आज यानी 1 नवंबर को मध्यप्रदेश अपना 67वां स्थापना दिवस मना रहा है। कई क्षेत्रों में मध्यप्रदेश आज कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण और बिजली के नए विकल्पों की दिशा में प्रदेश निरंतर कार्यरत है। ताप संयंत्रों से पर्यावरण पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर नवकरणीय ऊर्जा को प्राथमिकता दी गई, जिसमें सौर ऊर्जा की बड़ी भूमिका है। सौर परियोजना से उत्पादित बिजली की लागत ताप और जल विद्युत उत्पादन से जहां कम होती है, वहां इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश सौर ऊर्जा उत्पान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन गया है। कोयले से बिजली बनाने में अग्रणी रहा मध्यप्रदेश अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी देश में अपनी नई पहचान बना रहा है और पर्यावरण के संरक्षण में अपनी बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। साल 2012 में प्रदेश की नवीकरणीय ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 500 मेगावॉट से भी कम थी, लेकिन आज प्रदेश में हुए सौर ऊर्जा के नवाचारों के माध्यम से यह क्षमता 5300 मेगावॉट से अधिक हो गई है। मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी के साल 2030 तक देश की ऊर्जा आवश्यकता की 50 प्रतिशत आपूर्ति सौर ऊर्जा से करने के लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रहा है। मध्यप्रदेश में तय सीमा में इस लक्ष्य को हासिल करने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं।
सौर ऊर्जा उत्पादन में आगे
गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनका उपयोग आमतौर पर परिवहन और बिजली बनाने के लिए किया जाता है। पेट्रोलियम डेरिवेटिव के सेवन से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो ओजोन परत को प्रभावित करता है। पर्यावरणीय संतुलन के लिए ऊर्जा के नवीन और नवीकरणीय स्त्रोत को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से भी सौर ऊर्जा पर विशेष जोर दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश सरकार इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रही है। प्रदेश में पिछले 10 साल में नवकरणीय क्षमता में 11 गुना वृद्धि हुई है।
औसतन हर साल सौर परियोजनाओं में 54 प्रतिशत और पवन परियोजनाओं में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रदेश में सौर ऊर्जा की बड़ी रीवा परियोजना पूर्ण क्षमता के साथ संचालित है। इसके अलावा ओंकारेश्वर में बन रहा फ्लोटिंग सौर योजना दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र होगा, जिसमें 600 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता है। इसके अलावा आगर, शाजापुर, नीमच में अगले वर्ष से सौर ऊर्जा का उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। वहीं, छतरपुर और मुरैना सौर परियोजना हायब्रिड और स्टोरेज के साथ विकसित की जाएंगी, जो साल 2024 तक उत्पादन शुरू कर देंगी।
सूर्य शक्ति अभियान
प्रदेश में गांवों को सौर ऊर्जा से बिजली की आपूर्ति के लिए आत्म-निर्भर बनाने के लिए सूर्य शक्ति अभियान की शुरूआत की गई है। देश में इस तरह का अनूठा अभियान शुरू करने वाला मध्यप्रदेश पहला राज्य है। ग्राम पंचायतों में सोलर ऊर्जा को बढ़ावा देते हुए गांव की स्ट्री लाइटें, नल-जल प्रदाय, कार्यालयों में और अन्य कामों में सोलर बिजली को प्राथमिकता दी जा रही है। सौर ऊर्जा से प्रदेश की ग्राम पंचायतों में भविष्य में बिजली बिल पर होने वाले लगभग दो हजार करोड़ रुपये के व्यय को कम किया जा सकेगा। यह राशि गांव के अन्य विकास कामों में उपयोग की जा सकेगी। साथ ही कार्बन क्रेडिट का भी लाभ पंचायतों को मिल सकेगा। यह अभियान पंचायतों की आय में वृद्धि के लिए सहायक होगा।
विश्व का सबसे बड़ा पानी पर तैरने वाला सोलर एनर्जी प्लांट
प्रदेश में पॉवर हब के रूप में पहचान बना चुके खंडवा जिले में अब विश्व का सबसे बड़ा पानी पर तैरने वाला सोलर एनर्जी प्लांट आकार लेने वाला है। इसके लिए ओंकारेश्वर बांध के जलाशय का चयन किया गया है। यहां 600 मेगावॉट क्षमता के फ्लोटिंग सोलर पैनल लगाए जाएंगे। जिले में इंदिरा सागर बांध से एक हजार, ओंकारेश्वर बांध से 520 मेगावॉट के अलावा संत सिंगाजी ताप विद्युत परियोजना की दो इकाइयों से 2520 मेगावॉट बिजली का उत्पादन हो रहा है। वहीं, अब ओंकारेश्वर बांध परियोजना के जलाशय में सौर ऊर्जा के उत्पादन की योजना है।
रीवा परियोजना से मिली आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश को गति
मध्यप्रदेश सौर ऊर्जा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। चार हजार करोड़ की लागत से निर्मित रीवा सौर परियोजना में 750 मेगावाट बिजली उत्पादन प्रारंभ हो गया है। इसके अलावा पांच हजार मेगावाट की छह परियोजनाएं और निर्माणाधीन हैं। रीवा सौर परियोजना 1590 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थापित है। पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से देखें तो रीवा सौर परियोजना से प्रतिवर्ष 15.7 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन को रोका जा रहा है, जो 2 करोड़ 60 लाख पेड़ों को लगाने के बराबर है। रीवा सौर ऊर्जा परियोजना न केवल प्रदेश को नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगी बल्कि मध्यप्रदेश को अन्य राज्यों एवं व्यवसायिक संस्थानों को बिजली प्रदान करनें में अग्रणी रखेगी।
इस परियोजना से लगभग 800 लोगों को रोजगार प्राप्त हो रहा है। परियोजना को राज्य-स्तर पर नवाचार के लिये प्रधानमंत्री पुरस्कार के लिये सर्वश्रेष्ठ परियोजनाओं में चयनित किया गया। देश में अब तक 30 मेगावाट क्षमता के सोलर रूफ टॉप संयंत्र स्थापित किये जा चुके हैं। सरकार का प्रयास है कि रूफ टॉप संयंत्र घर-घर लगायें जाएं, ताकि उपयोग के लिये बिजली सस्ती दरों पर मिले। शासकीय भवनों पर सौर संयंत्र ऐसे मॉडल पर लगाए जा रहे हैं, जिसमें हितग्राही को विभाग अथवा संस्था को कोई पैसा नहीं देना है। भोपाल के निकट मण्डीदीप में 400 औद्योगिक इकाइयों के लिये 32 मेगावाट क्षमता की सोलर रूफ टॉप परियोजनाओं पर कार्य किया जा रहा है।
सौर परियोजनाओं पर तेजी से हुआ कार्य
मध्यप्रदेश में सौर ऊर्जा की पांच हजार मेगावाट की परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। प्रदेश की पहली रीवा सौर परियोजना के लिये गठित कम्पनी रम्स द्वारा आगर, शाजापुर, नीमच, छतरपुर, ओंकारेश्वर तथा मुरैना में स्थापित होने वाली इन परियोजनाओं पर कार्य प्रारंभ किया है। आगर में 550 मेगावाट, शाजापुर में 450 मेगावाट, नीमच में 500 मेगावाट, छतरपुर में 1500 मेगावाट, ओंकारेश्वर फ्लोटिंग ओंकारेश्वर बांध स्थल पर 600 मेगावाट और मुरैना में 1400 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये सौर पार्कों की स्थापना की कार्रवाई चल रही है। प्रदेश में सोलर पम्प के माध्यम से किसानों को सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री सोलर पम्प योजना के अंतर्गत अब तक 14,250 किसानों के लिये सोलर पम्प स्थापित किये जा चुके हैं। अगले तीन वर्षों में 2 लाख सोलर पम्प लगाने का लक्ष्य है।शाजापुर में 5250 करोड़ रुपये की लागत के 1500 मेगावॉट क्षमता वाले आगर, शाजापुर और नीमच के सौर ऊर्जा पार्क के एमओयू पर साइन कर भूमि-पूजन किया। उन्होंने निजी निवेशकों के साथ प्रधानमंत्री 'कुसुम-अ' योजना के अनुबंध पर भी हस्ताक्षर किए। सीएम चौहान ने ऊर्जा के क्षेत्र में जन-जागरूकता के उद्देश्य से चलाए जाने वाले ऊर्जा साक्षरता अभियान 'ऊषा' का शुभारंभ किया।