ओलंपियन चरणजीत को दूध और जलेबी बहुत पसंद थी। जब भी घूमने के लिए रिज जाते। वे मिडल बाजार में लाहौरी हलवाई की दुकान जरूर जाते थे। यहां दूध-जलेबी खाना उन्हें बहुत पसंद था। दोस्तों को भी साथ लेकर जरूर जाते थे। इसके अलावा चरणजीत सिंह शारीरिक फिटनेस को लेकर बहुत सजग रहते थे।
इसलिए रोजाना लांगवुड स्थित अपने सरकारी आवाससे पैदल समरहिल पहुंचते थे और वापसी भी दोस्तों के साथ गपशप करते हुए पैदल करते। चरणजीत सिंह का हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से गहरा नाता रहा। वे विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा एवं युवा कार्यक्रम निदेशालय के संस्थापक निदेशक रहे।
1971 से 1990 तक निदेशक रहते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय में खेल कल्चर को विकसित करने और खेलों के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ाने और खेलों को बढ़ावा देने के लिए मजबूत आधार प्रदान किया। उन्हीं के कार्यकाल में विश्वविद्यालय में 12 खेलों के कोच की नियुक्ति हुई, खेल मैदान जैसे कार्य की नींव रखी गई।
खेल निदेशालय और खेलों के विकास के लिए वे एक अच्छे प्रशासक और मुखिया साबित हुए। उनके अधीन कार्य कर चुके सेवानिवृत्त निदेशक प्रो. रमेश चौहान ने चरणजीत सिंह के साथ बिताए दिनों की यादों को ताजा करते हुए बताया कि खेल उनका जुनून था, खेल और खिलाड़ी के लिए उनका प्यार साफ झलकता था। उनकी एक सबसे बड़ी खासियत थी, वे जो सोच लेते थे, उसे पूरा करके ही दम लेते थे।
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ओलंपियन चरणजीत को दूध और जलेबी बहुत पसंद थी। जब भी घूमने के लिए रिज जाते। वे मिडल बाजार में लाहौरी हलवाई की दुकान जरूर जाते थे। यहां दूध-जलेबी खाना उन्हें बहुत पसंद था। दोस्तों को भी साथ लेकर जरूर जाते थे। इसके अलावा चरणजीत सिंह शारीरिक फिटनेस को लेकर बहुत सजग रहते थे।
इसलिए रोजाना लांगवुड स्थित अपने सरकारी आवाससे पैदल समरहिल पहुंचते थे और वापसी भी दोस्तों के साथ गपशप करते हुए पैदल करते। चरणजीत सिंह का हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से गहरा नाता रहा। वे विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा एवं युवा कार्यक्रम निदेशालय के संस्थापक निदेशक रहे।
1971 से 1990 तक निदेशक रहते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय में खेल कल्चर को विकसित करने और खेलों के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ाने और खेलों को बढ़ावा देने के लिए मजबूत आधार प्रदान किया। उन्हीं के कार्यकाल में विश्वविद्यालय में 12 खेलों के कोच की नियुक्ति हुई, खेल मैदान जैसे कार्य की नींव रखी गई।
खेल निदेशालय और खेलों के विकास के लिए वे एक अच्छे प्रशासक और मुखिया साबित हुए। उनके अधीन कार्य कर चुके सेवानिवृत्त निदेशक प्रो. रमेश चौहान ने चरणजीत सिंह के साथ बिताए दिनों की यादों को ताजा करते हुए बताया कि खेल उनका जुनून था, खेल और खिलाड़ी के लिए उनका प्यार साफ झलकता था। उनकी एक सबसे बड़ी खासियत थी, वे जो सोच लेते थे, उसे पूरा करके ही दम लेते थे।