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मशहूर फिल्म अभिनेता राजकपूर द्वारा अभिनीत फिल्म के गाने के बोल- जाने कहां गए वो दिन.. होली पर बिल्कुल सटीक साबित हो रहे हैं। पहले होली का त्योहार आपसी प्रेम, भाईचारे को कायम रखने के साथ हंसी-ठिठोली एवं मस्ती का माध्यम माना जाता था, लेकिन अब होली बदल रही है। लोग इसकी आड़ में रंजिश (खुन्नस) निकालने लगे हैं। बुजुर्ग होली के बदलते स्वरूप से खुश नहीं है। उन्हें इसके और बिगड़ जाने की चिंता भी है।
गभाना के बुजुर्ग मुंशीलाल अपने बचपन की याद करते हुए बोले, पुराने वक्त में कई दिन पहले ही होली की मस्ती के साथ हंसी- ठिठोली करने का सिलसिला शुरू हो जाता था। गली, मुहल्लों में बच्चों की टोलियां हाथों में रंग, अबीर, गुलाल के साथ पिचकारियां लेकर गाना गाते थे- रंग बिरंगी होली है.. होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है..।
लोधा के करीलिया गांव के गंगा प्रसाद बताते हैं कि अब काफी बदलाव आ चुका है, पहले होली का पर्व आपसी मनमुटाव को मिटाकर भाई चारे एवं गले लगाकर राग, द्वेष को दूर कर लेने का पर्व माना जाता था, लेकिन पर्व के मायने ही बदल गए हैं और लोग होली के बहाने अपनी रंजिश यानि खुन्नस निकालने लगे हैं।
जवां क्षेत्र के एसी पला निवासी जय प्रकाश उपाध्याय बताते हैं कि पहले लोग होलिका दहन के बाद टोलियों के रूप में इकट्ठे होकर ढ़ोलक- मजीरों के साथ होली के गीतों को गाते हुए होली खेलते थे और खूब हंसी- ठिठोली भी करते थे। होली के गीत एवं रसिया पर सभी लोग झूमते हुए इस त्योहार का जमकर आनंद उठाते थे, लेकिन अब न वो पहले जैसे लोग रहे और न ही पहले से दिन।
अतरौली के इज्जतपुर गांव के शिव कुमार दीक्षित बताते हैं कि पहले होली का सभी लोग खुलकर आनंद लेते थे, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में नई पीढ़ी होली के अनूठे आनंद से न केवल वंचित हो रही है, बल्कि वह भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं से भी काफी दूर हो चुकी है। नई पीढ़ी के लिए होली व्यक्तिगत मस्ती का साधन बन चुकी है, उनका परंपराओं से कुछ भी लेना देना नही हैं।
किशनपुर के उदय बिहार निवासी सतीश चंद्र बताते हैं कि पहले होलिका दहन के लिए बसंत पंचमी के दिन से ही लकड़ी एवं अन्य ईंधन एकत्रित करना शुरु कर दिया जाता था। लोगों की टटिया और छप्परों को उठाकर होलिका दहन के स्थान पर डाल देते थे और कोई भी बुरा नही मानता था। अब होली रस्म अदायगी और नशे का त्योहार बन चुका है।
अतरौली क्षेत्र के काजिमाबाद के मनोहर सिंह कहते हैं कि अब होली में सद्भावना कम और कड़वाहट ज्यादा देखने को मिलती है। कुछ लोगों के कारण समाज के सभी लोग परेशान होते हैं। सहिष्णुता एवं भाईचारा दिखाई नहीं देता है। अब गले मिलकर त्योहार की खुशियां बांटने की बजाए एक-दूसरे से परहेज किया जाता है।