इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सबकुछ किस कदर ठप हो चुका है इसका अनुमान शोध पत्रों के मूल्यांकन के लिए नियुक्त होने वाले परीक्षकों की स्थिति से लगाया जा सकता है। डेढ़ साल से विश्वविद्यालय में एकेडमिक काउंसिल की बैठक नहीं हुई है। इस दौरान बैठक हुई भी तो किसी एक बिंदु पर। इसकी वजह से शोधपत्रों के मूल्यांकन के लिए परीक्षकों की नियुक्ति भी नहीं हो पाई और सैकड़ों शोधार्थियों का भविष्य अंधकार में है। नियमानुसार शोधार्थी की थीसिस मूल्यांकन के लिए बाहर के परीक्षकाें को भेजी जाती है। इसके बाद इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। पहले विभाग के स्तर पर परीक्षकों की नियुक्ति कर ली जाती थी। बाद में एकेडमिक काउंसिल से मंजूरी ले ली जाती थी लेकिन इस प्रक्रिया में मनमानी की शिकायतों के बाद नई व्यवस्था लागू की गई है।
इसके तहत परीक्षक के चयन की मंजूरी एकेडमिका काउंसिल से पहले ले ली जाती है। इसके बाद शोध पत्र मूल्यांकन के लिए भेजी जाती है लेकिन जुलाई 2013 से एकेडमिक काउंसिल की नियमित बैठक नहीं हुई है। ऐसे में इस दौरान जमा शोध पत्रों के मूल्यांकन की प्रक्रिया ठप पड़ गई है। इसकी वजह से इंटरव्यू तथा डिग्री एवार्ड भी नहीं हो पा रही है। मुश्किल यह कि दो साल में शोधपत्र का मूल्यांकन नहीं होने पर उसके अमान्य होने का भी खतरा होता है। ऐसे में इस हीलाहवाली से शोधार्थियाें में गुस्सा है। इंडियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन ने इस बाबत कुलपति को ज्ञापन सौंपकर जल्द से जल्द एकेडमिक काउंसिल की बैठक बुलाने की मांग की है। हालांकि बैठक कब होगी इस बारे में कहना तो मुश्किल है लेकिन इस ज्ञापन के बाद रजिस्ट्रार ने संबंधित विभागों से पूरी जानकारी मांगी है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सबकुछ किस कदर ठप हो चुका है इसका अनुमान शोध पत्रों के मूल्यांकन के लिए नियुक्त होने वाले परीक्षकों की स्थिति से लगाया जा सकता है। डेढ़ साल से विश्वविद्यालय में एकेडमिक काउंसिल की बैठक नहीं हुई है। इस दौरान बैठक हुई भी तो किसी एक बिंदु पर। इसकी वजह से शोधपत्रों के मूल्यांकन के लिए परीक्षकों की नियुक्ति भी नहीं हो पाई और सैकड़ों शोधार्थियों का भविष्य अंधकार में है। नियमानुसार शोधार्थी की थीसिस मूल्यांकन के लिए बाहर के परीक्षकाें को भेजी जाती है। इसके बाद इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। पहले विभाग के स्तर पर परीक्षकों की नियुक्ति कर ली जाती थी। बाद में एकेडमिक काउंसिल से मंजूरी ले ली जाती थी लेकिन इस प्रक्रिया में मनमानी की शिकायतों के बाद नई व्यवस्था लागू की गई है।
इसके तहत परीक्षक के चयन की मंजूरी एकेडमिका काउंसिल से पहले ले ली जाती है। इसके बाद शोध पत्र मूल्यांकन के लिए भेजी जाती है लेकिन जुलाई 2013 से एकेडमिक काउंसिल की नियमित बैठक नहीं हुई है। ऐसे में इस दौरान जमा शोध पत्रों के मूल्यांकन की प्रक्रिया ठप पड़ गई है। इसकी वजह से इंटरव्यू तथा डिग्री एवार्ड भी नहीं हो पा रही है। मुश्किल यह कि दो साल में शोधपत्र का मूल्यांकन नहीं होने पर उसके अमान्य होने का भी खतरा होता है। ऐसे में इस हीलाहवाली से शोधार्थियाें में गुस्सा है। इंडियन रिसर्च स्कॉलर्स एसोसिएशन ने इस बाबत कुलपति को ज्ञापन सौंपकर जल्द से जल्द एकेडमिक काउंसिल की बैठक बुलाने की मांग की है। हालांकि बैठक कब होगी इस बारे में कहना तो मुश्किल है लेकिन इस ज्ञापन के बाद रजिस्ट्रार ने संबंधित विभागों से पूरी जानकारी मांगी है।