न्यूज डेस्क, अमर उजाला, आगरा
Published by: Abhishek Saxena
Updated Thu, 01 Jul 2021 12:02 AM IST
दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के पश्चिमी दीवार से सटा हुआ है बाग खान-ए-आलम। इन दिनों भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उद्यान शाखा ने नर्सरी बना रखी है, जिसके मुख्य द्वार पर बने पानी के टैंक से ताजमहल में लगे फव्वारे चलते हैं। यह ताजमहल की प्राचीन जल प्रणाली का हिस्सा है, जहां रहट से यमुना का पानी लिफ्ट करके ताजमहल की नहरों में लगे फव्वारों को भेजा जाता है।
खान-ए-आलम मुगल बादशाह जहांगीर का दरबारी मिर्जा बरखुरदार था, जिसे मौत के बाद उसके लगवाए बाग में ही दफन कर दिया गया था। उसके परिवार के सदस्यों की कब्रें भी इसी बाग में यमुना किनारे स्थित भवन की बारादरी में हैं। खान-ए-आलम जहांगीर के बाद शाहजहां के दरबार में भी रहा। वर्ष 1632 में अधिक उम्र व अफीम की लत के चलते वह सेवानिवृत्त हो गया। तब उसने ताजमहल की पश्चिमी दिशा में बाग लगवाया।
यमुना के तट पर भवन और तहखाना बना हुआ है
बाग में यमुना के तट पर भवन और तहखाना बना हुआ है। एएसआई ने यहां संरक्षण कराया तो यहां किले की तरह भवन को ठंडा रखने के लिए झरना और फव्वारे निकले। इतिहासविद राजकिशोर राजे ने अपनी किताब तवारीख-ए-आगरा में बाग खान-ए-आलम की नीलामी के बारे में बताया है। वर्ष 1898 में अंग्रेजों ने बाग को बेच दिया था। आगरा के तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर रोज ने बाग को वापस हासिल किया और एएसआइ को सौंप दिया।
जहांगीर ने दी थी खान-ए-आलम की उपाधि
इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब ‘द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स आफ आगरा’ में लिखा है कि खान-ए-आलम एक तूरानी (मध्य एशियाई) मिर्जा बरखुरदार था, जो जहांगीर के दरबार में पांच हजार का मनसबदार था। जहांगीर ने उसे वर्ष 1609 में खान-ए-आलम की उपाधि दी थी। दो वर्ष बाद उसे ईरान के शाह अब्बास के दरबार में राजदूत के रूप में उपहारों के साथ भेजा गया था।
हमारी धरोहर आगरा कथा: मुगल शासनकाल में बनी ताजनगरी की मंडियां, जानिए इनका इतिहास
विस्तार
दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल के पश्चिमी दीवार से सटा हुआ है बाग खान-ए-आलम। इन दिनों भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उद्यान शाखा ने नर्सरी बना रखी है, जिसके मुख्य द्वार पर बने पानी के टैंक से ताजमहल में लगे फव्वारे चलते हैं। यह ताजमहल की प्राचीन जल प्रणाली का हिस्सा है, जहां रहट से यमुना का पानी लिफ्ट करके ताजमहल की नहरों में लगे फव्वारों को भेजा जाता है।
खान-ए-आलम मुगल बादशाह जहांगीर का दरबारी मिर्जा बरखुरदार था, जिसे मौत के बाद उसके लगवाए बाग में ही दफन कर दिया गया था। उसके परिवार के सदस्यों की कब्रें भी इसी बाग में यमुना किनारे स्थित भवन की बारादरी में हैं। खान-ए-आलम जहांगीर के बाद शाहजहां के दरबार में भी रहा। वर्ष 1632 में अधिक उम्र व अफीम की लत के चलते वह सेवानिवृत्त हो गया। तब उसने ताजमहल की पश्चिमी दिशा में बाग लगवाया।
यमुना के तट पर भवन और तहखाना बना हुआ है
बाग में यमुना के तट पर भवन और तहखाना बना हुआ है। एएसआई ने यहां संरक्षण कराया तो यहां किले की तरह भवन को ठंडा रखने के लिए झरना और फव्वारे निकले। इतिहासविद राजकिशोर राजे ने अपनी किताब तवारीख-ए-आगरा में बाग खान-ए-आलम की नीलामी के बारे में बताया है। वर्ष 1898 में अंग्रेजों ने बाग को बेच दिया था। आगरा के तत्कालीन अंग्रेज कमिश्नर रोज ने बाग को वापस हासिल किया और एएसआइ को सौंप दिया।
जहांगीर ने दी थी खान-ए-आलम की उपाधि
इतिहासकार ईबा कोच ने अपनी किताब ‘द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स आफ आगरा’ में लिखा है कि खान-ए-आलम एक तूरानी (मध्य एशियाई) मिर्जा बरखुरदार था, जो जहांगीर के दरबार में पांच हजार का मनसबदार था। जहांगीर ने उसे वर्ष 1609 में खान-ए-आलम की उपाधि दी थी। दो वर्ष बाद उसे ईरान के शाह अब्बास के दरबार में राजदूत के रूप में उपहारों के साथ भेजा गया था।
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