एक ही नाम पर आसपास बने थे अलग-अलग समुदायों के धर्मस्थल
लॉकडाउन के दौरान दोनों धर्मस्थलों पर कराया गया था काफी निर्माण
बरेली। रामगंगानगर में बीडीए की कार्रवाई के विरोध में हंगामा और पथराव होने के बाद यहां पहुंचे मीडिया के लोग और अफसर यह देखकर चौंक गए कि अलग-अलग समुदायों के दोनों धर्मस्थल एक ही बुजुर्ग के नाम पर बने हुए थे। एक समुदाय के लोग उनका नाम ओघा शाह बता रहे थे तो दूसरे समुदाय के लोग ओघा बाबा। गांव के पुराने लोगों ने बताया कि वे लोग काफी समय से दोनों धर्मस्थलों को देखते आ रहे हैं। हालांकि कुछ महीनों पहले दोनों धर्मस्थलों पर कुछ और निर्माण करा लिया गया था। एक धर्मस्थल की आड़ में दुकानें भी बना ली गई थीं।
धर्मस्थल तोड़ने की कार्रवाई के खिलाफ एक समुदाय के लोग ज्यादा गुस्साए हुए थे। इसे बरसों पुराना धर्मस्थल बताने के साथ उनकी आपत्ति थी कि दूसरे धर्मस्थल का सिर्फ आगे का हिस्सा तोड़ा गया है। ओघा शाह के धर्मस्थल की देखभाल करने वाले शख्स का कहना था कि उन्हें नहीं पता कि धर्मस्थल कितने साल पुराना है। उनके पिता, दादा सब यहां खिदमत कर चुके हैं। शहर से पहुंची सत्तर साल की एक महिला ने एसडीएम को बताया कि जब वह छोटी थीं तो पिता के साथ पैदल यहां हाजिरी देने आती थीं। उस वक्त न यहां कोई रास्ता था न कई किमी दूर तक कोई निर्माण। जंगल के बीच बने इस धर्मस्थल आना भी काफी मुश्किल था। महिला ने बताया कि यहां आकर उनके कई बिगड़े काम बने हैं। बेझिझक यह भी बताया कि धर्मस्थल को इसी साल बढ़ाया गया है। एसडीएम का कहना था कि धर्मस्थल के मूल ढांचे को नहीं तोड़ा गया है।
दूसरे धर्मस्थल का गेट, बाउंड्री और उसकी आड़ में बनाई टिन शेड वाली दुकानों को ढहाने से नाराज लोग भी यहीं इकट्ठे थे। इस धर्मस्थल की देखभाल करने वाले व्यक्ति का कहना था कि यहां कई साल पुराना ओघा नाथ महाराज का धर्मस्थल है। ओघा शाह और ओघा नाथ एक ही थे या अलग-अलग शख्स, इस बारे में वह नहीं बता सके। गांव में रहने वाले हसनैन ने बताया कि दोनों एक ही शख्स के नाम हैं जो फक्कड़ थे। दोनों धर्म के लोगों ने अपनी आस्था के हिसाब से उनके धर्मस्थल बना लिए। ओघा शाह के साथी नटवीर बाबा थे जिन्होंने मंदिर निर्माण में योगदान किया था।