्रीकृष्ण और सुदामा चरित्र का इस प्रकार मनमोहक वाचन किया कि लोगों की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। उन्होंने कथा में अनेकों सीख भी दीं। उन्होंने कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि गुरु संदीपनी के आश्रम में एक बार गाय चराने के दौरान सुदामा ने कृष्ण के हिस्से के चने खा लिए। इस कारण उन्हें लंबे समय तक गरीबी का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा यदि कोई अपने मित्र को धोखा देता है तो उसे इसका खामियाजा यहीं भुगतना पड़ता है। उन्होंने कहा कि हमारी हर पल की गतिविधियों पर ईश्वर की निगाह रहती है। उन्होंने कहा कि दोस्ती सदैव कृष्ण की तरह निभानी चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा को उसकी आवश्यकता को भांपकर बिना मांगे मदद की। आज सइि दोस्त को जरूरत होती है तो दोस्त इस बात का इंतजार करता है कि वह उससे मांगे और फिर उस धन पर वह उससे ब्याज वसूल करे। आज दोस्ती की आड़ में व्यक्ति घिनौने काम कर रहा है। इस मौके पर उन्होंने सभी से इस रिश्ते की पवित्रता को बनाए रखने का आह्वान किया।