2002 में पहली बार खुला था बसपा का खाता, जीती थीं तीन सीटें
बुलंदशहर। वर्ष 1984 में बनी बसपा को जिले में खाता खोलने में करीब 18 वर्ष का समय लगा था। इसके बाद एक समय ऐसा आया था जब जिले की आठ में से सात विधानसभा सीटों पर बसपा के विधायक थे। वर्ष 2017 में समय ने अचानक करवट ली और बसपा जिले में एक बार फिर शून्य हो गई।
दलितों और पिछड़ों को आगे बढ़ाने के नाम पर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठन 1984 में हुआ। इसके बाद वर्ष 1985 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन जिले की आठों सीट पर किसी भी प्रत्याशी को बसपा ने नहीं उतारा। 1991 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले चार वर्षों तक बसपा ने जिले में अपनी पैठ बनाई और लोगों को पार्टी से जोड़ा। इसके बाद इसी चुनाव में जिले में पहली बार आठ में से सात सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी उतारे। हालांकि एक भी प्रत्याशी जीत नहीं सका था। इससे कार्यकर्ताओं की मेहनत को झटका लगा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार जमीनी स्तर पर कार्य जारी रखा। 2002 के चुनाव में भले ही बसपा के केवल दो विधायक जीते, लेकिन शेष छह सीटों पर उनके प्रत्याशियों की जीत का अंतर काफी कम था। इसके अगले चुनाव में मतदाताओं ने उलटफेर कराया और आठ में से छह सीटों पर बसपा के विधायक बने, जबकि दो सीटों पर बसपा के प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे।
अभी तक स्याना सीट पर नहीं जीता कोई प्रत्याशी
जब से बसपा का गठन हुआ है तब से अभी तक स्याना को छोड़कर जिले की सभी सीटों पर बसपा के प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुके हैं। वर्ष 2012 के चुनाव में बसपा के प्रत्याशी रहे देवेंद्र भारद्वाज ने कुछ मजबूती दिखाई थी, लेकिन 1667 मतों से पराजय झेलनी पड़ी थी। वहीं अभी तक 2002 के चुनाव में खुर्जा से अनिल कुमार और सिकंदराबाद से वेदराम भाटी, 2007 के चुनाव में खुर्जा से अनिल कुमार, डिबाई से गुड्डू पंडित, अनूपशहर से गजेंद्र सिंह, बुलंदशहर से मोहम्मद अलीम खान, शिकारपुर से वासुदेव सिंह, सिकंदराबाद से वेदराम भाटी और 2012 में बुलंदशहर से मोहम्मद अलीम खान, अनूपशहर से गजेंद्र सिंह ही चुनाव जीत सके थे। जबकि 2017 के चुनाव में सभी सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी।